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शासनादेश का मुख्यचिकित्साधिकारी के सामने नही है कोई मतलब, प्रभार पहला पर मनमानी करने मे शायद महारथी



मधुसूदन सिंह 

 बलिया।। मुख्यचिकित्साधिकारी  बलिया डॉ जयंत कुमार के आगे शासनादेश का कोई मतलब नही है। साहब जिससे चाहे जो भी कार्य ले सकते है। इनके यहां कनिष्ठ वरिष्ठ का कोई भेद नही है। साहब सभी को एक बराबर मानते है, शासन चाहे इनमे लाख विभेद करें।बता दे कि बलिया मे जो गणेश परिक्रमा मे सबसे उत्तम होता है, मलाईदार  सीट वही हासिल करता है। यह सिलसिला चाहे कोई मुख्यचिकित्साधिकारी आये जारी रहता है।





मुख्यचिकित्साधिकारी डॉ जयंत कुमार भी पुरानी परम्परा को क़ायम रखने की राह पर है। इनके द्वारा भी लेखा जैसे महत्वपूर्ण पटल को 3 प्रधान सहायक और 6 वरिष्ठ सहायकों के होते हुए भी लेखा पटल का प्रभार कनिष्ठ लिपिक पुनीत श्रीवास्तव को दिया जाना कही न कही वरिष्ठ कर्मियों के मनोबल को तोड़ने वाला कहा जा सकता है। यह भी सूच्य हो कि जिस पुनीत श्रीवास्तव को लेखा जैसा महत्वपूर्ण प्रभार दिया गया है,के खिलाफ  लखनऊ मे जाँच चलने की बात कही जा रही है।




 बता दे कि  इसके साथ ही यह भी सूच्य हो कि लेखा जैसे पटल का प्रभार प्रधान सहायक को ही देने का शासनादेश है।

 बता दे कि मुख्यचिकित्साधिकारी कार्यालय मे 3 प्रधान सहायक अंबरीश बहादुर, गुलाम किरविरिया अंसारी, विनोद सैनी मौजूद है। इसके साथ ही 6 वरिष्ठ सहायक भी मौजूद है। कनिष्ठ सहायक से लेखा का कार्य लेना निश्चित ही भ्रष्टाचार करने या भ्रष्टाचार छुपाने का प्रयास हो सकता है।






शासनादेश मे साफ साफ लिखा है कि किस बाबू को कौन सा दायित्व दिया जा सकता है? लेकिन सीएमओ  बलिया को न निदेशक प्रशासन के किसी आदेश निर्देश की परवाह है, न ही शासनादेश की, इनको तो सिर्फ चिंता है कि इनकी गणेश परिक्रमा करने वाले को कैसे लाभ पहुँचाया जा सके। वैसे पहली बार प्रभार मिलने पर ऐसा होना लाजमी है।