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लोकतांत्रिक व्यवस्था को विशुद्ध परिवेश देती है मीडिया -- मुनेश्वर मिश्र

 



मीडिया तब और अब विषय पर  समसामयिक सटीक विश्लेषण जरूरी  


प्रयागराज ।। भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुनेश्वर मिश्र का कहना है कि मीडिया के अतीत और वर्तमान का समसामयिक सटीक विश्लेषण अत्यंत जरूरी हो गया है । श्री मिश्र ने महासंघ द्वारा केंद्रीय संचालन समिति की अति महत्वपूर्ण बैठक में उपरोक्त उद्गार व्यक्त किए । श्री मिश्र ने कहा कि  आज इस बात की अनिवार्य आवश्यकता है कि हम सभी इस अति आवश्यक बिंदु पर गंभीर होकर चिंतन करें ।

                   मीडिया तब और अब

बदलते सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक परिप्रेक्ष्य में प्राय: मीडिया की भूमिका पर सवाल उठते रहे हैं। प्राय: कहा जाता है कि मीडिया अपने उत्तरदायित्यों का निर्वहन संजीदगी से नहीं कर पा रही है। इस सम्बंध में समाचार पत्रों व चैनलों के मालिकानों का हस्तक्षेप, सरकार तथा धन कुबेरों की ओर से पड़ने वाले दबावों की चर्चा की जाती है। मीडिया को लोकतंत्र के चौथे खंभे की संज्ञा दी जाती है। जिस तंत्र में लोक अर्थात जनता की सत्ता सर्वोपरि होती है, वही सही मायने में लोकतंत्र होता है। लोेकतंत्र का मतलब है- ऐसी शासन व्यवस्था जहाँ उचित-अनुचित का निर्धारण करते हुए शासन-व्यवस्था चलायी जाय और जनहित में काम किए जायें। 

लोकतंत्रीय व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने के लिए जनता का विवेकशील होना अत्यन्त आवश्यक है। जनता सामाजिक, सांस्कृतिक और पारिवारिक रूप से सुशिक्षित होगी तभी लोकतंत्र का सही स्वरूप सामने आ सकेगा। अब रही बात मीडिया की भूमिका की तो जनता को विवेकशील बनाने और लोकतांत्रिक व्यवस्था का विशुद्ध परिवेश प्रदान करने में मुख्य रूप से मीडिया की ही भूमिका होती है। समय के साथ जिस तरह के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक बदलाव होते हैं, उसमें मीडिया का स्वरूप बदलना भी लाजिमी है, परन्तु मीडिया का स्वरूप पूर्ण रूप से न कभी बदला है और न ही आने वाले समय में बदलने की संभावना है। 





मीडिया अपने विवेक से सही-गलत, उचित-अनुचित का विभेद करना जानती है। वह अपने धर्म और उत्तरदायित्व का निर्वहन करना जानती है। उसे अपनी ड्यूटी और रिस्पांसबिलिटी पता है। जिस दिन यह समाज और देश मीडिया की ड्यूटी और रिस्पांसबिलिटी को समाप्तप्राय मानने लगेगा उसी दिन मीडिया अपना अर्थ खो देगी। बिना इस बहस में पड़े कि मीडिया का कौन सा स्वरूप कितना प्रभावशाली है, हमें यह मानकर चलना होगा कि प्रिन्ट, इलेक्ट्रानिक और सोशल मीडिया सभी अपने स्तर से लोकतंत्र को मजबूत करने के कार्य में लगे हैं। 

लोकतंत्र में लोक की सत्ता सर्वोपरि है। वह देश की विधायी संस्थाओं के लिए अपने प्रतिनिधि का निर्वाचन करती है। यही प्रतिनिधि आपस में मिल बैठकर सरकार बनाते हैं तथा जनता के लिए कानून बनाते हैं। कार्यपालिका द्वारा इन कानूनों को लागू कराया जाता है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में लोगों की भलाई के लिए काम किया जाता है। अब यहीं से मीडिया की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि जनजागृति का काम इसी के जिम्मे होता है। मीडिया अपना कर्तव्य और उत्तरदायित्व निभाते हुए सही अर्थों में लोगों को जागृत करने का काम करती है।

कटु सत्य खबर भी अगर लोकहित के खिलाफ हो तो उसके प्रकाशन से बचे

यहां यह देखना महत्वपूर्ण है कि मीडिया अपने कर्तव्यों और उत्तरदायित्वों का निर्वहन सम्यक रूप से करे। मीडिया का कर्तव्य है कि वह तथ्यों व सूचनाओं के आधार पर खबरें पढ़कर या समाचार प्रकाशित कर लोकहित के कार्य को आगे बढ़ाए। पत्रकार को पूरी निष्पक्षता व तटस्थता से समाचारों का प्रकाशन करना चाहिए और खबरों से कहीं से लोकहित को बाधा नहीं पहुंचानी चाहिए। भले ही समाचार सत्य हो पर उससे यदि लोकहित में बाधा पड़ रही हो तथा शांति व्यवस्था प्रभावित हो रही हो तो ऐसे प्रकाशन से बचना चाहिए। मीडिया कर्मी अपने विवेक और उचित-अनुचित का सम्यक विभेद नहीं कर पाये तो यह मानकर चलना चाहिए कि उसने अपने पेशे के साथ न्याय नहीं किया है। लोकतंत्र की मजबूती के लिए मीडिया का लोकहितकारी होना आवश्यक है। यदि पत्रकार तटस्थ होकर लोकहित के लिए कलम चलाएगा तो उस पर जनता का विश्वास बना रहेगा।

टीआरपी की होड़ में दम तोड़ रही है जनसरोकार की खबरे

आज का युग मीडिया की स्पर्धा का युग है। इस क्षेत्र में भी प्रसार संख्या बढ़ाने तथा टीआरपी बढ़ाने की गला काट प्रतियोगिता चल रही है। इसके लिए खबरों को सनसनीखेज बनाकर प्रस्तुत किया जाता है। इस कवायद में यह नहीं देखा जाता कि समाज में इसका क्या प्रभाव पड़ रहा है। सस्ती लोकप्रियता के लिए समाज विरोधी घटनाओं को भुनाना पत्रकारिता के लिए कहीं से भी उचित नहीं है। मीडिया का दायित्व है कि वह जनता के समक्ष कार्यपालिका, विधायिका तथा न्याय पालिका के घटनाक्रमों की सच्ची तस्वीर प्रस्तुत करे। 

किसी भी देश की उन्नति व नवनिर्माण के लिए मीडिया की बहुत बड़ी भूमिका होती है। इतिहास में ऐसे उदाहरणों की कमी नहीं है जब लोगों ने मीडिया की ताकत को पहचानकर सामाजिक परिवर्तन के लिए इसका इस्तेमाल किया। जनजागरण में मीडिया का योगदान किसी से छिपा नहीं है।

आपराधिक व नकारात्मक खबरों के प्रकाशन से बचे युवा पत्रकार

प्राय: देखा जाता है कि चैनलों और समाचार पत्रों में अपराध से सम्बंधित नकारात्मक खबरें चटखारे लेकर प्रकाशित की जाती हैं या सुनाई जाती हैं। मीडिया ऐसी खबरें अतिरंजित होकर न दिखाए, साथ ही विकास से सम्बंधित सकारात्मक खबरों को प्रमुखता से स्थान दे। यदि मीडिया में सकारात्मक और विकास से जुड़ी खबरें नहीं होंगी तो आम जनमानस निराशा में डूबेगा और उसे लगेगा कि इस देश का भला नहीं हो पाएगा।

कहा है कि नई पीढ़ी के पत्रकारों को इस पक्ष पर ध्यान देने की आवश्यकता है। थाने में बैठकर रूआब गांठने के बजाए पत्रकारों को समाज हित के लिए सकारात्मक पत्रकारिता का रुख करना होगा। भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महासंघ द्वारा अति शीघ्र इस संबंध में एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया जाएगा जिसमें देश भर के विद्वान पत्रकारों का विचार जानने की सार्थक पहल होगी ।