पुण्यतिथि विशेष : चंद्रशेखर - जिनकी एक आवाज पर सदन में छा जाता था सन्नाटा
मधुसूदन सिंह
बलिया 8 जुलाई 2025।। भरतीय राजनीति में एक ऐसा नाम जिसने कभी झुकना नही सीखा , जिसने कभी कुर्सी के लिये धर्म जाति मजहबो को लड़ाना नही सीखा ,जिसने कभी राजनैतिक विरोधियों को भी जबाब शालीन भाषा मे दिया , जिसके सदन में खड़े होने मात्र से सन्नाटा छा जाता था , जिसके लिये सम्बन्ध सबसे ज्यादे मायने रखते थे , जिसने जो भी कही खरी खरी और बेलाग कही , युवा तुर्क और अध्यक्ष जी आजीवन कहलाने वाले ,ऐसे नेता पूर्व प्रधान मंत्री स्व चंद्रदेखर को आज के दिन कृतज्ञ राष्ट्र व बागी बलिया नमन करता है । चंद्रशेखर जी जब सदन मे खडे होते थे तो पूरे सदन मे सन्नाटा हो जाता था। चंद्रशेखर जी हर छोटी बड़ी बातों का जबाब नहीं देते थे लेकिन जब उनको लगता था कि सदन मे गलत हो रहा है, तो वो तुरंत अपनी आवाज बुलंद करते थे जिससे सरकार को अपनी गलती को सुधारनी पड़ती थी।आज 18 साल पहले जब काल के क्रूर हाथों ने बागी बलिया की पहचान पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर जी को छिना था, तब पूरे बलिया व देश मे एक शोक की दौड़ गयी थी। चाहे देश का सिरमौर मुकुट कहलाने वाला कश्मीर हो या चीन की सीमा से लगा हुए पुर्वोत्तर के राज्य हो या बंगाल हो, चाहे महाराष्ट्र हो, या गुजरात हो, देश का ऐसा एक भी कोना नहीं बचा था, जहां शोक की लहर न दौड़ गयी हो। पुर्वोत्तर व बंगाल के लोग तो दाढ़ी वाले नेता चंद्रशेखर जी को सच बोलने वाला नेता की उपाधि से सम्बोधित करते थे। बिना भय के सच को सच कहने की हिम्मत अगर आजादी के बाद किसी नेता मे थी तो वो थे हमारे चंद्रशेखर जी। चंद्रशेखर जी के लिये राजनीति( वर्तमान दौर के नेताओं की तरह येनकेन प्रकारेण कुर्सी पर चिपके रहने,) जनता के दुख दर्द को बिना किसी भेदभाव के दूर करने का साधन थी। इनके यहां ण जाति की और न मजहब की दिवार खड़ी थी, अगर कोई थी तो वह सद्भावना की चट्टानी दीवार। आज अगर चंद्रशेखर जी के गुणों का 10 प्रतिशत भी कोई नेता आत्मसात कर ले तो समाज मे वह समरसता की नदी बहा देगा।
चन्द्रशेखर का जन्म 17 अप्रैल 1927 में पूर्वी उत्तरप्रदेश के बलिया जिले के इब्राहिमपट्टी का एक कृषक परिवार में हुआ था। इनकी स्कूली शिक्षा भीमपुरा के राम करन इण्टर कॉलेज में हुई। उन्होंने एमए डिग्री इलाहाबाद विश्व विद्यालय से किया। उन्हें विद्यार्थी राजनीति में एक "फायरब्रान्ड" के नाम से जाना जाता था। विद्यार्थी जीवन के पश्चात वह समाजवादी राजनीति में सक्रिय हुए।
1962 से 1977 तक वह भारत के ऊपरी सदन राज्य सभा के सदस्य थे। उन्होंने 1984 में भारत की पदयात्रा की, जिससे उन्होंने भारत को अच्छी तरह से समझने की कोशिश की। इस पदयात्रा से इंदिरा गांधी को थोड़ी घबराहट हुई। सन 1977 मे जब जनता पार्टी की सरकार बनी तो उन्होने मंत्री पद न लेकर जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद लिया था। सन 1977 मे ही वो बलिया जिले से पहली बार लोकसभा के सांसद बने।उन्होंने पहले के नेता विश्व नाथ प्रताप सिंह के इस्तीफ़े के बाद जनता दल से कुछ नेता लेकर समाजवादी जनता पार्टी की स्थापना की और 10 नवंबर 1990 को भारती राष्ट्रीय कांग्रेस ने चुनाव ना करने के लिए समर्थन करने के बाद उनकी छोटे बहुमत की सरकार बन गयी। उन का कांग्रेस से सम्बन्ध बाद मे कांग्रेस ने उनको नेता राजीव गांधी की जासूसी करने के आरोप के कारण से बदल गया। कांग्रेस ने उनके सरकार को सहयोग नकारने के बाद उन्होंने 64 सांसद के समर्थन के साथ इस्तीफा घोषणा कर दी। मन्त्री के पद में 7 महीने तक रहे चन्द्रशेखर 10 मार्च 1991 को पीएम पद से इस्तीफा दे दिया । लेकिन राष्ट्रीय चुनाव होने तक प्रधानमन्त्री का पद संभाला। चन्द्रशेखर उनके संसदीय वार्तालाप के लिए बहुत चर्चित थे। उन्हें 1995 में आउटस्टैंडिंग पार्लिमेंट्रीयन अवॉर्ड भी मिला था।
चन्द्र शेखर भारत के निचले सदन लोक सभा के सदस्य थे। उन्होंने यहाँ समाजवादी जनता पार्टी(राष्ट्रीय)का नेतृत्व किया था। 1977 से उन्होंने लोक सभा का निर्वाचन 8 बार उत्तर प्रदेश के बलिया क्षेत्र से जीता था। सन 1984 मे इन्दिरा गांधी की हत्या से उपजे आक्रोश के कारण एक बार चुनाव हारे थे।
चंद्रदेखर जी को मल्टीपल मायलोमा,एक प्रकार का प्लाज्मा कोष कैंसर हुआ था ।3 मई 2007 को उनको इस रोग के इलाज के लिये गंभीर अवस्था मे दिल्ली के अपोलो अस्पताल में भर्ती कराया गया था , जहां दिन प्रतिदिन इनकी हालत गंभीर होती गयी और 8 जुलाई 2007 को इनका देहावसान हो गया ।
सीधे देश के प्रधानमंत्री बनने वाले नेता थे चंद्रशेखर
चंद्रशेखर से जुड़े कई ऐसे किस्से हैं, जिन्हें आज भी सुनाया जाता है. कहा जाता है कि वो पहले ऐसे प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने राज्य मंत्री या केंद्र में मंत्री बने बिना ही सीधे प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी.
तीखे तेवर वाले नेता थे चंद्रशेखर
चंद्रशेखर सिंह एक प्रखर वक्ता, लोकप्रिय राजनेता, विद्वान लेखक और बेबाक समीक्षक थे. वे अपने तीखे तेवरों और खुलकर बात करने के लिए जाने जाते थे. इस वजह से ज्यादातर लोगों की उनसे पटती नहीं थी. कॉलेज समय से ही वे सामाजिक आंदोलन में शामिल होते थे और बाद में 1951 में सोशलिस्ट पार्टी के फुल टाइम वर्कर बन गए. सोशलिस्ट पार्टी में टूट पड़ी तो चंद्रशेखर कांग्रेस में चले गए.
मंत्री बनने से किया इंकार
हालांकि चंद्रशेखर के बगावती तेवर यहां भी बने रहे. 1975 में इमरजेंसी लागू हुई तो चंद्रशेखर उन कांग्रेसी नेताओं में से एक थे, जिन्हें विपक्षी दल के नेताओं के साथ जेल में ठूंस दिया गया. इमरजेंसी के बाद वे वापस आए और विपक्षी दलों की बनाई गई जनता पार्टी के अध्यक्ष बने. अपनी पार्टी की जब सरकार बनी तो चंद्रशेखर ने मंत्री बनने से इनकार कर दिया. सत्ता के संघर्ष में कभी इस तो कभी उस प्रत्याशी का समर्थन करते रहे.
सात महीनों तक बने प्रधानमंत्री
साल 1990 में उन्हें प्रधानमंत्री बनने का मौका मिला. जब उनकी ही पार्टी के विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार बीजेपी के सपोर्ट वापस लेने के चलते अल्पमत में आ गई. चंद्रशेखर के नेतृत्व में जनता दल में टूट हुई. एक 64 सांसदों का धड़ा अलग हुआ और उसने सरकार बनाने का दावा ठोंक दिया. उस वक्त राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने उन्हें समर्थन दिया.
हालांकि पीएम बनने के बाद चंद्रशेखर ने कांग्रेस के हिसाब से चलने से इंकार कर दिया. सात महीने में ही राजीव गांधी ने सपोर्ट वापस ले लिया. चंद्र शेखर सात महीनों तक प्रधानमंत्री बने. अपने कार्यकाल में उन्होंने डिफेन्स और होम अफेयर्स की जिम्मेदारियों को भी संभाला था.
कांग्रेस की सिफारिश पर भी नही माने और दे दिया इस्तीफा
प्रधानमंत्री चंद्रदेखर पर कांग्रेस नेताओं ने पूर्व पीएम राजीव गांधी के टेलीफोन को टेप कराने का आरोप लगाकर दबाव बनाना शुरू किया था जिसको चंद्रदेखर ने इंकार करते हुए स्पष्ट शब्दों में कहा था कि अगर कांग्रेस का यही रवैया रहा तो मै इस्तीफा दे दूंगा । बता दे कि चन्द्रशेखर उस समय प्रधान मंत्री बने थे जब देश वीपी सिंह के मंडल और आडवाणी जी के कमंडल के कारण जल रहा था । श्री चंद्रदेखर रामजन्म भूमि बाबरी मस्जिद विवाद को समाप्त करने में सफल होने वाले ही थे कि उनकी सरकार से कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया । इससे नाराज चंद्रदेखर जब इस्तीफा देने जाने लगे तो कांग्रेस की तरफ से संदेश आया इस्तीफा मत दीजिये हमारा समर्थन का पत्र आपको मिल जाएगा तब चन्द्रशेखर का जबाब था - एवरेस्ट पर लोग झंडा फहराने के लिये जाते है घर बनाने के लिये नही और इस्तीफा दे दिया ।