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आखिर जांच रिपोर्ट पर क्या होती है कार्यवाही? जिलाधिकारी को करनी चाहिये निगरानी

  


मधुसूदन सिंह

बलिया।। स्वास्थ्य विभाग बलिया आजकल रोज किसी न किसी जांच को लेकर चर्चा मे बना हुआ है। इस विभाग से संबंधित कई जांचे तो पूरी भी हो गयी बतायी जा रही है लेकिन उन जांचो के आधार पर शिकायतें गलत थी या सही किसी को पता ही नही चल पा रही है। जिलाधिकारी द्वारा जांच का आदेश तो शिकायत मिलते ही दे दिया जाता है। लेकिन जांच की क्या स्थिति है, शिकायत गलत है या सही, जिलाधिकारी स्तर से समीक्षा न होने से न जाने किस बस्ते मे बांध कर लुप्त कर दी जा रही है, किसी को भी पता नही चल पा रही है।

स्वास्थ्य विभाग मे एक जांच बहुत ही सुर्खियां बटोरी है, वह जांच है 349 चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की नियुक्तियों से संबंधित। इस प्रकरण की कई बार जांच हो चुकी है और न जाने कितनी बार आगे भी होने की संभावना है। आखिर बार बार होने वाली जांचो का क्या मतलब? अगर पहले जांच हुई है तो उस जांच मे क्या तथ्य सामने आया था, इसको वर्तमान जांच का हिस्सा क्यों नही बनाया जा रहा है? इस जांच मे मृतक आश्रित भी सम्मिलित है, आखिर जांच के नाम पर प्रताड़ना का दौर कब रुकेगा।





नगरीय स्वास्थ्य मिशन के डेटा आपरेटर कम लेखा सहायक के खिलाफ कई शिकायतों के बाद जांच समिति बनी। सूत्रों के अनुसार जांच समिति के सदस्यों ने अपनी अपनी रिपोर्ट सीएमओ को सौप दी गयी है, लेकिन सीएमओ बलिया न जाने किस दबाव मे जांच रिपोर्ट के अनुसार कार्यवाही करने से हिचक रहे है।सूत्रों की माने तो पैरवी मे एक बड़े राजनेता के पीआरओ और दो बड़े अधिकारियों के स्टेनो दिनरात एक किये हुए है।

वही नगरीय स्वास्थ्य मिशन के तहत नियुक्त आशाओं की नियुक्ति मे फर्जीवाड़े की शिकायत के बाद जिलाधिकारी बलिया द्वारा डिप्टी कलेक्टर सीमा पांडेय को जांच अधिकारी बनाया गया है। लेकिन धन्य है बलिया के सीएमओ, और डीपीएम जिनके द्वारा जांच अधिकारी द्वारा तीन तीन बार आशाओं की नियुक्ति संबंधी पत्रावलियां लिखित रूप से मांगी गयी, लेकिन इनको आजतक उपलब्ध ही नही करायी गयी है। इससे साफ है की नियुक्तियों मे निश्चित रूप से फर्जीवाड़ा हुआ है।जिलाधिकारी को अपने आदेश के क्रम मे चल रही जांच मे असहयोग देने वाले अधिकारियों के खिलाफ सख्त कदम उठाना चाहिये।

संविदा एएनएम की नियुक्तियों मे 22 सामान्य सीट के सापेक्ष मात्र 6 सामान्य अभ्यार्थिनियों का चुनाव हुआ, शेष 16 सीटों पर ओबीसी और एससी के अभ्यार्थिनियों को चुन लिया गया। इस संबंध मे जन सूचना के द्वारा मांगी गयी सूचना को मुख्य चिकित्साधिकारी द्वारा आदेश देने के बाद भी डीपीएम द्वारा आज दिनांक तक नही दी गयी है, इससे यह संदेह और पक्का हो जाता है कि इन नियुक्तियों मे धांधली की गयी है।जिलाधिकारी को इस बिंदु पर भी ध्यान देना चाहिये।

स्वास्थ्य विभाग मे वितरित होने वाले सामानो के क्रय मे भी जमकर घोटाला होने की खबर है। सगुन किट और नैपकिन की खरीद मे जमकर घोटाला होने की खबर है लेकिन इसकी तरफ किसी का ध्यान ही नही है। इन दोनों खरीद मे लगभग 50 लाख व्यय हुआ है।इसकी जांच जिलाधिकारी को करानी चाहिये।

सरकार संस्थागत प्रसव को बढ़ाने के लिये प्रयासरत है। लेकिन पीएचसी और एएनएम सेंटर पर तैनात एएनएम रात मे रहती ही नही है। जिला महिला अस्पताल हो या सीएचसी /पीएचसी हो, यहां तैनात दाइयो का वर्चस्व और आतंक (मरीजों के परिजनों से पैसा वसूली का ) है, ऐसे मे संस्थागत प्रसव कैसे बढेगा, यह जिलाधिकारी को समीक्षा करनी चाहिये।