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क्यों मनायीं जाती है हरतालिका तीज, कैसे पड़ा इसका नाम, सुने सुन्दर गीत



मधुसूदन सिंह

बलिया।। आज हिन्दू परिवारों मे हरतालिका तीज की धूम है। पर क्या आप जानते है कि इस व्रत की शुरुआत किसने की? और इसका नाम हरतालिका तीज कैसे पड़ा? तो आइये हम आपको इस व्रत से जुडी सभी बातों को विस्तार से बताते है।भादो मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया यानि आज (मंगलवार को) हरतालिका तीज का पर्व मनाया जा रहा है। इस दिन महिलाएं व्रत रखकर शिव पार्वती की पूजा करती हैं। 

हिंदू पंचांग के अनुसार इस बार हरतालिका तीज 30 अगस्त दिन मंगलवार यानि आज है। इस दिन सुहागी और कुंवारी कन्या पति की लंबी आयु और मनचाहा वर प्राप्त करने के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। ऐसी मान्यता है, कि माता पार्वती भी इस व्रत (हरतालिका तीज ) को रखने के बाद ही भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त की थी। इस दिन माता पार्वती और भगवान शिव विशेष पूजा अर्चना की जाती है। व्रती इस दिन सोलह सिंगार करके पूजा करने के बाद कथा पढ़ती है। 

               क्या है इस व्रत की कथा 

पौराणिक कथा के अनुसार माता पार्वती और भगवान शिव के पुनर्मिलन मिलन के मौके पर हर साल तीज मनाया जाता है। भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त के लिए माता पार्वती ने कठोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या को देखकर उनके पिता बहुत दुखी हो गए थे। माता पार्वती की तपस्या देखकर भगवान विष्णु प्रसन्न हुए और उन्होंने महर्षि नारद को माता पार्वती के पिता के पास विवाह का प्रस्ताव लेकर भेजा।


राजा हिमालय महर्षि नारद के इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिए। लेकिन जब यह माता पार्वती को पता चलीं, तो वह बहुत दुखी हो गई और उन्होंने सारी बात अपनी सखी से कह डाली। जब सखी ने माता पार्वती की पीड़ा सुनीं, तो वह माता पार्वती को घर से चुराकर जंगल की ओर ले गई और वहीं उन्हें तपस्या करने को कहा। माता पार्वती फिर से भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए वही आराधना में लीन हो गई। 




उन्होंने भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन हस्त नक्षत्र में रेत से शिवलिंग का निर्माण किया और पूरी श्रद्धा के साथ आराधना करते हुए रात्रि जागरण भी किया। माता पार्वती की कठोर तपस्या को देखकर भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए और वह माता पार्वती को दर्शन दिए। तब भगवान शिव ने उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया। तभी से पूरे संसार में पति की लंबी आयु और मनोवांछित वर प्राप्त करने के लिए कुंवारी कन्या और सुहागिन महिलाएं हरतालिका का व्रत हर साल करने लगीं।

 भाद्रपद मास की इस तीज का नाम क्यों पड़ा हरतालिका?

हरतालिका दो शब्दों हर और तालिका से मिलकर बना है। हर का मतलब होता है हरण और तालिका का मतलब होता है सखी। भगवान विष्णु के साथ जब विवाह प्रस्ताव को हिमालय राज ने स्वीकार कर लिया तो यह बात माता पार्वती की सखी को बहुत नागवार गुजरी। क्योंकि सखी को पता था कि माता पार्वती मन ही मन में भगवान शिव को अपना पति मान ली थी और उनकी पूजा में लीन रहती थी। फिर सखी ने माता पार्वती को उनके घर से चुराकर एक घने जंगल में ले गई। वहीं तपस्या करने के तत्पश्चात भगवान शिव माता पार्वती को पति के रूप में प्राप्त हुए थे। क्योंकि माता पार्वती को उनकी सखियां उनके घर से चुराकर ले गई थी, इसी वजह से इस व्रत का नाम हरतालिका तीज पड़ा।

अब देखिये और सुनिए यह सुंदर तीज गीत