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देश मे हिंसक झड़पों में बढ़ोत्तरी के लिये मीडिया भी जिम्मेदार : अतिरेक प्रसारण पर लगें रोक,प्रसारण की स्वतंत्रता पर अंकुश जरूरी



मधुसूदन सिंह

बलिया ।। देश के 72 वे गणतंत्र दिवस पर राजधानी में जो कुछ हुआ उसकी जितनी भी निंदा की जाय कम है । 26 जनवरी का दिन देश की सामरिक शक्ति प्रदर्शन का दिन होता है ,दुनिया के साथ साथ हमारे धुर विरोधी चीन व पाकिस्तान भी इस प्रदर्शन को टकटकी लगाये देखते है और हमारी ताकत को देखकर अंदर ही अंदर सिहर जाते है । आज के दिन मीडिया भी भारत के सैन्य पराक्रम को दिनभर दिखाकर दुनियां में भारत के परचम को लहराने का काम करती थी । लेकिन दुर्भाग्य है कि मात्र कुछ ही सालों से मीडिया घरानों ने अपनी टीआरपी बढ़ाने के चक्कर मे समाज मे ऐसी ऐसी सामग्रियां दर्शकों के सामने परोसने में लग गयी है, जिसकी कोई आवश्यकता नही होती है ।

  अभी 26 जनवरी 2021 को ही ले लीजिये । यह दिन राष्ट्र के संप्रभुता सम्पन्न देश होने की पावन तिथि है । इस दिन देश हित के अतिरिक्त किसी अन्य समाचारों को प्रमुखता के साथ दिखाने की कोई आवश्यकता नही थी । लेकिन मीडिया ने मिली अपनी स्वतंत्रता का नाजायज फायदा उठाया और किसान आंदोलन की एक जगह की झड़प को दूसरी जगह पहुंचाने में अपनी तरफ से कोई कोर कसर नही रखी । यह मीडिया का अतिरेक चेहरा था जो किसान पुलिस संघर्ष को और बढ़ा दिया । लाल किले में घुसे अतिवादी किसानों को ऐसे प्रमुखता से दिखा रहे थे, जैसे देश पर विदेशियों का कब्जा हो रहा हो । यह मीडिया की स्वतंत्रता का विभत्स प्रसारण था ।

  केंद्र सरकार यहां पर चूक गयी । जब तय समयावधि के पहले ही किसान घुसने की कोशिश करने लगे तो तत्काल इंटरनेट सुविधा को बंद कर देनी चाहिये थी । अगर केंद्र सरकार मुम्बई पर हुए पिछले आतंकी हमलों के बाद तत्कालीन केंद्र सरकार की तरह लाइव प्रसारण पर तत्काल रोक लगा दी होती तो शायद यह देश विदेश में इस रूप में प्रसारित नही होता । किसानों और पुलिस में टकराव संभावित था । तो क्या एक एक पत्थर,लाठी चलने की लाइव तस्वीरों का प्रसारण जरूरी था ? क्या इसके प्रसारण को रोक कर 26 जनवरी की परेड में दिखाई गई शौर्यगाथा का प्रसारण जरूरी नही था ? क्या इस लाइव प्रसारण से किसानों के मध्य सरकार की छवि को तारतार करने का कुचक्र नही किया गया ?जो देश के किसान अभी इस आंदोलन को समझ नही पा रहे थे,उनके दिलों में भी सरकार की छवि को अतिरेक प्रसारण से नुकसान नही पहुंचाया गया ?

वही हमारी सरकार भी अभी हाल में ही अमेरिकी संसद पर हुए ट्रंप समर्थको के घुसने की घटना से लगता है सबक नही ली थी । प्रशासनिक रणनीतिकारों को यह अंदेशा ही नही हुआ कि किसान ट्रैक्टरों से हमला भी कर सकते है ? इस आंदोलन में सबसे बड़ी दुखद और आश्चर्यजनक चीज यह हुई है कि इस आंदोलन को समाप्त कराने के लिये अबतक जो भी प्रयास हुए है,वह कही से भी नही लगे कि इससे आंदोलन खत्म हो सकता है । 11 दौर की वार्ता के वावजूद अगर सरकार का शीर्ष नेतृत्व चुप्पी साधे रहेगा,तो आंदोलनकारियों में असंतोष तो फैलेगा ही ? 26 जनवरी की हुई घटना को सबक लेते हुए सरकार को ऐसा प्रयास करना चाहिये जिससे यह आंदोलन जल्द से जल्द खत्म हो जाय,अन्यथा जो मीडिया आपका मित्र बनकर आपकी कमियों को आज छुपाकर सिर्फ अच्छाइयों का गुणगान कर रही है,कल यही आपकी कमियों को आपके कमजोर होते ही स्टूडियो में पानी पी पीकर उजागर करने का काम करेगी ? सरकार को भी ऐसे अंध भक्त समर्थको की राय की जगह स्वविवेक से कार्य करना चाहिये क्योंकि कहा भी गया है कि "निंदक नियरे रखिये आंगन कुटी छवाय" अर्थात जो आपकी गलत नीतियों को दर्शाये वो आपका दुश्मन नही सबसे बड़ा हितैषी होता है और जो आपकी गलतियों को छुपाकर सिर्फ अच्छाइयों को बताकर जी हुजूरी में लगा रहता है वह सबसे बड़ा दुश्मन होता है ।

अब समय आ गया है कि सरकार को तय करना चाहिये कि मीडिया प्रसारण में कौन सी चीज दिखाई जाय, कौन सी नही । किस घटना का लाइव प्रसारण हो, किसका नही ? क्योकि आज मीडिया ही पुलिस,वकील और अदालत के साथ साथ सरकार भी बनती जा रही है । मीडिया की इस प्रवृत्ति पर अंकुश लगाना जरूरी है । अगर ऐसा नही हुआ तो आगामी पश्चिम बंगाल के चुनाव से पहले असामाजिक तत्व देश मे दंगा फसाद करा देंगे और मीडिया  लाइव प्रसारण करते हुए दंगे की लपटों को विकराल बनाने में आग में घी जैसा काम कर देगी ।