Breaking News

बलिया : श्रीराम कथा यज्ञ के पांचवे दिन : कुमार मैने देखें , सुंदर सखी दो कुमार ... अहल्या के उद्धार करने के बाद भगवान राम ने जनकपुर में किया धनुषभंग








 कुमार मैने देखें , सुंदर सखी दो कुमार ...
अहल्या के उद्धार करने के बाद भगवान राम ने जनकपुर में किया धनुषभंग
मधुसूदन सिंह की रिपोर्ट
बलिया 16 दिसम्बर 2018 ।।  श्रीराम कथा यज्ञ के पांचवे दिन कथावाचक परम् पूज्य स्वामी प्रेम भूषण जी महाराज ने भगवान राम द्वारा अहल्या उद्धार से लेकर धनुषभंग तक के प्रसंग का सुंदर वर्णन किया । कथा प्रारम्भ होने से पूर्व स्वामी प्रेम भूषण जी महाराज के आसन पर पहुंचने के बाद इस आयोजन के यजमान विंध्यांचल सिंह एवं श्रीमती तेतरी सिंह (माता पिता श्री दयाशंकर सिंह ), दयाशंकर सिंह  , विशेष यजमान माननीय एसपी सिंह बघेल कैबिनेट मंत्री (पशु पालन एवं लघु सिंचाई एवं मत्स्य विभाग ),
विधायक सुरेंद्र सिंह , विधायक संजय यादव, विधायक धनंजय कनौजिया , पूर्व जिला अध्यक्ष विजय बहादुर सिंह अरुण सिंह बंटू पूर्व भाजयुमो बलिया ,पीएन सिंह पूर्व प्रधानाचार्य , ईश्वर दयाल मिश्र प्रधान मानस परिवार बलिया, राजेश गुप्त नगर अध्यक्ष भाजपा , नकुल चौबे ,राजा राम सिंह , धर्मेंद्र सिंह, गिरिजेश दत्त शुक्ल प्रधानाचार्य ,गिरीश नारायण चतुर्वेदी ,ईश्वरन श्री सीए ने भगवान भोलेनाथ , भगवान श्रीराम को सपरिवार पूजन अर्चन किया ।

स्थानीय टीडी कालेज के मैदान पर भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह और स्वाति सिंह मंत्री द्वारा करायी जा रही श्रीराम कथा यज्ञ में प्रसिद्ध श्रीराम कथावाचक प्रेमभूषण जी महाराज द्वारा पांचवे दिन की कथा में अहिल्या उद्धार से लेकर भगवान श्रीराम ,लखन जी का गुरु विश्वामित्र के साथ जनकपुर पहुंचने और धनुषभंग तक की घटना का मार्मिक वर्णन कर उपस्थित जन समुदाय को मंत्रमुग्ध कर दिया गया ।

श्री रामजी और लक्ष्मणजी मुनि के साथ जनकपुर के लिये चले। वे वहाँ गए, जहाँ जगत को पवित्र करने वाली गंगाजी थीं। महाराज गाधि के पुत्र विश्वामित्रजी ने वह सब कथा कह सुनाई जिस प्रकार देवनदी गंगाजी पृथ्वी पर आई थीं । तब प्रभु ने ऋषियों सहित गंगाजी में स्नान किया। ब्राह्मणों ने भाँति-भाँति के दान पाए। फिर मुनिवृन्द के साथ वे प्रसन्न होकर चले और शीघ्रही जनकपुर के निकट पहुँच गए ।
श्री रामजी ने जब जनकपुर की शोभा देखी, तब वे छोटे भाई लक्ष्मण सहित अत्यन्त हर्षित हुए। वहाँ अनेकों बावलियाँ, कुएँ, नदी और तालाब हैं, जिनमें अमृत के समान जल है और मणियों की सीढ़ियाँ बनी हुई हैं । मकरंद रस से मतवाले होकर भौंरे सुंदर गुंजार कर रहे हैं। रंग-बिरंगे बहुत से पक्षी मधुर शब्द कर रहे हैं। रंग-रंग के कमल खिले हैं। सदा सब ऋतुओं में सुख देने वाला शीतल, मंद, सुगंध पवन बह रहा है ।
पुष्प वाटिका ,बाग और वन, जिनमें बहुत से पक्षियों का निवास है, फूलते, फलते और सुंदर पत्तों से लदे हुए नगर के चारों ओर सुशोभित हैं ।

चले राम लछिमन मुनि संगा। गए जहाँ जग पावनि गंगा॥

गाधिसूनु सब कथा सुनाई। जेहि प्रकार सुरसरि महि आई॥

 तब प्रभु रिषिन्ह समेत नहाए। बिबिध दान महिदेवन्हि पाए॥

हरषि चले मुनि बृंद सहाया। बेगि बिदेह नगर निअराया॥

 पुर रम्यता राम जब देखी। हरषे अनुज समेत बिसेषी॥

बापीं कूप सरित सर नाना। सलिल सुधासम मनि सोपाना॥

गुंजत मंजु मत्त रस भृंगा। कूजत कल बहुबरन बिहंगा॥

बरन बरन बिकसे बनजाता। त्रिबिध समीर सदा सुखदाता॥

सुमन बाटिका बाग बन बिपुल बिहंग निवास।

फूलत फलत सुपल्लवत सोहत पुर चहुँ पास॥



 सुनि पन सकल भूप अभिलाषे। भटमानी अतिसय मन माखे॥

परिकर बाँधि उठे अकुलाई। चले इष्ट देवन्ह सिर नाई॥

जनकपुर में गुरु विश्वामित्र संग श्रीराम और लखन का नगर भ्रमण जहां पुरवासियों के लिये कौतूहल का विषय बना हुआ है वही नगरवासी श्याम और गौर शरीर वाले दोनों राजकुमारों की खूबसूरती देखते हुए नही अघा रहे है । बार बार इनको देखने के लिये भीड़ लगा रहे है ।
लागल जनकपुर में मेला ....
दखिन दिशा से एक साधु जी आइले , संगवा में दुइगो चेला ....
गुरु विश्वामित्र संग राम और लक्ष्मण के जनकपुर पहुंचने की खबर पाते ही राजा जनक अपने कुलगुरु शतानन्द जी के साथ पहुंच कर यथोचित आदर सत्कार किया ।
महाराज जनक ने आदर के साथ गुर विश्वामित्र को अपने शिष्यों के साथ सीता स्वयम्बर के लिये आमंत्रित करते है और तीनों लोगो को सादर अति विशिष्ठ अतिथि गृह में निवास कराते है । सायं काल प्रभु श्रीराम गुरु विश्वामित्र से कहते है कि देव ! छोटे लखन जनकपुर घूमना चाहते है लेकिन लाज और संकोचवश कुछ कह नही रहे है , अगर आपकी आज्ञा हो तो जनकपुर दिखा कर शीघ्र वापस आ जाऊ ? गुरुदेव की आज्ञा पाकर दोनो भाई जनकपुर की गलियों में घूमते है । स्याम सलोने और गौर दोनो भाइयो को जो एकबार देखता है देखता ही रह जाता है । पूरे नगर में दोनो भाइयो की खूबसूरती घर घर पहुंच गई । लोग अपना कामधाम छोड़कर बस इन्ही को देखने दौड़ पड़ते है । दोनो भाइयो को देख सखियां आपस मे चर्चा करते है --
ऐ सखी विधाता ने सीता जी की जोड़ी बना दी है देखो सांवले राजकुमार के साथ बहुत जमेगी । पर मुझे बड़ा संशय है कि ये इतने सुकुमार है भला शिव जी के कठोर धनुष को कैसे तोड़ेंगे ? दूसरी सखी बोली अरि सखी संशय मत कर ये सुकुमार जरूर है पर इनके करतब बड़े निराले है । एक ही बाण में तड़का जैसी राक्षसी को मार डाला है । आंख की चंचलता, चित्त की चंचलता का परिचायक होती है । हमारे ठाकुर जी स्थिर चित के है , वो किसी की तरफ तिरछी नजर से भी नही देखते है । अपनी तरफ आकृष्ट कराने के लिये युवतियां भगवान राम के ऊपर फूलों की वर्षा कर रही थी और सरकार उनको देखकर सुख दे रहे थे । कहा जाता है कि प्रभु राम और लक्ष्मण जी के नगर भ्रमण के बाद ही मूर्तियों को भ्रमण कराने की परंपरा शुरू हुई , जिस तरह जो चलकर भगवान के दर्शन नही कर सकते थे लेकिन मन मे प्रबल इच्छा थी ऐसे भक्तो के पास भगवान खुद गये , इसी सोच से मूर्तियों को भी आसक्तो के दर्शन के लिये घुमाया जाता है । लौटकर भोजन करने के बाद गुरु के पैर दोनो भाई दबाते है और उनके सोने के बाद सोते है । सुबह उठ कर गुरुदेव की पूजा के लिये जनक जी की योग वाटिका में जाकर फूल चुन रहे है । आज फूल भी अपने भाग्य पर इठला रहे है कि आज उनको स्वयं परमात्मा चुन रहे है । राजा जनक की योग वाटिका दिव्य है क्योकि यहां छहों ऋतुओं में ऋतुओं के आधार पर चहकने वाले पक्षी एक साथ पूरे साल भर चहकते है । भगवान राम और लक्ष्मण को फूल चुनते देख एक सखी दूसरे से कहती है ...
कुमार मैंने देखे , सुंदर सखी दो कुमार ।।
  हाथों में फूलों का दोना सोहे
सुंदर गले मे सोहे हार .... कुमार मैने ...
सुंदर सलोने बांके रसीले
मोह लिये नर नार ... कुमार ...
मुनियों का यज्ञ , इन्होंने रचाया
दीनों की सुनते पुकार ..कुमार ...
भक्तो के जीवन संतो के प्यारे
सबके है प्राण आधार ...कुमार मैने ..
करुणा के सागर दशरथ दुलारे
सब इनसे करते है प्यार ..कुमार मैने ..
पल भर में अपने चरणों की रज से
नारी अहल्या दी तार ..कुमार मैने ...

जब भगवान राम और लक्ष्मण फूल चुन रहे है उसी समय जनक नंदिनी माता गौरी की पूजा के लिये आती है । भगवान राम और जनक नंदिनी की नजरें एक दूसरे से मिलती है । माता सीता सकुचाते हुए माता गौरी की पूजा करते हुए राम जी को मन ही मन वर रूप में कामना करती है ।
देवि पूजि पद कमल तुम्हारे , सुर नर मुनि सब होहि सुखारे .....
माता गौरी प्रसन्न होकर आशीष देती  ....
मनु जाहि राचेहु मिलहि सो वर सहज सुंदर स्वरों ...
मां गौरी की आशीष सुनकर सीता जी हर्षित मन से महल चली गयी ।

 स्वयम्बर के दिन तीनो लोग सभा मे जाते है । उचित और शुभ मुहूर्त पर राजा जनक और गुरु की आज्ञा से सुहागिन स्त्रियां और सखियां जगत जननी सीता को लेकर स्वयम्बर सभा मे आती है । अपने हाथों में जयमाल लिये सीता जी की सुंदरता अनुपम और अद्वितीय लग रही है । पूज्य प्रेमभूषण जी अपने गीत के माध्यम से माता सीता की सुंदरता का वर्णन यूँ कर रहे है ..

सीता जी के हाथ मे जयमाल हो , सखी सब गांवे मंगल गीत....

 सबको प्रणाम करने के बाद जब जगत जननी सीता जी बैठती है । ततपश्चात राजा जनक की आज्ञा पर बन्दी जन यह कहते है

तब बंदीजन जनक बोलाए। बिरिदावली कहत चलि आए॥
कह नृपु जाइ कहहु पन मोरा। चले भाट हियँ हरषु न थोरा॥
बोले बंदी बचन बर सुनहु सकल महिपाल।
पन बिदेह कर कहहिं हम भुजा उठाइ बिसाल॥

नृप भुजबल बिधु सिवधनु राहू। गरुअ कठोर बिदित सब काहू॥
रावनु बानु महाभट भारे। देखि सरासन गवँहिं सिधारे॥
सोइ पुरारि कोदंडु कठोरा। राज समाज आजु जोइ तोरा॥
त्रिभुवन जय समेत बैदेही। बिनहिं बिचार बरइ हठि तेही॥

राजा जनक की आज्ञा पाकर उपस्थित राजा धनुष को उठाने की असफल चेष्ठा करते है लेकिन सब मिलकर भी उठाना तो दूर हिला भी नही पाते है । यह देखकर राजा जनक बहुत लज्जित होते है और सभा बीच यह घोषणा करते है कि लगता है पृथ्वी वीरों से खाली हो गयी है , एक भी वीर ऐसा नही है जो भगवान शिव के इस धनुष को उठाना तो दूर हिला भी सके । यह कलुष वचन सुनकर लक्ष्मण जी खड़े हो जाते है और कहते है महाराज जिस सभा मे रघुकुल का एक भी वीर बैठा हो आपको ऐसी बात नही बोलनी चाहिये । यह एक धनुष क्या है , इसके जैसे सैकड़ो धनुष हमने खेल खेल में तोड़े है । लक्ष्मण जी को ज्यादे क्रोधित होते देख श्रीराम ने इशारों से चुप कराया । गुरु विश्वामित्र ने शुभ मुहूर्त जानकर श्रीराम को धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने की आज्ञा दी ।
जब भगवान राम , भगवान शिव के रखे धनुष के पास पहुंचते है तो गोस्वामी जी लिखते है -
उदित उदय गिरि मंच पर रघुवर बाल पतंग ....

 प्रभु श्रीराम ने एक ही झटके में शिव के धनुष को बीच से तोड़ दिया । चारो तरफ से जय जयकार  और पुष्प वर्षा होने लगी ।
परम् श्रद्धेय प्रेम भूषण जी महाराज कहते है कि शिव का धनुष अन्य राजा क्यो नही उठा पाये यह एक रहस्य है । रहस्य यह है कि धनुष माता पृथ्वी की गोद मे था जिसको माता पकड़े हुए थी । माता
 जानकी धरती पुत्री है ।माता तभी धनुष  छोड़ती जब उनके जमाई भगवान उठाते । धरती माता को यह तब पता चलता जब शेषावतार लखन जी बताते कि जनक नंदिनी के पाणिग्रहण के लिये रघुकुल नन्दन सभा मे आ गए है । इसी लिये भगवान राम के द्वारा धनुष उठाने से पहले लक्ष्मण जी ने धरती से धनुष को छोड़ने के लिये कहा और अपने बाण से धनुष उठने के बाद चारो दिशाओं में उठने वाले कोलाहलो को रोका , तब प्रभु ने धनुष भंग किया । माता सीता ने सहेलियों के साथ वरमाला पहनाई । धनुष टूटने की सूचना पर भगवान परशुराम आते है और ठाकुर जी श्रीराम को पहचान होने के बाद अपना परशु देकर तपस्या करने जंगल को चले जाते है ।

  इससे पहले स्वामी जी ने अहिल्या प्रसंग के माध्यम से वर्तमान समय मे नारियों पर हो रहे अत्याचार को भी रेखांकित करके समाज और उपस्थित जन समुदाय को सुरसा के मुंह की तरह विकराल हो रही इस समस्या के प्रति सजग और जागृत होने का आह्वान किया ।

रामायण की कई कथाओं का समावेश किया गया हैं उन में से एक हैं देवी अहिल्या के उद्धार की कहानी जो आज के समय से जोड़कर देखिये तब आपको भी समझ आएगा कि इतिहास में भी बलात्कारियों को युगों युगों तक सजा का भुगतान करना पड़ा हैं फिर वो देव ही क्यूँ ना हो ।

माता अहिल्या जिन्हें स्वयं ब्रह्म देव ने बनाया था इनकी काया बहुत सुंदर थी इन्हें वरदान था कि इनका योवन सदा बना रहेगा । इनकी सुन्दरता के आगे स्वर्ग की अप्सराये भी कुछ नहीं थी । इन्हें पाने की सभी देवताओं की इच्छा थी । यह ब्रह्मा जी की मानस पुत्री थी अतः ब्रह्म देव ने एक परीक्षा रखी जिसकी  शर्त थी जो भी परीक्षा का विजेता होगा उसी से अहिल्या का विवाह होगा । अंत में यह परीक्षा महर्षि गौतम ने जीती और विधिपूर्वक अहिल्या से विवाह किया ।

अहिल्या की सुन्दरता पर स्वयं इंद्र देव मोहित थे और एक दिन वो प्रेमवासना  कामना के साथ अहिल्या से मिलने पृथ्वी लोक आये लेकिन गौतम ऋषि के होते यह संभव नहीं था । तब इंद्र एवं चन्द्र देव ने एक युक्ति निकाली । महर्षि गौतम ब्रह्म काल में गंगा स्नान करते थे । इसी बात का लाभ उठाते हुये इंद्र और चंद्र ने अपनी मायावी विद्या का प्रयोग किया और चंद्र ने अर्धरात्रि को मुर्गे की बांग दी जिससे महर्षि गौतम भ्रमित हो गये और अर्ध रात्रि को ब्रह्म काल समझ गंगा तट स्नान के लिये निकल पड़े ।

 महर्षि गौतम के जाते ही इंद्र ने महर्षि गौतम का वेश धारण कर कुटिया में प्रवेश किया और चंद्र ने बाहर रहकर कुटिया की पहरेदारी की ।

दूसरी तरफ जब गौतम गंगा घाट पहुँचे, तब उन्हें कुछ अलग आभास हुआ और उन्हें समय पर संदेह हुआ । तब गंगा मैया ने प्रकट होकर गौतम ऋषि को बताया कि यह इंद्र का रचा माया जाल हैं, वो अपनी गलत नियत लिये अहिल्या के साथ कु कृत्य की लालसा से पृथ्वी लोक पर आया हैं । यह सुनते ही गौतम ऋषि क्रोध में भर गये और तेजी से कुटिया की तरफ लौटे । उन्होंने चंद्र को पहरेदारी करते देखा तो उसे शाप दिया उस पर हमेशा राहू की कु दृष्टि रहेगी और उस पर अपना कमंडल मारा । तब ही से चन्द्र पर दाग हैं |

उधर इंद्र को भी महर्षि के वापस आने का आभास हो गया और वो भागने लगा । गौतम ऋषि ने उसे भी श्राप दिया और उसे नपुंसक होने एवम अखंड भाग होने का शाप दिया । साथ ही यह भी कहा कि कभी इंद्र को सम्मान की नजरो से नहीं देखा जायेगा और ना ही उसकी पूजा होगी और आज तक इंद्र को कभी सम्मान प्राप्त नहीं हुआ ।



जब इंद्र भागने के लिये अपने मूल रूप में आया, तब अहिल्या को सत्य ज्ञात हुआ लेकिन अनहोनी हो चुकी थी जिसमे अहिल्या की अधिक गलती ना थी, उसके साथ तो बहुत बड़ा छल हुआ था लेकिन महर्षि गौतम अत्यंत क्रोधित थे और उन्होंने अहिल्या को अनंत समय के लिये एक शिला में बदल जाने का शाप दे दिया । जब महर्षि का क्रोध शांत हुआ, तब उन्हें अहसास हुआ कि इस सबमे अहिल्या की उतनी गलती नहीं थी परन्तु वे अपना शाप वापस नहीं ले सकते थे ।अपने इस शाप से महर्षि गौतम भी बहुत दुखी थे तब उन्होंने अहिल्या की शिला से कहा – जिस दिन तुम्हारी शिला पर किसी दिव्य आत्मा के चरणों की धूल स्पर्श होगी, उस दिन तुम्हारी मुक्ति हो जायेगी और तुम अपने पूर्वस्वरूप में पुनः लौट आओगी । इतना कह कर दुखी गौतम ऋषि हिमालय चले गये और जनकपुरी की कुटिया में अहिल्या की शिला युगों- युगों तक अपनी मुक्ति की प्रतीक्षा में कष्ट भोग रही थी ।

युगों बीतने के बाद जब महर्षि विश्वामित्र राक्षसी तड़का के वध के लिये अयोध्या से प्रभु राम और लक्ष्मण को लेकर आये तब ताड़का वध के बाद वे यज्ञ के लिये आगे बढ़ रहे थे तब प्रभु की नजर उस विरान कुटिया पर पड़ी और वे वहाँ रुक गये और उन्होंने महर्षि विश्वामित्र से पूछा – हे गुरुवर ! यह कुटिया किसकी हैं जहाँ वीरानी हैं जहाँ ऐसा प्रतीत होता हैं कि कोई युगों से नहीं आया । कोई पशु पक्षी भी यहाँ दिखाई सुनाई नहीं पड़ता । आखिर क्या हैं इस जगह का रहस्य ?

परम् पूज्य प्रेमभूषण जी महाराज ने इसको बड़े ही मनोहारी अंदाज में ऐसे प्रस्तुत किया ---

ऋषि आश्रम सी कोई पुन्य फली,पर आज लगे उजड़ी उजड़ी

नर नारी नही पशु पक्षी बिना , सुनसान दशा बिगड़ी बिगड़ी

तरु सुखी लता फलफूल बिना,गति जानन की उत्कंठा बढ़ी

कहिये गुरुदेव कृपा करि के , यह कैसी सिला मग माहि पड़ी ।।


 तब महर्षि विश्वामित्र कहते हैं –

गौतम नारी श्राप वश,उपल देह धरि धीर

चरण कमल रज चाहती, कृपा करहु रघुबीर ।।


 हे राम ! यह कुटिया तुम्हारे लिये ही प्रतीक्षा कर रही हैं । यहाँ बनी वह शिला तुम्हारे चरणों की धूल के लिये युगों से तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही हैं | राम पूछते हैं – कौन हैं यह शिला ? और क्यूँ मेरी प्रतीक्षा कर रही हैं । महर्षि विश्वामित्र राम और लक्ष्मण को देवी अहिल्या के जीवन की पूरी कथा सुनाते हैं ।

कथा सुनने के बाद राम अपने चरणों से शिला पर स्पर्श करते हैं और देखते ही देखते वह शिला एक सुंदर स्त्री में बदल जाती हैं और प्रभु राम का वंदन करती हैं । देवी अहिल्या राम से निवेदन करती हैं कि वो चाहती हैं उनके स्वामी महर्षि गौतम उन्हें क्षमा कर उन्हें पुनः अपने जीवन में स्थान दे ।

परसत पद पावन शोक नसावन ,प्रगट भई तब पुंज सहि

देखत रघुनायक जन सुख दायक ,सनमुख होई कर जोरि रही ,

अति प्रेम अधीरा पुलक शरीरा,मुख नहि आवत बचन कोई ,

अतिशय बड़ भागी चरननि लागि ,युगल नयन वारि बहे ,

मुनि श्राप जो दीन्हा अति भल कीन्हा, परम् अनुग्रह मै माना ,

देखउ भरि लोचन भरि भव मोचन,जेहहि आज शंकर जाना ,

बिनती प्रभु मोरी मै मति भोरी ,नाथ न मानहु पर आना ,

पद कमल परागा बस अनुरागा, मम पद मधुप करे पाना ,

जेहि पद सुर सरिता परम पुनीता, प्रगट भई शिव सीस धरि

सोई पद पंकज जेहि पूजत अज, मम सिर धर उर पारि हरि

एहि भांति सिधानी गौतम नारी,बार बार हरि चरन पड़ी

जो अति मन भावा ,सो हरि पावा, जय पति लोक अनंत गई ।।

प्रभु राम अहिल्या से कहते हैं – देवी आपकी इसमें लेश मात्र भी गलती ना थी और महर्षि गौतम भी अब आपसे क्रोधित नहीं हैं अपितु वो भी दुखी हैं ।अहिल्या के अपने स्वरूप में आते ही कुटिया में बहार आ जाती हैं और पुनः पंछी चहचहाने लगते हैं |

इस तरह प्रभु राम देवी अहिल्या का उद्धार करते हैं |



परम श्रद्धेय प्रेम भूषण जी महाराज कहते है कि
जीवन मे सफलता के लिये तीन ऐसे सहयोगी आवश्यक है ...

   भाई भरत जैसा :  भरत जैसा भाई हो जो प्रभु राम की सोच के अनुरूप कार्य करे । भगवान राम जो सोचते थे भरत जी वही कर देते थे ।

लक्ष्मण जैसा सहयोगी : भगवान राम के साथ साये कि तरह रहने वाले लक्ष्मण जी की तरह सहयोगी नितांत आवश्यक है । क्योंकि लक्ष्मण जी बिना समय गंवाये और कुछ सोचे वह कार्य कर जाते थे जो भगवान राम के लिये जरूरी था ।

सेवक हनुमान : वही सेवक अगर हो तो हनुमान जी की तरह होना चाहिये । भगवान ने आदेश किया यह काम करना है तुरंत बोलते थे हो जाएगा । समुद्र के पार जाना है या संजीवनी बूटी लानी है किसी भी काम मे हनुमान जी ने सवाल नही किया , बस काम को करके ही दम लिया ।

मंत्री एसपी सिंह बघेल का जताया आभार 

टीडी कालेज बलिया के मैदान में श्रीराम कथा का श्रवण करा रहे श्रद्धेय पूज्य प्रेम भूषण जी महाराज ने पांचवे दिन विशेष यजमान के रूप में पहुंचे यूपी सरकार के कैबिनेट मंत्री पशुधन एवं लघु सिंचाई और मत्स्य विभाग , माननीय एसपी सिंह बघेल को गजेटेरियन में सरजू नदी का नाम घाघरा की जगह पर दर्ज करवाने के लिये आभार व्यक्त किया । कहा मैं विगत 15 -16 वर्षों से गजेटेरियन में घाघरा की जगह सरजू दर्ज कराने के लिये प्रयासरत था जिसको अभी हाल में ही माननीय एसपी सिंह बघेल की पहल पर दर्ज कर लिया गया है ।

सम्पति के उत्तराधिकारी की तरह ठाकुर जी की पूजा करने वाले उत्तराधिकारी के चयन की सलाह
घर परिवार में सनातन धर्म अनुरूप आचरण और पंच देवो की पूजा की परंपरा को अनिवार्य बनाने की सलाह दी । कहा जैसे संपत्ति का उत्तराधिकारी चुनते है उसी प्रकार घर मे ठाकुर जी की पूजा आपके बाद भी निरंतर चले इसके लिये परिवार में से उत्तराधिकारी का चुनाव कीजिये । नही तो पश्चात संस्कृति के प्रभाव से हमारे युवा सनातनी व्यवस्था से दूर हो जायेंगे । कहा सनातन धर्म मे प्रतिदिन स्नान ध्यान और स्वच्छ वस्त्र पहनने का विधान है जबकि आजकल एक विदेशी वस्त्र जीन्स आया है जिसको हमारे युवा पहन रहे है और इसको महीनों धुलना नही पड़ता है ।
कहा स्वच्छता और रोज पूजा पाठ की आदत हमारे घर परिवार की उन्नति के साथ ही सनातन धर्म को भी संवृद्धि प्रदान करेगी ।