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आज आम आदमी के लिये नही,सत्ता के लिये आम आदमी को तैयार करने वाली हो गयी है मीडिया : यशवंत सिंह

 



बलिया ।। हिंदी पत्रकारिता दिवस पर कोलकाता विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त  और लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकार केदारनाथ सिंह के चचेरे भाई प्रोफेसर यशवंत सिंह की नजर में आज की पत्रकारिता अपने मिशन से भटक गयी है ।

प्रो सिंह ने कहा है कि अंग्रेजों के जमाने में,जब आम आदमी को निरंतर गुलाम बनाने की कोशिशें जारी थीं,हिंदी पत्रकारिता लगभग पूरी तरह आज़ाद मानस से प्रेरित थी।वह गुलामी और गुलामी की मानसिकता के विरुद्ध लगातार संघर्ष कर रही थी। वह तरह तरह के खतरे उठा कर भी जनमानस को आज़ादी की ओर ढकेलने की कोशिश कर रही थी।वह इस प्रयास में थी कि आर्थिक घाटा उठाकर,अपनी निजी संपत्तियों को बेंच कर,जरूरत पड़े तो पत्नी के गहने बेंच कर, जेल के खतरे उठा कर भी,लोगों को सचमुच गुलामी के विरुद्ध शिक्षित किया जाय।उन्हें एक लंबी और मनुष्य की गरिमा बढ़ाने वाली लड़ाई के लिए तैयार किया जाय।

पर आज उसकी जगह नए ज़माने का 'मीडिया' है,जो आम आदमी के लिए संघर्ष नहीं करता,वल्कि सत्ता के लिए आम आदमी को कैसे तैयार किया जाय,इस बात के लिए लगातार प्रयत्नशील और सजग दीखता है।वह चाहे प्रिंट मीडिया हो या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया। यह 'वन वे ट्रैफिक' की तरह हो गया है,जिसमें निर्णय और जीवन के लिए आवश्यक दृष्टिकोण ऊपर से आ रहे हैं और हम उसके सिर्फ 'फॉलोवर' बनते जा रहे हैं।आजादी के ठीक बाद से ही मीडिया में जो बदलाव शुरू हुआ वह अनवरत जारी है।





सिर्फ मीडिया का ही नही समाज का भी दोष

बेशक आज भी कुछ लोग और कुछ पत्रिकाएं अपने बड़े उद्देश्य के लिए परेशानी उठा कर भी संघर्ष कर रहीं है।पर उनकी आवाज नक्कारखाने में तूती की तरह है। दोष सिर्फ मीडिया को हम नहीं दे सकते।यह सम्पूर्ण समाज के सोंचने और चीजों को देखने के तरीके में जो गिरावट आई है,उसका प्रतिफल भर है।आज हर आदमी के सोंचने का तरीका व्यावसायिक हो गया है।जब सबकुछ बिकाऊ है।आदमी से लेकर उसका ईमान,मूल्य सबकुछ। आज पत्रकार अगर समाचार बेंचकर अपना धंधा चला रहा है,पत्रकारिता को किसी 'मिशन' से जोड़ कर नहीं,वल्कि एक व्यवसाय समझता है,तो हम सिर्फ उसे दोषी नहीं मान सकते।आम पत्रकारों की आर्थिक हैसियत किसी से छुपी नहीं है।बड़े घरानों के पत्रकारों की आर्थिक राजनीतिक और सामाजिक हैसियत की बात छोड़ दें।  

मीडिया में गिरावट किसी न्यूक्लियर बम गिरने से कम नही

अब वह पत्रकारिता नहीं रही।वह बड़े बड़े व्यावसायिक घरानों और बड़े बड़े मीडिया ग्रुप के अधीन है।गिरावट जीवन के हर क्षेत्र में है,यहां तक कि राजनीति में भी।कभी वह भी तो 'मिशनरी' हुआ करती थी । फिर भी पत्रकारिता की जिम्मेदारियां मानवता,जीवन के आदर्शों,मूल्यों और लोकतांत्रिक चेतना के प्रति अधिक होने के कारण उससे अपेक्षाएं भी अधिक हैं।उसका गिरना किसी 'न्यूकलीयर' हमले की तरह खतरनाक और विनाशकारी है।


जैसे खतरनाक युद्ध में भी लोग भरसक परमाणविक हमले से बंचते हैं,ऐसा करने में समर्थ होने के बावजूद।उसी तरह पत्रकारिता के समर्थ लोगों को भी अपने दायित्वों और उसके अभाव में होने वाले दूरगामी विनाश को महसूस करते हुए,बेहतर भविष्य के निर्माण के प्रयास में लग जाना होगा। पहले ही बहुत देर हो चुकी है।कृपया और देर न होने पाए।आइए पत्रकारिता दिवस पर हम इस संकल्प के साथ आगे बढ़े।