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बुरे फंसे डीपीएम,3 साल की जगह 9 साल का निर्गत किया है एएनएम को अनुभव प्रमाण पत्र



मधुसूदन सिंह

बलिया।। मिशन निदेशक (एनएचएम)अपर्णा उपाध्याय ने डीपीएम  बलिया डॉ आरबी यादव को कारण बताओ नोटिस जारी कर 3 कार्य दिवस के अंतर्गत स्पष्टीकरण मांगा है। अन्यथा कि स्थिति के लिए डीपीएम को जिम्मेदार बताया गया है। बता दे कि बलिया मे  संविदा एएनएम की नियुक्ति मे इनके द्वारा मेरिट मे फेरबदल करके सामान्य वर्ग की कुल 22 सीटों पर 16 ओबीसी और अनुसूचित जाति की अभ्यार्थिनियों का चयन कर लिया गया, जो चर्चा का विषय बन गया है। अब इस प्रकरण के सामने आने पर इस गोरखधंधे का राज कुछ कुछ समझ मे आने लगा है। जब 3 साल 10 माह के अनुभव को 9 साल किया जा सकता है तो सामान्य वर्ग से ओबीसी की मेरिट बढ़ानी कौन मुश्किल काम है। बलिया मे डीपीएम डॉ आरबी यादव के कार्यकाल मे आशाओं, संगिनियों और एएनएम की जितनी भी भर्तियां हुई है सबकी उच्च स्तरीय जांच जरुरी हो गयी है।

मिशन निदेशक ने पत्र कारण बताओ नोटिस के माध्यम से डीपीएम से पूंछा है कि अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के नोटिफिकेशन संख्या 23/02/ कम्प्यूटर अनुभाग (बारह /)/2022/02/परीक्षा/2021 दिनांक 01.06.2002 के क्रम में अभिलेख परीक्षण किये गये जिस हेतु जनपद से राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन उत्तरप्रदेश के अन्तर्गत कार्यरत संविदा एएनएम का अनुभव प्रमाण-पत्र संबंधित जनपद के स्तर निर्गत किये गये हैं। संज्ञान में आया है कि श्रीमती संगीता निगम का अनुभव प्रमाण-पत्र त्रुटिवश 03 वर्ष 10 माह 10 दिवस के स्थान पर 09 वर्ष 12 दिन का जनपद बलिया के स्तर से निर्गत किया गया है।

 आपको निर्देशित किया जाता है कि उक्त प्रकरण के संबंध में अपना स्पष्टीकरण 03 कार्यदिवसों के अन्दर अधोहस्ताक्षरी के कार्यालय में उपलब्ध कराना सुनिश्चित करे अन्यथा की दशा में आप स्वंय जिम्मेदार होंगे।

बलिया मे सामान्य वर्ग की सीट पर ओबीसी और अनुसूचित जाति के अभ्यार्थिनो के चयन के लिये डीपीएम जिम्मेदार 

बलिया ।। एक तरफ योगी सरकार अपने प्रत्येक कार्य मे पारदर्शिता को महत्व दे रही है तो दूसरी तरफ अधिकारी सरकार की मंशा के विपरीत कार्य करने की जगह ढूंढ ही ले रहे है । ऐसा ही एक मामला एनएचएम के तहत प्रदेश में हुई संविदा एएनएम के चयन और नियुक्ति में सामने आया है । इसकी शुरुआत बलिया जनपद से हुई है जहां 22 सामान्य सीटों पर मात्र 6 का चयन हुआ है शेष पर पिछड़ा वर्ग व अनुसूचित जाति के अभ्यर्थियों का हुआ है । बता दे कि पूरे प्रदेश में लगभग 4 हजार संविदा एएनएम की नियुक्ति हुई है जिसके तहत बलिया जनपद में भी 56 नियुक्तियां हुई है ।




बार बार बदली गयी गाइड लाइन

पूर्व से प्रचलित नियम के अनुसार रिक्तियों के लिए आवेदन मांगते समय ही चयन के लिये कौन कौन से मापदंड होंगे ,इसकी घोषणा कर दी जाती है । इसी घोषणा के तहत आने वाले अभ्यर्थी आवेदन करते है । लेकिन यह पहली नियुक्ति प्रक्रिया है जिसमे आवेदन पत्र जमा करा लेने के बाद लगभग 15 से 20 जूम मीटिंगों के द्वारा हर बार चयन के नियमो में फेरबदल किया गया । चूंकि यह प्रक्रिया योगी सरकार के पहले कार्यकाल के अंतिम दिनों में शुरू की गई थी और लोगो को सरकार के पुनः आने की संभावना कम दिख रही थी, इस लिये निडरता के साथ एक वर्ग विशेष के अभ्यर्थियों को लाभ पहुंचाने के लिये नियमो में कई बार परिवर्तन किया गया ।

जैसे पहली बार सिर्फ अनुभव का प्रमाण मांगा गया था और अनुभव के आधार पर कितना अंक मिलेगा यह दर्शाया गया था । इसी के आधार पर अभ्यर्थियों ने आवेदन किया था । बीच में इसमें परिवर्तन करते हुए कहा गया कि अनुभव देने वाले संस्थान से वेतन पाने का रिकार्ड वेतन पर्ची लगाये । जब इसको भी आवेदकों ने लगा दिया तो फिर नियम बदलते हुए कहा गया कि सरकार द्वारा मान्य संस्थानों से किये गये अनुभव को ही स्वीकार्य किया गया । अगर कोई अभ्यर्थी अपने स्किल डेवलोपमेन्ट के लिये निःशुल्क सेवा किया है,तो उसका अनुभव अस्वीकार्य है ।

दूसरा नियम फॉर्म निकालते समय यह नही कहा गया था कि सिर्फ यूपी के संस्थानों से प्रशिक्षण प्राप्त अभ्यर्थी ही आवेदन करेंगे । इस कारण बहुत से ऐसे आवेदकों ने भी आवेदन किया जिन्होंने यूपी के बाहर से वहां की सरकार द्वारा मान्य संस्थानों से योग्यता प्राप्त की थी । लेकिन बीच मे नियम बदल कर इनको अयोग्य कर दिया गया । जबकि इस नियम को रिक्तियों के लिये प्रकाशित विज्ञापन में ही घोषणा कर देनी चाहिये थी ।

सामान्य वर्ग के हक पर डाका डालने के लिये बदले आरक्षण के नियम

तीसरा संशोधन आरक्षण के प्राविधानों को लेकर किया गया है । सीएमओ बलिया डॉ नीरज कुमार पांडेय ने अपने बयान में साफ तौर से कहा है कि जिस भी आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थिनी का आरक्षण को प्रमाणित करने वाला प्रमाण पत्र (3साल से अधिक का) कालातीत हो गया था, उस अभ्यर्थिनी को आरक्षण वर्ग से हटाकर क्रीमी लेयर का मानते हुए सामान्य कोटे में चयन किया गया है । बता दे कि इस पूरी चयन प्रक्रिया के दौरान वर्तमान सीएमओ डॉ पांडेय नही बल्कि तत्कालीन सीएमओ डॉ कक्कड़ रहे थे जिनको बाद में शासन ने वरिष्ठ परामर्शदाता चिकित्सक के रूप में तबादला कर दिया था । 



बता दे कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसे विवादों पर कई बार फैसले दिये है । फैसलों में साफ तौर पर कहा गया है कि आरक्षण से उन्ही लोगो को सामान्य श्रेणी में भेजा जाएगा जिन्होने आरक्षण के किसी भी प्राविधानों का आवेदन में सहारा न लिया हो । अगर आरक्षण के  एक भी प्राविधान का आवेदन में सहारा ले लिया गया है तो उस अभ्यर्थी की मेरिट चाहे सर्वोच्च ही क्यो न हो, वह अपने आरक्षण वर्ग में ही रहेगा ।

वही यह सर्वमान्य नियम है कि आवेदन में अभ्यर्थी ने जो भी बातें भरी है और उसके समर्थन में वह प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने में असफल हुआ है या उसका प्रमाण पत्र कालातीत हो गया है तो उसके आवेदन को निरस्त कर दिया जाता है क्योंकि अपने कथन के समर्थन में प्रमाण प्रस्तुत करना अभ्यर्थी का दायित्व है , न कि चयन समिति का । क्योकि चयन समिति कोई न्यायालय नही है जो गुण दोष के आधार पर निर्णय करें । चयन समिति के निर्णय से साफ झलक रहा है कि इनकी मंशा सामान्य सीटों पर आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों को लाभ पहुंचाने की थी ।

वही आरसीएच के नोडल अधिकारी डॉ एसके तिवारी से जब इस नियुक्ति के सम्बंध में बात की गई तो उनका साफ कहना था कि चयनित अभ्यर्थियों की या सत्यापन के बाद जो सूची लखनऊ भेजी गई थी, उसकी न तो मुझे जानकारी दी गयी, न ही उन सूचियों पर नोडल अधिकारी होने के बावजूद मुझसे हस्ताक्षर ही कराये गये है । लखनऊ जो भी सूची भेजी गई है उसपर सीएमओ डॉ तन्मय कक्कड़ और डीपीएम डॉ आरबी यादव के ही हस्ताक्षर है ।



सरकार कराये जांच,निकल जायेगा फर्जीवाड़ा

इस चयन प्रक्रिया का अंतिम परिणाम मई में घोषित होने के साथ ही इसके खिलाफ शिकायतों का मिलना शुरू हो गया है । लगभग एक दर्जन अभ्यर्थिनीयों ने सीएमओ बलिया को लिखित रूप से शिकायती पत्र देकर अपने चयन न होने को लेकर सवाल उठाये है । इन सभी शिकायती पत्रों को देने वाली अभ्यर्थिनीयों के अंक चयनित अभ्यर्थिनीयों से अधिक है । इस बात को सीएमओ बलिया ने भी स्वीकार किया है और जांच कराकर जांच रिपोर्ट शासन को भेजने की बात कह रहे है । लेकिन क्या जिन की नियुक्ति हो जाएगी, उनको हटा पाना आसान होगा ? क्यो नही जांच के बाद नई सूची के अनुसार नियुक्ति प्रदान की जाय । शासन को इस गंभीर प्रकरण की जांच करानी चाहिये , जिससे शासन की पारदर्शिता की नीति पर कोई अंगुली न उठा सके ।

दो माह तक डीपीएम के पास रहा रिजल्ट,क्या सपा सरकार का था इंतजार

शासन द्वारा साफ कहा गया था कि यह नियुक्ति चुनाव आयोग द्वारा विधानसभा चुनाव के लिये लगायी गयी आचार संहिता से आच्छादित नही है । इसी के तहत एनएचएम के द्वारा इसका परिणाम विधानसभा चुनाव से पूर्व ही घोषित कर दिया गया था लेकिन डीपीएम बलिया डॉ आरबी यादव इसको अपने पास दो माह तक गोपनीय स्तर पर रखे रहे ,इसकी जानकारी इनके अलावा किसी को नही थी । इस से लगता था कि डीपीएम को लगता था कि चुनाव के दरम्यान अगर इस परिणाम को घोषित कर दिया जाएगा तो बवाल हो जायेगा । इनको संभवतः यह भी लग रहा होगा कि तमाम चुनावी सर्वेक्षणों के अनुसार अगली सरकार अखिलेश यादव की बन रही है तो उस समय इसका रिजल्ट घोषित करने पर हो हल्ला भी हुआ तो कुछ नही होगा ।