Breaking News

ग्राम प्रधान हरिपुर शिवांगी की प्रधानी समाप्त, आयु छुपाकर चुनाव लड़ना बना कारण

 


मधुसूदन सिंह

बलिया।। अपनी उम्र को छुपाना ग्राम प्रधान हरिपुर क्षेत्र पंचायत गड़वार बलिया शिवांगी को महंगा पड़ गया है। उप जिलाधिकारी सदर बलिया के न्यायालय ने अपने यहां योजित चुनाव याचिका अंतर्गत धारा 12( ग ) पंचायत राज अधिनियम उत्तर प्रदेश पंचायत राज निर्वाचन विवाद निपटारा नियमावली 1994 द्वारा बहक विपक्षी /प्रतिवदिनी संख्या 1 शिवांगी (ग्राम प्रधान हरिपुर ) के चुनाव परिणाम को शून्य घोषित कर दिया है। इस आदेश के बाद शिवांगी की प्रधानी स्वतः ही समाप्त हो गयीं है। इस आदेश के बाद ग्राम सभा हरिपुर में एक बार फिर से राजनैतिक सरगरमियाँ तेज हो गयीं है।



क्या था मामला

बता दे कि सामान्य पंचायत निर्वाचन 2021 के द्वारा हुए ग्राम प्रधान हरिपुर के चुनाव परिणाम के खिलाफ चुनाव हारने वाली प्रत्याशी सविता पत्नी अजय निवासिनी हरिपुर ने न्यायालय उप जिलाधिकारी सदर बलिया के न्यायालय में एक चुनाव याचिका दायर कर शिवांगी के चुनाव परिणाम को निरस्त करने की मांग की गयीं थी। आरोप लगाया गया था कि जिस दिन शिवांगी ने प्रधान पद के लिये पर्चा भरा था, उस दिन उनकी आयु आवश्यक आयु 21 वर्ष से कम थी, जिसके कारण इनका अभ्यर्थन ही रद्द होना चाहिए था, जो नही हुआ था।

आरोप की पुष्टि के लिये सविता देवी ने शिवांगी के 2019 में दिये गये हाई स्कूल परीक्षा, अनुक्रमांक 2293561 को लगाया गया है जिसमे इनकी जन्मतिथि 12/07/2003 अंकित है। जिसके आधार पर नामांकन के समय इनकी उम्र मात्र 17 वर्ष 9 माह 3 दिन ही थी जबकि ग्राम प्रधान के लिये कम से कम 21 वर्ष का होना जरुरी है। अंक पत्र के अनुसार तो शिवांगी ग्राम प्रधान का चुनाव लड़ने को छोड़िये मत देने की भी अधिकारी (मतदाता के लिये भी कम से कम 18 वर्ष का होना जरुरी है ) नही थी। वावजूद बीएलओ आदि के द्वारा इनका मतदाता पहचान पत्र भी बनाया गया लेकिन यहां भी गलती हो गयीं और इस पर भी उम्र 21 की जगह 20 वर्ष ही दर्ज हो गयीं, जो ग्राम प्रधान के चुनाव लड़ने के लिये अयोग्य है।








यही नही पर्चा को जाँचने वाले अधिकारियो ने भी घोर लापरवाही बरती और मतदाता पहचान पत्र में उम्र 20 वर्ष अंकित होने के वावजूद भी पर्चे को वैध घोषित कर दिया। जिसके कारण चुनाव में शिवांगी विजयी हुई और ग्राम प्रधान बन गयीं। अब ज़ब शिवांगी का चुनाव परिणाम शून्य घोषित हो गया है, तो सवाल यह उठ रहा है कि बीएलओ से लेकर पर्चा जाँचने तक में लगे अधिकारियों की लापरवाही से आज एक बार फिर से चुनाव होने की स्थिति बन गयीं है। ऐसे में एक बार फिर सरकारी राजस्व से लेकर सरकारी जन शक्ति को चुनाव में लगाना पड़ेगा, जिसने लाखों रूपये खर्च होंगे। ऐसे में क्या इस प्रकरण में लापरवाही बरतने वाले सरकारी सेवकों से इस खर्च की वसूली नही होनी चाहिए? जिससे भविष्य में ऐसी स्थिति न आने पाये?