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तो क्या विद्यालयों पर अध्यापक हो जायेंगे सरप्लस? खड़ी होगी नई समस्या



मधुसूदन सिंह

बलिया।। दुमदुमा कंपोजिट विद्यालय मे मिला खाद्यान्न अपनी गवाही से पूरे जनपद मे खलबली मचा दी है। इस की जांच जब शुरू हुई तो इससे जनपद के 50 प्रतिशत विद्यालय प्रभावित होते दिखने लगे है। ऐसा सरकार द्वारा कोरोना काल मे चार चरणों मे बच्चों को दिये गये मुफ्त खाद्यान्न और कन्वर्जन मनी देने के कारण हुआ है। इसको देने के लिए सरकार ने शत प्रतिशत वितरण का आदेश दिया था। यही आदेश बच्चों के निवालों को खाने वाले हेडमास्टरों को भारी पड़ गया है। जिसके कारण 2019 से अबतक 50 प्रतिशत विद्यालय शतप्रतिशत उपभोग प्रमाण पत्र बेसिक शिक्षा अधिकारी के कार्यालय तक भेज ही नही पाये है।

कैसे होता था पहले मिड डे मील घोटाला

बता दे कि कोरोना काल शुरू होने से पहले हेडमास्टर द्वारा भेजी गयी संख्या के सापेक्ष अगर 60प्रतिशत भी बच्चें मिड डे मील खा लेते थे तो शासन को कोई आपत्ति नही होती थी। इसी का फायदा उठाकर हेडमास्टरों द्वारा 40 प्रतिशत छात्रों का खाद्यान्न डकार लिया जाता था। कारण भी स्पष्ट है कि जितने बच्चें उपस्थित होते थे, वही वास्तविक होते है, बाकी तो सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी की तर्ज पर हेडमास्टरों ने फर्जी छात्रों की रजिस्टरों मे उत्पत्ति है। इन्ही अदृश्य छात्रों के मिड डे मील, कोरोना काल के मुफ्त मिले खाद्यान्न, कन्वर्जन मनी और कंपोजिट ग्रांट को हजम करके भ्रष्टाचार की अपनी भूख को मिटाते है। ऐसा ये अकेले नही कर सकते है, इस लिए इनसे बड़े देवों के भी शामिल होने की संभावना से इंकार नही किया जा सकता है।



क्या क्या हो सकता है जांच के बाद प्रभावित

बीएसए मनीराम सिंह द्वारा कोरोना काल के खाद्यान्न वितरण का शतप्रतिशत उपभोग प्रमाण पत्र मांगना सबके गले की फांस बन गया है। ऐसा नही कर पाने वाले विद्यालयों के ऊपर कई तरह की तलवार लटक गयी है। पहली तलवार तो यह है कि अगर बच्चों को खाद्यान्न वितरित नही हुआ है तो वो खाद्यान्न है कहां, यह हेडमास्टरों को बताना पड़ेगा, जो इनकी सेहत और नौकरी दोनों के लिए ठीक नही होगा। दूसरी तलवार अध्यापकों की संख्या पर लटक गयी है। अगर जो विद्यालय शेष 50 प्रतिशत बच्चों का रिकार्ड नही दे पाएंगे तो वहां के 50 प्रतिशत अध्यापक भी स्वतः सरप्लस हो जायेंगे। तीसरी तलवार विद्यालयों को मिलने वाली ग्रांट पर पड़ेगा। अब तक अधिक छात्र संख्या के कारण अधिक ग्रांट आहरण करने वाले विद्यालयों के ग्रांट भी कम हो जायेंगे।

सरप्लस अध्यापकों के होने के बाद भी बीएसए नही कर पाएंगे तबादला

पूर्व के शासनादेशों के चलते बेसिक शिक्षा अधिकारियों के अधिकारों को बहुत ही सीमित कर दिया गया है। नियोक्ता होने के कारण निलंबन करने के अधिकार को छोड़कर ये किसी भी शिक्षक को लाख दोषी पाया जाय स्थानांतरित नही कर सकते है। ये सिर्फ निलंबित कर सकते है। शासन ने इनको प्रशासनिक स्तर पर विषहीन सर्प बनाकर छोड़ रखा है। उपरोक्त प्रकरण मे अगर सरप्लस शिक्षकों को दूसरे विद्यालयों पर भेजना होगा तो ये नही कर सकेंगे। शिक्षकों के स्थानांतरण नीति मे एक और खामी है। अगर किसी विद्यालय से शिक्षकों का समायोजन दूसरे विद्यालय के लिए होना है तो सबसे कम समय से कार्यरत शिक्षक का समायोजन होगा, वर्षो से कुंडली मारकर बैठे (10-14 वर्ष ) शिक्षकों का नही होगा।