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कबीर जयंती पर विशेष : कबीरा गर्व न कीजिए, काल गहे कर केस

 


 डॉ० भगवान प्रसाद उपाध्याय  

प्रयागराज ।। सुप्रसिद्ध समाज सुधारक एवं संत कवि कबीर दास जी ने गर्व के बारे में अत्यंत सुंदर व्याख्या की है उन्होंने कहा है कि गर्व नहीं करना चाहिए । गर्व अर्थात घमंड एक ऐसा अवगुण है जो प्रायः सभी में पाया जाता है मनुष्य और देवताओं में कोई भी इससे अछूता नहीं है ।

 प्रभुत्व अर्थात जब हम कही शीर्ष पर पहुंचते हैं तो अहंकार आना स्वाभाविक है । इसीलिए संत कबीर दास जी ने  हमें  सचेत किया है कि गर्व करना उपयुक्त नहीं है सभी  काल के वशीभूत हैं और वह कभी देश या प्रदेश में कहीं भी किसी भी क्षण काल के गाल में जा सकते हैं । इसीलिए कबीर जी ने यह दर्शाया है कि सबका केश काल ने पकड़ रखा है ,वह जब चाहे तब, जहां चाहे जिस स्थिति में आप हैं उसी दशा में वह आपको अपने अधीन कर सकता है । गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी  श्री रामचरितमानस में कई स्थानों पर इस बात का उल्लेख किया है कि जब यह सुनिश्चित है कि जो जन्म लेता है उसकी  मृत्यु  भी होती है तो हम किस बात का घमंड करें इसीलिए उन्होंने लिखा कि 

 " प्रभुता पाई काह मद नाही " 

 हम अपने अहंकार को स्वयं पोषित करते हैं और उसके  उपरांत विवेक खो बैठते हैं जिससे सत्य असत्य का ज्ञान भी नहीं रह जाता । एक अविवेकी जीव कुछ भी कर सकता है किसी भी स्थिति में जा सकता है । आज वर्तमान परिवेश में यदि   देखा जाए तो जो भी  येनकेन प्रकारेण  अपनी प्रभुता बढ़ाना चाहते हैं अपने अहं  को सुदृढ़ करना चाहते हैं, वे अपने समाज के अन्य वर्ग को उत्पीड़ित और प्रताड़ित करके भी अपने अहंकार  की पुष्टि करते हैं और अंत में वही दशा होती है जो सबकी होती है । राजा और रंक में मृत्यु कभी भी कोई अंतर नहीं करती है । महाप्रतापी  रावण को भी इस बात का  अहंकार हो गया कि उसके अधीन सभी देवी देवता है । वह ब्रह्माण्ड  का सबसे शक्तिशाली राजा है जो चाहे सो कर सकता है । अंत में जब  काल उसके सम्मुख आ गया तब उसे सत्यता का आभास हुआ ।

 इसी प्रकार द्वापर युग में भी अनेक ऐसे दृष्टांत मिलते हैं जिससे अहंकार के वशीभूत अनेक बलशाली राजाओं ने अपने अधीनस्थ प्रजा पर भी अत्याचार किया ।इस संदर्भ में सर्वाधिक प्रसंग रक्ष  संस्कृति  के   पोषकों  का आता है । राक्षस योनि में जन्म लेने के कारण और तप बल से अपनी इच्छित अभिलाषा पूर्ति के योग्य बन जाने के कारण वे अनेक ऐसे कुकर्म कर बैठे कि उनके अंत का समय बहुत ही  वीभत्स  रहा ।





 घमंडी का सिर हमेशा  नीचा  होता है और घमंड ईश्वर का आहार होता है । इसीलिए समय-समय पर वह अपने अति प्रिय   भक्तों  को भी उनके घमंड का  शमन करके उन्हें सदा  सत्य  मार्ग पर ले आता है । सभी योनियों में जो शक्तिशाली है कमजोर के  समक्ष अपनी शक्ति का प्रदर्शन करता है इसलिए घमंड से दूर रहने की शिक्षा सभी मनीषियों ने दी है कबीर दास जी ने भी एक जगह और  लिखा है  

ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोय 

 औरन को शीतल करे आपहु शीतल होय 

इसी विचारधारा को आगे बढ़ाते हुए फिर एक जगह कबीर दास जी और लिखते हैं कि  

 कबिरा कहा गरब्बियो, ऊंचे देखि  अवास  ।

काल परे  भुइं लेटणा,  ऊपर जामे घास ।।

   किंतु  ज्ञान के अभाव में हम यह भूल जाते हैं कि हमारे जीवन की डोर किसी और के हाथ में बंधी है ऐसा कोई कार्य न करें जिससे हमारा अंत ठीक ना हो कबीर दास  जी ने समाज सुधार के क्षेत्र में अपने दोहों के माध्यम से बहुत सी बातें समाजोपयोगी   रखी  हैं  प्रत्येक  सामाजिक विसंगतियों पर लोगों को  सचेत  किया जो भी मानवीय दुर्गुण हैं उनके प्रति प्रायः सभी समाज सुधारक और संत मनीषी  सचेत करते रहते हैं फिर भी हम उनका पालन नहीं करते जीवन में हमें यदि कुछ सार्थक करना है और सही दिशा की ओर बढ़ना है तो हमें   अहंकार  को अपने पास नहीं आने देना है हम यंत्र से दूर रहकर कुछ भी करेंगे तो उसका परिणाम सुखद ही होगा