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अमृतकाल में भी उपेक्षा :एक अदद छत के लिए तरस रही है गड़हांचल में दो आजादी के शहीदों की मूर्तियां, काश परिवहन मंत्री की हो जाती नजरें इनायत



 "ओमप्रकाश राय" 

 नरही-बलिया।।गुलामी की जंजीरों में जकड़ी भारत माता को आजाद कराने के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले वीर अमर शहीदों की मूर्तियां पीएम मोदी के नेतृत्व में मनाये जा रहे अमृतकाल में भी एक एक छत के लिए तरस रही है।जीहां, ये शहीद है  सलेमपुर (चौरा) निवासी अमर शहीद गोविन्द मल्लाह और अमर शहीद है शिवदहिन राजभर।




सलेमपुर (चौरा) निवासी ‌गोविंद मल्लाह की प्रतिमा गांव के ठीक सामने मग‌ई नदी के उस पार तट पर लगी है, और शिवदहिन राजभर की प्रतिमा राष्ट्रीय राजमार्ग 31 पर करंजा माफी गांव के सामने लक्ष्मणपुर चौराहा से लगभग 1किमी. उत्तर की तरफ सड़क के पास ही लगी है। लेकिन अफ़सोस है कि पिछली सरकार के जन प्रतिनिधियों को छोड़िये पीएम मोदी का भी दूसरा कार्यकाल समाप्त होने वाला है और सीएम योगी के भी दूसरे कार्यकाल का भी एक वर्ष बीत गया है लेकिन किसी भी जन प्रतिनिधि ने अपनी निधि से भी इन दोनों अमर शहीदों की प्रतिमाओं के ऊपर छोटी सी छत डलवाने की भी जहमत नही उठायी है।

सबसे बड़ी बात यह है कि ये दोनों शहीद उस समुदाय से है जिनके नेता स्वजातियों के वोट बैंक के चलते ही मंत्री तक बन गये है। लेकिन अपने ही समाज के सपूतों को एक छत भी नही दिलवा पाये है। बता दे कि गोविन्द मल्लाह की प्रतिमा स्व. हरिहर ओझा 'तरूण' एवं अंजनी कुमार पाण्डेय के अथक प्रयास और परिजनों द्वारा ग्रामीणों के सहयोग से स्थापित कराया गया था। 17 अक्टूबर 2001 को जिसका उद्घाटन हुआ था। परिजनों ने बताया कि हर साल हमलोग 17 अक्टूबर को शहीद बाबा को फूल -माला चढ़ाते है। 

वहीं हालात दरिया पुर निवासी अमर शहीद शिवदहिन राजभर की है। इनकी भी प्रतिमा राष्ट्रीय राजमार्ग 31 पर सड़क किनारे लगी है जिसका उद्घाटन 30 अगस्त 2007 को हुआ था। परिजन और आसपास के लोग हर साल 30 अगस्त को शहीद के चरणों में पुष्प अर्पित करते हैं और क्षेत्रीय नेता भाषण बाजी कर कोरम पूरा कर देते हैं।





दरअसल यह बात जेहन में इसलिए आ गई कि बलिया बलिदान दिवस के अवसर पर बलिया सदर विधायक और ‌सूबे के लोकप्रिय मंत्री दयाशंकर सिंह ने उप मुख्यमंत्री और मंत्री मंडल के सहयोगी मंत्रियो के साथ मिलकर शहीद सेनानी परिवारों को और जीवित ‌सेनानी को सम्मानित ‌कराकर (स्कूटी,कार) देकर जो सम्मान दिया है आजादी के बाद जनपद में इस तरह का ऐतिहासिक कार्य अब तक किसी नेता ने नहीं किया था।

गड़हांचल के शहीदों का दुर्भाग्य कहें या क्षेत्रीय नेताओं की उदासीनता,आज भी अमर शहीदों की प्रतिमा छत के लिए तरस रही है। परिजनों सहित क्षेत्रीय लोगों ने बताया कि छत के लिए शासन-प्रशासन सहित जनप्रतिनिधियों से कई बार गुहार लगाई गई लेकिन किसी ने ‌इस पर ध्यान ही नहीं दिया। 

ग्रामीणों का कहना है कि काश! सदर विधायक और ‌सूबे के लोकप्रिय मंत्री दयाशंकर सिंह की नजरें इनायत हो जाती और इन शहीदों का सर ढंकने के लिए एक छत मिल जाती ।