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पूरे प्रदेश में हुई संविदा एएनएम की नियुक्ति में धांधली ? पूरी प्रक्रिया के दौरान बदली गयी गाइड लाइन,बलिया में सामान्य सीटों पर आरक्षित वर्ग का कब्जा



मधुसूदन सिंह

बलिया ।। एक तरफ योगी सरकार अपने प्रत्येक कार्य मे पारदर्शिता को महत्व दे रही है तो दूसरी तरफ अधिकारी सरकार की मंशा के विपरीत कार्य करने की जगह ढूंढ ही ले रहे है । ऐसा ही एक मामला एनएचएम के तहत प्रदेश में हुई संविदा एएनएम के चयन और नियुक्ति में सामने आया है । इसकी शुरुआत बलिया जनपद से हुई है जहां 23 सामान्य सीटों पर मात्र 6 का चयन हुआ है शेष पर पिछड़ा वर्ग व अनुसूचित जाति के अभ्यर्थियों का हुआ है । बता दे कि पूरे प्रदेश में लगभग 4 हजार संविदा एएनएम की नियुक्ति हुई है जिसके तहत बलिया जनपद में भी 56 नियुक्तियां हुई है ।




बार बार बदली गयी गाइड लाइन

पूर्व से प्रचलित नियम के अनुसार रिक्तियों के लिए आवेदन मांगते समय ही चयन के लिये कौन कौन से मापदंड होंगे ,इसकी घोषणा कर दी जाती है । इसी घोषणा के तहत आने वाले अभ्यर्थी आवेदन करते है । लेकिन यह पहली नियुक्ति प्रक्रिया है जिसमे आवेदन पत्र जमा करा लेने के बाद लगभग 15 से 20 जूम मीटिंगों के द्वारा हर बार चयन के नियमो में फेरबदल किया गया । चूंकि यह प्रक्रिया योगी सरकार के पहले कार्यकाल के अंतिम दिनों में शुरू की गई थी और लोगो को सरकार के पुनः आने की संभावना कम दिख रही थी, इस लिये निडरता के साथ एक वर्ग विशेष के अभ्यर्थियों को लाभ पहुंचाने के लिये नियमो में कई बार परिवर्तन किया गया ।

जैसे पहली बार सिर्फ अनुभव का प्रमाण मांगा गया था और अनुभव के आधार पर कितना अंक मिलेगा यह दर्शाया गया था । इसी के आधार पर अभ्यर्थियों ने आवेदन किया था । बीच में इसमें परिवर्तन करते हुए कहा गया कि अनुभव देने वाले संस्थान से वेतन पाने का रिकार्ड वेतन पर्ची लगाये । जब इसको भी आवेदकों ने लगा दिया तो फिर नियम बदलते हुए कहा गया कि सरकार द्वारा मान्य संस्थानों से किये गये अनुभव को ही स्वीकार्य किया गया । अगर कोई अभ्यर्थी अपने स्किल डेवलोपमेन्ट के लिये निःशुल्क सेवा किया है,तो उसका अनुभव अस्वीकार्य है ।

दूसरा नियम फॉर्म निकालते समय यह नही कहा गया था कि सिर्फ यूपी के संस्थानों से प्रशिक्षण प्राप्त अभ्यर्थी ही आवेदन करेंगे । इस कारण बहुत से ऐसे आवेदकों ने भी आवेदन किया जिन्होंने यूपी के बाहर से वहां की सरकार द्वारा मान्य संस्थानों से योग्यता प्राप्त की थी । लेकिन बीच मे नियम बदल कर इनको अयोग्य कर दिया गया । जबकि इस नियम को रिक्तियों के लिये प्रकाशित विज्ञापन में ही घोषणा कर देनी चाहिये थी ।

सामान्य वर्ग के हक पर डाका डालने के लिये बदले आरक्षण के नियम

तीसरा संशोधन आरक्षण के प्राविधानों को लेकर किया गया है । सीएमओ बलिया डॉ नीरज कुमार पांडेय ने अपने बयान में साफ तौर से कहा है कि जिस भी आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थिनी का आरक्षण को प्रमाणित करने वाला प्रमाण पत्र (3साल से अधिक का) कालातीत हो गया था, उस अभ्यर्थिनी को आरक्षण वर्ग से हटाकर क्रीमी लेयर का मानते हुए सामान्य कोटे में चयन किया गया है । बता दे कि इस पूरी चयन प्रक्रिया के दौरान वर्तमान सीएमओ डॉ पांडेय नही बल्कि तत्कालीन सीएमओ डॉ कक्कड़ रहे थे जिनको बाद में शासन ने वरिष्ठ परामर्शदाता चिकित्सक के रूप में तबादला कर दिया था । 



बता दे कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसे विवादों पर कई बार फैसले दिये है । फैसलों में साफ तौर पर कहा गया है कि आरक्षण से उन्ही लोगो को सामान्य श्रेणी में भेजा जाएगा जिन्होने आरक्षण के किसी भी प्राविधानों का आवेदन में सहारा न लिया हो । अगर आरक्षण के  एक भी प्राविधान का आवेदन में सहारा ले लिया गया है तो उस अभ्यर्थी की मेरिट चाहे सर्वोच्च ही क्यो न हो, वह अपने आरक्षण वर्ग में ही रहेगा ।

वही यह सर्वमान्य नियम है कि आवेदन में अभ्यर्थी ने जो भी बातें भरी है और उसके समर्थन में वह प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने में असफल हुआ है या उसका प्रमाण पत्र कालातीत हो गया है तो उसके आवेदन को निरस्त कर दिया जाता है क्योंकि अपने कथन के समर्थन में प्रमाण प्रस्तुत करना अभ्यर्थी का दायित्व है , न कि चयन समिति का । क्योकि चयन समिति कोई न्यायालय नही है जो गुण दोष के आधार पर निर्णय करें । चयन समिति के निर्णय से साफ झलक रहा है कि इनकी मंशा सामान्य सीटों पर आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों को लाभ पहुंचाने की थी ।

वही आरसीएच के नोडल अधिकारी डॉ एसके तिवारी से जब इस नियुक्ति के सम्बंध में बात की गई तो उनका साफ कहना था कि चयनित अभ्यर्थियों की या सत्यापन के बाद जो सूची लखनऊ भेजी गई थी, उसकी न तो मुझे जानकारी दी गयी, न ही उन सूचियों पर नोडल अधिकारी होने के बावजूद मुझसे हस्ताक्षर ही कराये गये है । लखनऊ जो भी सूची भेजी गई है उसपर सीएमओ डॉ तन्मय कक्कड़ और डीपीएम डॉ आरबी यादव के ही हस्ताक्षर है ।





जुलाई से जिनका हुआ है तबादला,उस चिकित्सक को सीएमओ दे रहे है वेतन

  विगत जुलाई माह से स्थानांतरण हो जाने के बाद बिना किसी शासन के आदेश के जमे हुए (स्थानांतरण के बाद इनको रिलीव भी कर दिया गया था ) डॉ केशव प्रसाद का यहां कार्य करना लोगो मे चर्चा का विषय बना हुआ है । बता दे कि तत्कालीन सीएमओ डॉ तन्मय कक्कड़ द्वारा अपने स्थानांतरण से पूर्व डॉ केशव प्रसाद को रिलीव भी कर दिया गया था । उसके बाद डॉ केशव का वेतन आहरण रुक गया था । लेकिन डॉ नीरज कुमार पांडेय सीएमओ बलिया ने मार्च 2022 से डॉ केशव प्रसाद के सभी अवशेषों के साथ वेतन देना शुरू कर दिया गया है, ऐसा सूत्रों ने बताया है । अब सवाल यह उठ रहा है कि जिस चिकित्सक का 11 माह पूर्व शासन से स्थानांतरण हो गया हो, योगी सरकार ने किसी के स्थानांतरण को भी निरस्त नही किया है,फिर सीएमओ बलिया डॉ केशव प्रसाद को कैसे वेतन दे सकते है ? 

एडी ने किया शासन के स्थानांतरण को स्थगित

डॉ केशव प्रसाद के मामले में सबसे चौकाने वाला तथ्य यह सामने आया है कि एडी आजमगढ़ ने इनके स्थानांतरण को स्थगित करते हुए सीएमओ बलिया को वेतन देने का आदेश दिया है । सूत्रों की माने तो डॉ केशव प्रसाद ने एडी आजमगढ़ के यहां पत्र भेजकर यह आरोप लगाया था कि सीएमओ बलिया मुझसे काम लेने के बावजूद वेतन नही दे रहे है । बता दे कि जुलाई में पूरे प्रदेश में प्रदेश सरकार ने चिकित्सको के स्थानांतरण किया था जिसमे डॉ केशव प्रसाद का भी हुआ था । इनके साथ के अन्य चिकित्सक रिलीव होकर नई तैनाती वाले जनपदों में कार्यभार ग्रहण कर लिये लेकिन डॉ केशव बलिया ही जमे रहे । तत्कालीन सीएमओ डॉ तन्मय कक्कड़ ने जाते जाते रिलीव कर दिया लेकिन वो आज तक बलिया ही सीएमओ डॉ नीरज कुमार पांडेय और एडी आजमगढ़ की कृपा से बने हुए है । या यूं कहें कि शासन के आदेश पर एडी आजमगढ़ भारी है ।

सरकार कराये जांच,निकल जायेगा फर्जीवाड़ा

इस चयन प्रक्रिया का अंतिम परिणाम मई में घोषित होने के साथ ही इसके खिलाफ शिकायतों का मिलना शुरू हो गया है । लगभग एक दर्जन अभ्यर्थिनीयों ने सीएमओ बलिया को लिखित रूप से शिकायती पत्र देकर अपने चयन न होने को लेकर सवाल उठाये है । इन सभी शिकायती पत्रों को देने वाली अभ्यर्थिनीयों के अंक चयनित अभ्यर्थिनीयों से अधिक है । इस बात को सीएमओ बलिया ने भी स्वीकार किया है और जांच कराकर जांच रिपोर्ट शासन को भेजने की बात कह रहे है । लेकिन क्या जिन की नियुक्ति हो जाएगी, उनको हटा पाना आसान होगा ? क्यो नही जांच के बाद नई सूची के अनुसार नियुक्ति प्रदान की जाय । शासन को इस गंभीर प्रकरण की जांच करानी चाहिये , जिससे शासन की पारदर्शिता की नीति पर कोई अंगुली न उठा सके ।

दो माह तक डीपीएम के पास रहा रिजल्ट,क्या सपा सरकार का था इंतजार

शासन द्वारा साफ कहा गया था कि यह नियुक्ति चुनाव आयोग द्वारा विधानसभा चुनाव के लिये लगायी गयी आचार संहिता से आच्छादित नही है । इसी के तहत एनएचएम के द्वारा इसका परिणाम विधानसभा चुनाव से पूर्व ही घोषित कर दिया गया था लेकिन डीपीएम बलिया डॉ आरबी यादव इसको अपने पास दो माह तक गोपनीय स्तर पर रखे रहे ,इसकी जानकारी इनके अलावा किसी को नही थी । इस से लगता था कि डीपीएम को लगता था कि चुनाव के दरम्यान अगर इस परिणाम को घोषित कर दिया जाएगा तो बवाल हो जायेगा । इनको संभवतः यह भी लग रहा होगा कि तमाम चुनावी सर्वेक्षणों के अनुसार अगली सरकार अखिलेश यादव की बन रही है तो उस समय इसका रिजल्ट घोषित करने पर हो हल्ला भी हुआ तो कुछ नही होगा ।