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बलिया : श्रीराम कथा के छठवें दिन प्रेमभूषण जी ने "झुकि जइयो ललन इक बार , किशोरी मोरी छोटी सी" गीत पर श्रोताओं को खूब झुमाया












 श्रीराम कथा के छठवें दिन श्रीराम सीता के साथ भरत लखन और शत्रुघ्न की शादी का सुनाया प्रसंग
विवाह के बाद विदाई के प्रसंग में गीत संगीत से लायी सजीवता
श्रोता हुए मंत्रमुग्ध 
मधुसूदन सिंह
बलिया 17 दिसम्बर 2018 ।।स्थानीय टीडी कालेज बलिया के मैदान में भाजपा प्रदेश उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह के द्वारा आयोजित  नौ दिवसीय श्रीराम कथा के छठवें दिन  कथावाचक परम् पूज्य स्वामी प्रेम भूषण जी महाराज ने भगवान राम सीता जी के विवाह से लेकर  सीता विदाई तक के  प्रसंग का सुंदर वर्णन किया । कथा प्रारम्भ होने से पूर्व स्वामी प्रेम भूषण जी महाराज के आसन पर पहुंचने के बाद इस आयोजन के यजमान विंध्यांचल सिंह एवं श्रीमती तेतरी सिंह (माता पिता श्री दयाशंकर सिंह ), विशेष यजमान माननीय मंत्री ओम प्रकाश राजभर , माननीय मंत्री उपेंद्र तिवारी ,डॉ धर्मेंद्र सिंह क्षेत्रीय अध्यक्ष भाजपा , दयाशंकर सिंह   , पीएन सिंह पूर्व प्रधानाचार्य , ईश्वर दयाल मिश्र प्रधान मानस परिवार बलिया, सुनील सिंह मंत्री प्रतिनिधि एवं भासपा प्रदेश प्रवक्ता , राजेश गुप्त नगर अध्यक्ष भाजपा , अशोक सिंह ,राजा राम सिंह , पिंटू सिंह सदस्य जिला पंचायत , कृष्ण कुमार सिंह , धर्मेंद्र सिंह, गिरिजेश दत्त शुक्ल प्रधानाचार्य ,गिरीश नारायण चतुर्वेदी ,ईश्वरन श्री सीए , बृजेश सिंह पूर्व अध्यक्ष छात्र संघ ने भगवान भोलेनाथ , भगवान श्रीराम को सपरिवार पूजन अर्चन किया ।

कथा सुना रहे परम् पूज्य प्रेम भूषण जी महाराज ने श्रीराम सीता व्याह और सीता विदाई के प्रसंग को पारंपरिक तरीके से अपने गीत आदि के माध्यम से सुनाकर सभी श्रोताओं को  मंत्रमुग्ध कर सियाराम मय कर दिया ।
धनुष भंग के बाद जयमाल लेकर खड़ी जनक नंदिनी की सहेली श्रीराम से कहती है --
झुकि जइयो ललन  एक बार ,किशोरी मोरी छोटी सी ...
  सुनियो विनय दशरथ जी के लाला,
पहिरो आज विजय जयमाला,
हम गावें मंगलाचार , किशोरी मोरी छोटी सी ...
व्याह उछाह सुमंगल गावें
नगरवासी लोचन फल पावें
तव जुगल चरन बलिहार , किशोरी मोरी ....
गिरिधर प्रभु झुकि माला लीजै
लोचन लाभ सखिन्ह कहुँ दीजै
हम गावें सुमंगलाचार , किशोरी मोरी छोटी सी
झुकि जइयो ललन इक बार , किशोरी मोरी छोटी सी ।।


माता सीता की सहेली के कहने पर प्रभु श्रीराम झुकते है । यह देख सहेली सीता जी को इशारे से वरमाला पहनाने को कहती है लेकिन प्रेम में विह्वल सीता जी खड़ी ही रहती है जब पुनः सखी कहती है तब सीता जी सकुचाते हुए प्रभु राम के गले मे वरमाला डालती है ।
वरमाला हाथों में लिया सीता जी के हाथों की शोभा कमल दंड को भी अपनी सुंदरता से लज्जित करने वाला गोस्वामी जी कह रहे है ।
मंच पर सियाराम की जोड़ी को देखकर सखियां गीत गाती है --
दूल्हा के रंग आसमानी लली के रंग बादामी ...
काली काली जुल्फे ,और केश घुंघराले
कुसुम कली मनमानी , लखत हिय हुलसनी
 दूल्हा के रंग ......
नैन कजरारे , अधर अरुनारे
मधुर मधुर मुस्कानी, लखत भई दीवानी
दूल्हा के रंग .....
चन्द्र बदन मुख, अम्बुज लाली
चितवन अमीय रस सानी , बिबस भई मिथिलानी
दूल्हा के रंग ......
प्रेम प्रमोद को , बादल बरसत
सखी प्रेम रंग में रंगानी, सकल जग बिसरानी
दूल्हा के रंग .....
गिरिधर यह छबि , देखि हरष हिय
गदगद भई बर बानी,दशा अति हरषानी
दुलहा के रंग ...... ।।

गोस्वामी जी यहां गले मे वरमाला पहने प्रभु श्रीराम की शोभा का वर्णन करते हुए कहते है -- प्रभु की सुंदरता को देखकर धनुष तोड़ने की लालसा रखने वाले राजा इस तरह लज्जित हो  रहे है जैसे सूर्य के निकलने के बाद कुमुदनियां लज्जित होती है , राजा जनक के परिजन मित्र रिश्तेदार भगवान को पुत्र रूप में देखकर आनन्दित हो रहे है , तो देवता ऋषि मुनि परमपिता परमात्मा के रूप में देखकर अलौकिक आनन्द की अनुभूति कर रहे है ।
भगवान राम द्वारा जनक नंदिनी सीता के गले मे जयमाला पहनाने के बाद पूरा समाज हर्षित होकर जय जयकार करने लगा ।
इसी बीच धनुष टूटने की खबर पाकर भगवान परशुराम आते है । आते ही जनक जी से कहते है - कहू जड़ जनक धनुष केहि तोड़ा ....
जब संकोचवश जनक जी उत्तर नही देते है तो रामचंद्र जी कहते है -- नाथ शम्भू धनु भंजन हारा , होइहे कोई इक दास तुम्हारा ...
इस पर परशुराम जी और क्रोधित होते है । तब लक्ष्मण जी से परशुराम जी का कड़क संवाद होता है ।  एक समय तो परशुराम जी और राम जी मे युद्ध की नौबत आ जाती है लेकिन प्रभुराम अपनी सहनशीलता और बुद्धिमत्ता से बचाते हुए कहते है - नाथ क्षत्रिय होने के नाते तो हम काल से भी नही डरते है लेकिन ब्राह्मणों पर शस्त्र नही उठाने की हमारे रघुकुल की रीति है । हमारी आपकी तुलना कैसे
 आपके पास नौ गुण है जबकि मेरे पास तो एक ही गुण है । इस बात को सुनकर परशुराम जी को रामावतार होने का आभास होता है और अपना धनुष श्रीराम को देकर प्रत्यंचा चढ़वा कर पुष्टि करते है और युगल जोड़ी को प्रणाम कर जंगल को तपस्या के लिये चले जाते है ।
  राजा जनक अपने कुलगुरु शतानन्द जी से विचार विमर्श करके दूत के माध्यम से श्रीराम सीता के व्याह होने की सूचना अयोध्या भेजवाते है ।
दूत पाती लेकर अयोध्या राजा दशरथ के दरबार मे जाता है और कहता है ---
हम त पाती लेइके आवत बानी पार से , राजा जनक दरबार से ना ।
हमरा घरवा जनक नगरिया, राजन अइली भूप दुअरिया
मनवा रीझ गइले महिमा अपरम्पार से ...
हमरा राजा जनक के धिया ,जिनकर नाम बाटे सीया
उनकर शादी होइहे कोशल राजकुमार से ....
सिय के शांति रूप जब जनलें,बाबा जनक धनुष प्रण ठनलें
रचना रचले सिया स्वयंवर के विचार से ....राजा जनक ..
जुटले बड़े बड़े भट भूप , धनुहा देखि के बैठे चुप
तिलभर धनुष उठल ना कौनो बीर बरियार से , राजा जनक .....
तहवाँ राजन राउर लाल, पवले धनुष तोड़ जयमाल
तीनो लोक भरल रघुवर के जय जयकार से , राजा जनक ...
पाती लिखल बाटे थोड़ा, जल्दी साजी हाथी घोड़ा
बिनती करजोरी करत बानी सरकार से , राजा जनक ...।।
इस गीत के साथ पूरा पंडाल करतल ध्वनि से गूँजता रहा ।
यह शुभ समाचार सुनते ही राजा दशरथ की खुशी का ठिकाना नही रहा । राजा दूत को इनाम देने लगते है तो वह मना करते हुए कहता है - महाराज राजकुमारी सीता हम लोगो की बेटी है और हम लोगो बेटी के घर का कुछ लेते नही है । देना ही है तो तुरंत बारात सजाकर जनकपुर चलिये । इसके बाद राजा दशरथ तुरंत सादर गुरु वशिष्ठ को बुलाते है और राजा जनक की पाती देते है । विश्वामित्र जी भी प्रसन्न होते है और कहते है राजन यह आपकी धर्मशीलता का परिणाम है ।सभी लोग बातचीत करके और तैयारी के साथ जनकपुर के लिये बारात सजाकर निकल पड़े । बारात जनकपुर शुभ मुहूर्त से एक पक्ष पहले ही पहुंच जाती है । राजा जनक राजा दशरथ गुरु वशिष्ठ के साथ ही सभी बारातियों का स्वागत करके अति विशिष्ठ अतिथिगृह में ठहराते है । 15 दिन बाद शादी का शुभ मुहूर्त निकलता है ।

अवध नगरिया से चलली बरियतिया
हे सुहावन लागे।।
जनक नगरिया भइले शोर
हे सुहावन लागे ....
सब देवतन मिलि, चलले बरियतिया
हे सुहावन लागे
बजवा बजेला घनघोर
हे सुहावन लागे ...
बजवा के शब्द सुनि ,हुलसे मोर छतिया
हे सुहावन लागे ....
परिछन को चलली सब, सखियां सहेलियां
हे सुहावन लागे ....
पहिरेली लहंगा पटोर
हे सुहावन लागे ...
कहत "रसिक"जन,दूलहा के सुरतिया
हे सुहावन लागे ....
सुफल मनोरथ भइले मोर
हे सुहावन लागे .....

 शादी के दिन गुरु वशिष्ठ राजा दशरथ के साथ चारो भाई मंडप में आते है ।
भगवान राम जब मंडवा में जाते है तो स्त्रियां गीत गाती है ---
राघव धीरे चलो, ससुराल गालियां
मिथिला की नारि नवेली ,
मोहित छवि लखि रंगरलियां .. राघव...
पीत उपरना,कानन कुंडल
लटकत माथे मौर लारियाँ
राघव धीरे चलो....
तुमहि बिलोकि न नजरा लगावें
जनक नगर की सब आलिया
राघव धीरे ...
मुनि तिय ज्यों पद, परसि तिहारो
हीरा मोति मनि होइहैं लारियाँ
राघव धीरे चलो...
गिरिधर प्रभु लखि, प्रेम बिबस भई
रबिहि निरखि ज्यों कमल कलियां
राघव बचिके चलो ससुराल की गलियां
राघव धीरे चलो.....

  गीत के माध्यम से शादी के माहौल को श्री प्रेमभूषण जी ने सजीव किया ।
वही राजा जनक के कहने पर अपने अन्य तीनो बेटों की शादी भी इसी मंडप में करने को राजा दशरथ तैयार हो जाते है । अब मंडप में एक नही चार चार दूल्हे दुल्हानियो के साथ बैठे है । इस पर गीत गाया जा रहा है ....
चारो दुलहा देहि भामरिया ए ,
संग सोहत दुलही नगरिया ए ।।
श्याम गौर गौर श्याम ,चारो जोड़ा जोरिया ...
नव रंग मणिन की ,सुपली सोहरिया ,
लावा छरियावे भरि भरिया ए .....
   इसके साथ ही चारो भाइयो की आरती के साथ ही सगुन में गाई जाने वाली तरह तरह की गलियां स्त्रियां सुनाती है ।
चारो भाइयो की शादी के अवसर पर राजा दशरथ और राजा जनक द्वारा खूब अन्न धन्न लुटाया जाता है । शादी के बाद बारात जनवासे में रुकती है । कई माह इसी तरह बीतने के बाद आखिरकार बिदाई होती है । बेटी सीता की बिदाई के समय गले लगते है विदेह जनक भी रो पड़ते है । बारात को कुछ दूर तक बिदा करने स्वयं राजा जनक जी आते है और राजा दशरथ से सत्कार में अगर चूक हुई हो तो उसके लिये माफी मांगते है । कहते है महाराज आपने हमारी चारो पुत्रियों को अपनी बहू के रूप में स्वीकार करके बड़ा ही हमारा सम्मान बढ़ाया है वही दशरथ जी कहते महाराज जनक जी आभारी तो मैं आपका हूं कि मैं एक बहु लेने आया था आपकी कृपा से चार चार ले जा रहा हूं ।चारो दुल्हिनियो के साथ बारात उल्लास के साथ अयोध्या वापस आ जाती है । ऋषि विश्वामित्र बिदा लेकर जब चलने लगते है तो महाराज दशरथ उनके चरणों मे गिरकर कहते है -- नाथ सकल संपदा तुम्हारी .....
जो राजा दशरथ कभी विश्वामित्र जी को राम चन्द्र जी को देने से मना कर दिये थे वो आज कह रहे नाथ -यह धन दौलत पुत्र पत्नी सकल परिवार जो भी वह आपका है , कृपा करके बच्चो पर दया करने के लिये दर्शन देते रहिएगा । प्रेम भूषण जी महाराज यहां कहते है कि यह राजा दशरथ को पता हो गया था कि ऋषि तो दो पुत्रों को ही ले गये थे और उसके साथ चार बहुओं को मुनाफे में वापस कर गये ।