Breaking News

हिंदी की धमक आज देश मे ही नही विदेशो मे भी



 विंध्याचल सिंह, शिक्षक

 बलिया।। आज हिंदी दिवस पर सभी के लिए हृदय से शुभकामनाओं के उद्गार फूट रहे हैं। हिंदी आज स्वयं गर्वान्वित हो रही है, तो हिंदी के कारण हमें भी गौरवान्वित होने का अवसर प्राप्त हो रहा है। हिंदी की धमक आज देश में तो सुनी ही जा रही है, देश की सीमाओं से बाहर निकल कर विदेश में भी इसकी धमक सुनाई दे रही है।  हिंदी की विकास यात्रा बहुत लंबी नहीं रही है अपितु तीव्र रही है.प्रारंभ से ही इसका स्वभाव समावेशी रहा है.इस कारण दूसरी भाषाओं के साथ इसका संघर्ष कम और सहयोग अधिक रहा है।


  स्वतंत्रता आंदोलन के पूर्व नेतृत्व कर्त्ताओं की स्वाभाविक चिंता रही थी, कि स्वतंत्र भारत की एक अपनी भाषा होनी चाहिए, जो सभी देशवासियों को एक साथ एक धागे में पिरो सके.इस कसौटी पर हिंदी ने ही अपने को सिद्ध किया.अलग-अलग प्रांतों के विद्वानों ने भी एक स्वर से हिंदी का समर्थन किया.एक, दो अपवादों को छोड़कर.

   


आज हिंदी के भण्डार  हर प्रकार की सामग्री से भरे पड़े हैं.सांस्कृतिक विरासत तो इसे संस्कृत से मिली ही है.मौलिक साहित्य का विशाल भण्डार है हिंदी के पास.अनूदित साहित्य के साथ-साथ तकनीक की दृष्टि से भी हिंदी बहुत समृद्ध हो गई है.लोक बोल-चाल की भाषा के रूप में इसकी स्वीकार्यता दिन प्रति बढ़ती जा रही है.आज हिंदी को समझने वाले ही नहीं बोलने वाले भी पूरे भारत में मिल रहे हैं.फिल्म उद्योग ने हिंदी को देश के कोने कोने में पहुंचाने में सहायक ही रहा है. हिंदी को कठिन भाषा कहकर दूरी बनाने वाले स्वयं इसकी उपयोगिता से प्रभावित होकर अपना रहे हैं.पूर्व में भी कभी धारणा बनी हुई थी, कि ब्रज भाषा में जो कविता की मिठास है, वह हिंदी में कभी आ ही नहीं सकती.इसीलिए खड़ी हिंदी में कविता लिखने में कवि डरा करते थे.यह आशंका भी निर्मूल सिद्ध हुई और कालांतर में एक से बढ़कर एक कवियों ने अपनी श्रेष्ठ कविताओं से हिंदी को समृद्ध करने का काम कर दिखाया.


हिंदी को अपनाकर हम एक प्रकार से देश की सेवा भी कर रहे होते हैं.अन्य भाषाओं में सिद्ध हस्त होना हमारी अतिरिक्त योग्यता हो सकती है.अन्य भाषाओं की जानकारी से हमारी जीविका में भी योगदान हो सकता है.फिर भी अपनी भाषा अपनी ही है.हमारा सारा चिंतन अपनी मातृभाषा में ही होता है.हमारी भावनाएं मातृभाषा में ही बोलती हैं.आज के दिवस में हम संकल्प लें, कि अधिक से अधिक कार्य व व्यवहार में हम अपनी हिंदी का ही प्रयोग करेंगें और हिंदी के विकास के साक्षी के साथ सहयोगी भी बनेंगे.