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भारत का प्राण है धर्म और धर्मानुकूल आचरण,इसी परंपरा के अनुकूल ही भारत का विकास है संभव - डाॅ. बालमुकुंद






डा0 सुनील कुमार ओझा

बलिया।। पं. दीनदयाल उपाध्याय के पुण्य स्मरण पर जननायक चन्द्रशेखर विश्वविद्यालय के दीनदयाल उपाध्याय शोधपीठ के तत्वावधान में 'विकसित भारत@2047: दीनदयाल जी के विचारों की प्रासंगिकता' विषयक संगोष्ठी का आयोजन मंगलवार को विवि सभागार में हुआ। मुख्य वक्ता डाॅ. बालमुकुंद जी, सचिव, राष्ट्रीय इतिहास संकलन समिति ने अपने उद्बोधन में कहा कि दीनदयाल जी ने राष्ट्र के निर्माण के लिए वैकल्पिक सिद्धांत के रूप में एकात्म मानव दर्शन का प्रणयन किया। एकात्म मानववाद मनुष्य ही नहीं प्राणि  जगत, प्रकृति और पर्यावरण में भी एकात्मता का दर्शन करता है।प्रत्येक राष्ट्र की एक चिति होती है जो राष्ट्रीय संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती है। भारत का प्राण धर्म और धर्मानुकूल आचरण में है। इसी परंपरा के अनुकूल ही भारत का विकास संभव है। अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए कुलपति प्रो. संजीत कुमार गुप्ता ने कहा कि मैं से लेकर हम तक की यात्रा ही दीनदयाल जी की चेतना है और यही एकात्मता है। हमें युगानुकूल और देशानुकूल आचरण करना है, अपने स्वधर्म और स्व-संस्कृति के अनुकूल अपने और राष्ट्र के विकास का पथ प्रशस्त करना है।





संगोष्ठी का विषय प्रवर्तन और धन्यवाद ज्ञापन प्रो. रामकृष्ण उपाध्याय ने किया। संचालन डाॅ. सरिता पाण्डेय ने किया। इस अवसर पर शोधपीठ द्वारा प्रकाशित होने वाली पुस्तक के लेखकों को सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान की प्रस्तुति परिसर के संगीत विभाग के विद्यार्थियों ने की। इस अवसर पर शोधपीठ के सदस्य डाॅ. रामसरन, डाॅ. अभिषेक मिश्र, डाॅ. अनुराधा राय के साथ  डाॅ. गणेश कुमार पाठक, प्रो. धर्मात्मानंद, प्रो. अशोक कुमार सिंह, डाॅ. पुष्पा मिश्र, डाॅ. अजय कुमार चौबे, डाॅ. प्रियंका सिंह आदि परिसर और महाविद्यालयों के प्राध्यापकगण, क्षेत्र के गणमान्य नागरिकगण एवं विद्यार्थीगण उपस्थित रहे।