सामाजिक समरसता में नाथपंथ का अवदान विषयक संगोष्ठी आयोजित
प्रयागराज।।हिन्दुस्तानी एकेडेमी उ0 प्र0, प्रयागराज के तत्वावधान में गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवैद्यनाथ की जन्म जयन्ती के अवसर पर मंगलवार को हिन्दुस्तानी एकेडेमी उ०प्र०, प्रयागराज में ‘सामाजिक समरसता में नाथपंथ का अवदान’ विषयक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारम्भ सरस्वती जी की प्रतिमा एवं महंत अवैद्यनाथ के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ। कार्यक्रम के प्रारम्भ में मंचासीन अतिथियों का सम्मान स्वागत शाल, पुष्पगुच्छ एवं प्रतीक चिह्न देकर एकेडेमी के सचिव देवेन्द्र प्रताप सिंह ने किया।
कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत करते हुए एकेडेमी के सचिव देवेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि ‘नाथपंथ तथा उसके सामाजिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक आयामों को पूरी दुनिया को जानना चाहिए। आज जब सारी दुनिया में लोग अवसाद तथा तनाव से ग्रसित हो रहे है तो ऐसे समय में योग उन्हे नई उर्जा देने का कार्य कर रहा है। नाथ पंथ का सामाजिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक आयाम’ हमारी सांस्कृतिक पहचान ही हमारी उर्जा है । योग और हठ योग शारीरिक प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में लाभकारी है।’
संगोष्ठी की अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रोफेसर उपाध्याय ने कहा कि पूज्य महंत अवैद्यनाथ जी ने नव गुरुओं के विचारों को आगे बढ़ाने का कार्य किया एवं सामाजिक समरसता को बढ़ाने में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। पूज्य महाराज जी ध्यानी, ज्ञानी एवं मनीषी रहे उन्होंने जातिप्रथा की कुरीतियों को समाप्त करने में भी अपनी महती भूमिका का निर्वहन किया एवं साथ ही साथ हठयोगी की साधनाओं को समाज में आगे बढ़ाने का काम किया ।
कार्यक्रम की मुख्य अतिथि डॉ शिखा दरबारी, मुख्य आयकर आयुक्त, प्रयागराज ने अपना वक्तव्य देते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति में मानवीय संवेदना के साथ प्रकृति में मौजूद हर चराचर से प्रेम करना बताया गया है, हम कंकण में ईश्वर के दर्शन कर लेते है, यही भाव हमे भारतीय होने का गर्व कराती है। नाथ संप्रदाय के माध्यम से हर जन मानस को आत्मा से परमात्म से मिलन का जो रास्ता दिखाया गया है निश्चित ही अगर कोई इस मार्ग पर चलता है तो वह अनेक मानवीय गुणों से युक्त होकर उच्च कोटि का जीवन प्राप्त करने में सफल हो सकता है। आज के युवाओ के लिऐ तो यह जीवन अमृत की तरह है क्योकि आज का परिवेश संघर्ष मय है, इससे युवाओ को एक आंतरिक उर्जा मिलेगी’।
संगोष्ठी के सम्मानित वक्ता के रूप में डॉक्टर अरुण कुमार त्रिपाठी ने कहा कि नाथपंथ और सामाजिक समरसता एक दूसरे के पर्याय हैं गोरखनाथ से प्रारंभ करके योगी आदित्यनाथ तक नाथ पंथ के सभी सिद्ध सामाजिक समरसता में विशेष योगदान रहा है। प्रयागराज के प्रतिष्ठान पूरी जिसे आज झूसी कहा जाता है यहां के आताताई राजा से क्रुद्ध होकर गोरक्षनाथ और उनके गुरु मत्स्येंद्र नाथ ने उनको श्राप दिया जिसके कारण वह उनका किला उलट गया इसीलिए उसे किला का नाम आज उल्टा किला पड़ा है।साथ ही झूसी इसका पूरा नाम प्रतिष्ठान पूरी था,झुला करके झूसी नाम पड़ गया जिसे हम प्रत्यक्ष रूप से देख सकते हैं। महंत अवैद्यनाथ ने डोम राजा के घर संत समूह के साथ भोजन करके तथा रामजन्मभूमि में सर्वप्रथम दलित से ईट रखवा कर सामाजिक समरसता का प्रथम उदाहरण प्रस्तुत किया है।’
संगोष्ठी में विषय परिवर्तन करते हुए अपने बीज वक्तव्य में गोरखपुर विश्वविद्यालय के डॉ सूर्यकांत त्रिपाठी ने कहा कि ‘भारतीय मनीषा तथा भारतीय चिंतन में अनेकता भी एकत्व के प्रतिस्थापन के लिए है। नाथ संप्रदाय भी इन्हीं चिंतन में से एक महत्वपूर्ण संप्रदाय है जिसने समरस समाज की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान दिया है । नाथपंथ के आदिनाथ भगवान शिव है शिव का अर्थ ही कल्याण होता है अर्थात जो संप्रदाय कल्याण भावना से अनुप्राणित हो वह नाथसंप्रदाय है।’ । कार्यक्रम का संचालन करते हुए ईश्वर शरण पीजी कॉलेज के आचार्य डॉक्टर अखिलेश त्रिपाठी ने कहा कि नाथपंथ का उदभव् आदि महादेव शिव से हुआ है जो कि सामाजिक समरसता के शीर्षस्थ हैं। आज भी गोरखपुर में नाथपंथ के केन्द्र में वहां का रसोइ्रयां भी दलित ही है। आज भी गोरखपुर मन्दिर के गौशाला की देखभाल एक मुस्लिम करता है।’
कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापन एकेडेमी के प्रशासनिक अधिकारी गोपालजी पाण्डेय ने किया।कार्यक्रम में उपस्थित विद्वानों में रामनरेश त्रिपाठी ‘पिण्डीवासा’, डॉ. शान्ति चौधरी, डॉ. अष्विनी द्विवेदी, मान सिंह, शान्तनु भारद्वाज, डॉ. उषा मिश्रा, गुलाम सरवर, डॉ. विनोद द्विवेदी, अतुल द्विवेदी, डॉ. पीयूष मिश्र ‘पीयूष’ आदि के साथ शहर के अन्य रचनाकार एवं शोध छात्र भी उपस्थित थे।