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नवागत जिलाधिकारी ने संभाला कार्यभार,सामने खड़ा है इन समस्याओं का अंबार





मधुसूदन सिंह

बलिया ।। नवागत जिलाधिकारी इंद्र विक्रम सिंह ने शुक्रवार को बलिया के जिलाधिकारी के रूप में कोषागार में कार्यभार ग्रहण कर लिया । कार्यभार ग्रहण करने के साथ ही श्री सिंह ने कलेक्ट्रेट परिसर व कार्यालय का निरीक्षण किया । बता दे कि 2009 बैच के आईएएस श्री सिंह यहां से पहले शाहजहांपुर में भी जिलाधिकारी के ही पद पर तैनात थे । निर्वतमान जिलाधिकारी अदिति की चाहे आमजन हो या खास के साथ संवादहीनता की परिस्थिति के चलते धीरे धीरे समस्याओं का अंबार लग गया है । क्या नवागत जिलाधिकारी संवादहीनता की स्थिति को समाप्त करेंगे ?अब देखना है कि नवागत जिलाधिकारी कैसे निम्नलिखित समस्याओं से पार कैसे पाते है । निम्नलिखित समस्याएं जो सुरसा की तरह मुंह बाएं खड़ी है --

1- आबकारी विभाग का भी प्रमुख जिलाधिकारी ही होते है । बलिया में लाइसेंसी डिपो से शराब की अवैध तस्करी जोरो पर चल रही है । पुलिस द्वारा अवैध शराब की खेप पकड़ी भी जा रही है और आबकारी विभाग को सम्बंधित के खिलाफ कार्यवाही करने के लिये निर्देशित भी करती है लेकिन जिला आबकारी अधिकारी की तरफ से कोई कार्यवाही होती दिखती नही है । जबकि पकड़ी गई अवैध शराब की पेटी पर लगे "बार कोड " से यह साफ पता चल जाता है कि यह माल किस डिपो से निकला हुआ है ।

डिपो से ग्रामीण सीमावर्ती लाइसेंसियों के नाम पर फर्जी बिल के माध्यम से (फर्जी इस लिये क्योकि लाइसेंसी द्वारा माल खरीदने का आदेश दिया ही नही गया रहता है ) होता है । इसकी पुष्टि डिपो के सेल्स रजिस्टर और लाइसेंसियों के क्रय रजिस्टर की जांच करने से साफ पता चल जायेगा । अगर अवैध कारोबारियों पर कार्यवाही नही हो रही है तो निश्चित है कि इसमें सरकारी कर्मियों की मिलीभगत जरूर है । जांच से साफ हो जाएगा कि कौन सा डिपो है जो अवैध तस्करी के धंधे में शामिल है ।



2- किसी भी शहर की पहचान उसकी साफ सफाई,नालियों की सफाई,सड़क पर रोशनी आदि से होती है । जिला मुख्यालय नगर पालिका परिषद के जिम्मे है । लेकिन नगर पालिका में भ्रष्टाचार इस कदर जड़ जमा चुका है कि पूरा शहर गंदगी,नालियों की समय से सफाई न होने और जलभराव की समस्याओं से जूझ रहा है । इन सबके लिये चाहे चेयरमैन हो,मंत्री जी हो, कर्मचारी यूनियन हो, सब ने अधिशाषी अधिकारी दिनेश विश्वकर्मा को जिम्मेदार ठहराते हुए जिलाधिकारी,मंडलायुक्त,निदेशक प्रशासन,प्रमुख सचिव, नगर विकास मंत्री से लगायत मुख्यमंत्री जी तक शिकायतें कर रखी है । इन लगभग दो दर्जन से अधिक शिकायतों पर जांच भी हो चुकी है । सभी जांच रिपोर्ट जिलाधिकारी के पास पहुंचने के पास न जाने कहां गुम हो गयी है । या यूं कहें कि विभागीय मिलीभगत से वो जांच रिपोर्ट्स जिलाधिकारी के सामने पहुंची ही नही । ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या नगर पालिका के भ्रष्टाचार को प्रश्रय देने वाले ईओ के खिलाफ हुई जांच रिपोर्टों के आधार पर नवागत जिलाधिकारी कार्यवाही करते है ।









3- कलेक्ट्रेट जिलाधिकारी का ही कार्यालय होता है । इस कार्यालय को चलाने के लिये बाबुओं में वरिष्ठतम को प्रशासनिक अधिकारी बनाया जाता है । इस कार्यालय में प्रशासनिक अधिकारी व नजारत बाबू के दो पद काफी महत्वपूर्ण होता है । प्रशासनिक अधिकारी के पास जहां कार्यालय को सुचारू रूप से चलाने की जिम्मेदारी होती है तो वही नजारत बाबू के पास पूरे कलेक्ट्रेट के मरम्मत व अन्य साजो सामान की खरीद व मरम्मत की जिम्मेदारी होती है । ये दोनों कार्य काफी महत्वपूर्ण होने के कारण यह हमेशा दो लोगो के जिम्मे होता है । लेकिन वर्तमान में पिछले दो सालों से प्रशासनिक अधिकारी के पास दोनों दायित्व है । प्रशासनिक अधिकारी पर कई बार सरकारी आवासों के आवंटन में धन उगाही और अपात्र को भी पात्रता से ऊपर का आवास आवंटित करने का आरोप लगा ,पर कोई कार्यवाही नही हुई । अब देखना है नवागत जिलाधिकारी अपने ही कार्यालय की इस विसंगति को दूर करते है कि नही ।

4- जनपद की तहसीलों में आजकल एक नया धन उगाही का ट्रेंड चल निकला है । रजिस्ट्री कराने के बाद जब क्रेता अपना सम्बंधित भू खण्ड पर नाम दर्ज कराने के लिये जब तहसीलदार कोर्ट पहुंचता है तो पता चलता है कि उसके कबाले पर आपत्ति दाखिल की गई है । यह आपत्ति उस व्यक्ति द्वारा दाखिल की गई रहती है जो न तो सह खातेदार होता है, न पट्टीदार होता है,उस व्यक्ति का भू खण्ड से कोई रिश्ता नही होता है । आपत्ति दाखिल करते वक्त एक आवेदन देकर आपत्ति दाखिल करने के लिये समय मांगा जाता है , जो कोर्ट से बिना परीक्षण के दे दिया जाता है । अब क्रेता को तारीख दर तारीख इतना दौड़ाया जाता है कि अंततः वह टूट कर तहसील कर्मियों को एक मोटी रकम चढ़ावे के रूप में देता है,तब उसका नाम उसकी जमीन पर दर्ज हो पाता है । अब देखना है नये डीएम साहब के कार्यकाल में इस गोरखधंधे पर रोक लगती है कि नही ।

5- बलिया का सीएमओ कार्यालय खाला का घर बन गया है । वैसे तो यहां भी आज ही नये सीएमओ डॉ नीरज पांडेय कार्यभार ग्रहण करने वाले है । ये इसको कैसे चलाते है यह आने वाला समय बतायेगा । लेकिन जिला स्वास्थ्य समिति का मुखिया होने के कारण जिलाधिकारी का भी दायित्व है कि इस कार्यालय की खोज खबर भी गाहे बगाहे लेते रहे । तत्कालीन जिलाधिकारी भवानी सिंह खंगरौता के बाद से किसी भी जिलाधिकारी ने इस कार्यालय की मीटिंगों के अलावा जाकर जांच करने की जहमत नही उठायी है ।

बता दे कि यहां पर गैर जनपदों से कई बाबू आये हुए है । इनके पास महत्वपूर्ण पटलों का चार्ज भी है लेकिन इनको ढूंढना टेढ़ी खीर है क्योंकि अधिकतर दिनों में ये बिना छुट्टी के ही मुख्यालय से गायब रहते है । इनकी इस हरकत के लिये पिछले दो अप्रवासी सीएमओ जिम्मेदार है । अब देखना है कि नवागत जिलाधिकारी व सीएमओ दोनों लोग मिलकर कैसे इस रोग का इलाज करते है ।

6- बलिया छोड़कर ऐसा कोई जनपद नही है, जहां पत्रकारों को बैठने के लिये निर्धारित सरकारी ऑफिस नही है । बलिया ही एक ऐसा जनपद है जहाँ पत्रकारों को जिलाधिकारी कार्यालय के सामने अपने अपने वाहनों पर बैठना पड़ता है । जबकि कलेक्ट्रेट परिसर में ही कई ऐसे स्थान है जहां पत्रकारों को बैठने के लिये आवंटित किया जा सकता है । अब देखना है कि नवागत जिलाधिकारी पत्रकारों को बैठने के लिये एक अदद ऑफिस दिला पाते है कि नही ।

वैसे तो समस्याओं का अंबार है । सालो से एनसीसी तिराहे से कुंवर सिंह चौराहा होते हुए बिजली विभाग तक एक बड़ा नाला बन रहा है,लेकिन कब तक बनेगा, इसकी कोई निश्चित समय सीमा नही होने से पूरी सिविल लाइन्स एरिया जलभराव की समस्या, मच्छरों की समस्या से जूझ रही है । इसको देखने वाला कोई माई बाप नही दिख रहा है । देखना है कि क्या यह समस्या जिलाधिकारी की प्राथमिकता में रहेगी ।