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ज्ञान से ही मुक्ति संभव,अपूर्णता में पूर्णता का प्रतीक है कलश यात्रा

 



बलिया ।।हरिद्वार से आये विद्वान आचार्य डा. गायत्री किशोर त्रिवेदी ने प्रवचन के दौरान कहा कि देव निष्ठ तपोमूर्ति पं. श्रीराम शर्मा आचार्य की परिकल्पना थी कि मानव में देवत्व का जागरण तभी संभव है जब वह गायत्री महाविद्या के द्वारा संस्कारित हो।गायत्री मंत्र को जीवन में उतारने के लिए दक्ष गुरु की आवश्यकता पड़ती है। हमारे यहां मान्यता रही है कि बिना गुरु के गायत्री मंत्र फलित नहीं होता है । गायत्री महाविद्या के अध्ययन से ही मानव के सभी संस्कारों को जागृत किया जाता है। इसके लिए दीक्षा की आवश्यकता पड़ती है ।

 दीक्षा का मतलब बताते हुए डा.त्रिवेदी ने कहा कि दीयते ज्ञान सद्भावः,क्षीयते पशुबन्धनम् ।दानक्षयण संयुक्ता दीक्षा तेनेह कीर्तिताः अर्थात ज्ञान सद्भाव को देना और पशुता के बंधनों का क्षरण करना दोनों ही संयुक्त रूप से दीक्षा का योग फैलाते हैं।साधक के जीवन में ज्ञान व सद्भाव की वृद्धि हो और पशुता के बंधन अज्ञान, अभाव, आसक्ति का पूरी तरह से समापन हो जाए। आचार्य श्री ने गायत्री महाविद्या को जन-जन में प्रतिष्ठित करने के लिए अपने संपूर्ण जीवन को लगा दिया।उनका उद्देश्य था कि जब तक मनुष्य में उत्तम ज्ञान की प्रतिष्ठा नहीं होगा, तब तक असभ्य ही रहेगा।ज्ञान से मुक्ति संभव है इसलिए गायत्री महाविद्या जरुरी है।इस दौरान संगीत के आचार्य श्रीहरि चौधरी, दिनेश पटेल, दयानंद शिववंशी, मनीषजी व भूषणजी रहे।





सोमवार को सुबह 8 बजे से आरंभ होगा यज्ञ

बलिया।महावीर घाट स्थित 108 कुंडीय गायत्री महायज्ञ के तीसरे दिन सोमवार को सुबह आठ बजे से यज्ञ प्रारंभ होगा।इस दौरान विभिन्न संस्कार भी किये जायेंगे।यह जानकारी गायत्री शक्तिपीठ प्रमुख विजेंद्र नाथ चौबे ने दी । बताया कि यज्ञ के दौरान बच्चों का अन्नप्राशन संस्कार, विद्यारंभ संस्कार,मुण्डन संस्कार, उपनयन संस्कार, यज्ञोपवीत संस्कार आदि होगें।संबंधित लोग अपना रजिस्ट्रेशन समय से करा लें और दिक्षा लेने का समाग्री की खरीद ले।बताया कि शाम को दीप यज्ञ भी होगा।जो लोग दीप प्रज्वलित करना चाहते है अपने घरों से दीपक व तैल भी साथ लेते आवें।

यज्ञ से पहले मंगल कलश यात्रा निकालना हमारी सनातनी परंपरा,अपूर्णता में पूर्णता का प्रतीक है कलश यात्रा

 बलिया।महावीर घाट स्थित गायत्री शक्तिपीठ के प्रागंण में चल रहे 108 कुंडीय गायत्री महायज्ञ के दौरान देव संस्कृत विश्वविद्यालय शांतिकुंज हरिद्वार के एसोसिएट प्रोफेसर डा. गायत्री किशोर त्रिवेदी ने कहा कि यज्ञ प्रारंभ करने से पूर्व मंगल कलश निकालने का परंपरा हमारे सनातन धर्म का है ,जो किसी देवालय, सरोवर या नदी से जल लेकर निकाला जाता है।इसका उद्देश्य है कि धर्म के प्रति सभी हो,विशेष रूप से नारियों को एक करने का अनुपम प्रयोग है।कहा कि समाज की खुशहाली के लिए नर-नारी दोनों की जरुरत पड़ती है,अकेले दोनों ही अपूर्ण है।अपूर्णता में पूर्णता का प्रतीक है कलश यात्रा ।

किसी भी कार्य को पूर्ण करने के लिए सभी जाति संप्रदाय की आवश्यकता होती है।जब तक हम सभी एक नहीं होगें समाज के कार्यों को हम पूर्ण गति नहीं दे सकते।इसी लिए इस कलशयात्रा का धार्मिक मान्यता दी गई है।कलश धारण करने वालों की लम्बी उम्र, स्वास्थ्य शरीर व मन में शुभ संकल्प का जागरण होता है।इस दौरान संगीत के आचार्य श्रीहरि चौधरी,दिनेश पटेल, दयानंद शिववंशी, मनीषजी व भूषण जी विभिन्न सजों के जरिये उनका साथ दिया।


भक्ति संगीत सुन श्रद्धालु हुए मंत्रमुग्ध

बलिया।मां गायत्री के वार्षिकोत्सव के अवसर पर चल रहे108 कुंडीय गायत्री महायज्ञ के दौरान हरिद्वार से आये संगीत के आचार्य श्रीहरि चौधरी ने धर्म कार्यो की महत्ता बताते हुए।संगीत के जरिए लोगों को सार्थक व ज्ञान वर्धक संगीत सुनाया।कहा कि 

आया बुढापा जब जानी, दगा दे गई जवानी

पहला बुढापा तेरे बालों में आया,

दूसरा बुढापा तेरे आखों में आया,चस्मा की हो गई मेहरबानी।

तीसरा बुढापा तेरे कमर में आया,

लाठी की हो गई मेहरबानी। दगा दे गई ...।

चौथा बुढापा तेरे दातों में आया,

नकली दातों की हो गई मेहरबानी दगा दे गई जवानी।

अइल कुछ ना कइल,ई हो देहिया ताहर जिन्दगी के भार हो जाई ।जैसे प्रेरणादायक संगीत सुनाकर मत्रमुग्ध कर दिया।इस दौरान श्रोता तालियां बजाकर झूमते रहे।