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OPINION: कांग्रेस को 'बड़े भाई' की भूमिका देने से क्षत्रपों को ऐतराज़, अब महागठबंधन में होगा मंथन




9 दिसम्बर 2018 ।।

(पल्लवी घोष)
पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे मंगलवार को आने वाले हैं. इसी दिन से यानी 11 दिसंबर से संसद का शीतकालीन सत्र शुरू होने जा रहा है. ऐसे में दिल्ली में नेताओं की गहमागहमी बढ़ने लगी है. अगले कुछ दिनों में कई क्षेत्रीय दल के नेता दिल्ली में डेरा डालने जा रहे हैं. ये सब मिलकर 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को हराने की रणनीति पर यहां चर्चा करने वाले हैं.

हालांकि इस बैठक से पहले ही महागठबंधन में दरारें दिखने लगी है. विपक्षी दलों की एकता पर सवाल उठने लगे हैं. आपको बता दें कि महागठबंधन की बैठक पहले भी रद्द की जा चुकी है. उस वक्त ममता बनर्जी ने कहते हुए बैठक में शामिल होने से इनकार कर दिया था कि महागठबंधन की मीटिंग फिलहाल थोड़ी जल्दबाजी होगी.

कहा जा रहा है कि समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव और बीएसपी सुप्रीमो मायावती भी इस बैठक से कन्नी काट रही हैं. उत्तर प्रदेश में इन दोनों दलों का दबदबा रहा है. कहा जाता है कि दिल्ली में सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है. साल 2014 में भी उत्तर प्रदेश में धमाकेदार जीत के बाद ही केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनी थी. ऐसे में महागठबंधन में अखिलेश यादव और मायावती बड़ी भूमिका चाहते हैं, लेकिन बाकी दलों ने इन दोनों को बड़ी भूमिका देने को लेकर अभी तक कोई सहमति नहीं बनाई है.

इन दोनों के लिए समस्या की असल जड़ कांग्रेस भी है. अखिलेश यादव और मायावती ने यह साफ कर दिया है कि वह कांग्रेस को 'बड़े भाई' की भूमिका में नहीं देखते हैं. इसकी झलक हमें मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में देखने को मिल चुकी है. इन दोनों की पार्टी ने यहां कांग्रेस के साथ कोई गठबंधन नहीं किया. ऐसे में कांग्रेस के लिए नेतृत्व पर दावेदारी ठोंकना आसान नहीं होगा.

साल 2004 में हालात थोड़े अलग थे. तब कांग्रेस उतनी कमज़ोर नहीं थी. कुछ राज्यों में कांग्रेस की सरकार भी थी. खासकर उस वक्त न तो क्षेत्रीय दल इतने मजबूत थे और न ही वो राष्ट्रीय राजनीति में आने को इतने इच्छुक थे. ऐसे में कांग्रेस जीतनी कमज़ोर होगी, क्षेत्रीय दलों की ताकत उतनी ही ज़्यादा बढ़ेगी.

कांग्रेस के 'बड़े भाई' को तमगा दिए जाने से ममता बनर्जी भी खुश नहीं है. पिछले महीने ममता इस बात से नाराज हो गई थीं कि बिना उनसे बातचीत किए चंद्रबाबू नायडू और अशोक गहलोत ने महागठबंधन की बैठक बुला ली थी. इसके बाद जब नायडू ने कोलकाता में ममता से मुलाकात की तो महागठबंधन की बैठक को टाल दिया गया.

महागठबंधन के नेता को लेकर खींचतान चल रही है. इसके अलावा पार्टियां महागठबंधन में अपने फायदे भी देख रही है. पिछले कुछ समय से इस मुद्दे पर बातचीत नहीं हुई, लेकिन नरेंद्र मोदी से मुकाबला करने के लिए विपक्षी दलों को किसी एक नेता को सामने लाना होगा. ऐसे में बीजेपी को इसका फायदा मिल सकता है.

विपक्षी दलों की सोमवार को होने वाली बैठक में इन मुद्दों पर चर्चा हो सकती है. इसके अलावा बैठक में शीतकालीन सत्र के दौरान बीजेपी से मुकाबला करने के लिए रणनीति तय की जाएगी. साथ ही 2019 में होने वाले चुनाव का ब्लूप्रिंट भी तैयार किया जाएगा. इसके अलावा राम मंदिर और इकोनॉमिक पॉलिसी पर भी चर्चा हो सकती है.

महागठबंधन में राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर सिर्फ कांग्रेस ही है. ऐसे में अगर चुनाव में कांग्रेस का खराब प्रदर्शन रहा तो फिर दूसरी क्षेत्रीय पार्टियां उन्हें नजरअंदाज कर सकती है. इसका फायदा बीजेपी को मिल सकता है.
(साभार न्यूज18)