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पेपर लीक प्रकरण :पत्रकारों से मुखातिब होने से क्यो कतरा रहे है जिलाधिकारी और पुलिस कप्तान ?

 


मधुसूदन सिंह

बलिया ।। एक तरफ बलिया से अंग्रेजी का पेपर लीक हुआ है इसको जिला प्रशासन साबित करने में अब तक सफल नही हुआ है तो दूसरी तरफ पुलिस और जिला प्रशासन अपनी कमियों को उजागर करने वाले अमर उजाला के पत्रकार अजित ओझा पर बलिया कोतवाली के साथ ही सिकन्दरपुर और नगरा में दर्ज मुकदमों में भी शामिल करते हुए 120 बी का मुजरिम बनाकर पेपर लीक मामले का मुख्य आरोपी बनाने पर आमादा है । जो पुलिस अधीक्षक छोटी छोटी चोरियों के खुलासे में भी प्रेसवार्ता करते थे,वे मास्टर माइंड की गिरफ्तारी के बाद भी आखिर क्यो प्रेसवार्ता के माध्यम से मीडिया कर्मियों का सामना करने से कतरा रहे है, विज्ञप्ति का सहारा ले रहे है ।




सबसे बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि परीक्षा केंद्र पर परीक्षा की सुचिता को बनाये रखने के लिये केंद्र व्यवस्थापक, सहायक केंद्र व्यवस्थापक और स्टैटिक मजिस्ट्रेट की जब नियुक्ति हुई है, तो पुलिस द्वारा बताये जा रहे मास्टर माइंड दो स्कूलों के प्रबंधकों ने अकेले पेपर आउट कैसे कर लिया ? (वैसे अभी तक यह साबित ही नही हुआ है कि बलिया में अंग्रेजी के पेपर वाले लिफाफे फटे है )। अगर वास्तव में इन लोगो द्वारा ही पेपर आउट किया गया है तो वो दोनों विद्यालयों के केंद्र व्यवस्थापक, सहायक केंद्र व्यवस्थापक (यह दूसरे विद्यालय के शिक्षक होते है) और स्टैटिक मजिस्ट्रेट (जो सरकारी अधिकारी होते है ) कि गिरफ्तारी अब तक क्यो नही हुई है ? इनके नामों का खुलासा पुलिस ने अबतक क्यो नही किया है ।

  हकीकत यह है कि अपने ही बुने जाल में जिला प्रशासन उलझता जा रहा है और इसी झुंझलाहट में गिरफ्तार पत्रकारों पर फर्जी मुकदमों का बोझ लादता जा रहा है । जिला प्रशासन और पुलिस को चाहिये कि एसटीएफ की जांच का इंतजार करते,एसटीएफ को खुलासा करने देते,क्योकि शासन ने प्रथम दृष्टया बलिया के प्रशासन को इस प्रकरण में फेल मानते हुए ही एसटीएफ को जांच सौंपी है । लेकिन यहां तो एसटीएफ से ज्यादे तेज वह बलिया पुलिस हुई है जिसकी लापरवाही का ही नतीजा है कि यह प्रकरण सामने आया है ।

बलिया का पत्रकार समुदाय एक तरफ जहां अपने तीन गिरफ्तार निर्दोष साथियों की बाइज्जत रिहाई की मांग करता है तो वही जिलाधिकारी की अगुवाई वाली परिक्षाकेन्द्र निर्धारण समिति के सदस्यों की भी जांच की मांग करता है । आखिर इस समिति ने किस आधार पर सर्वाधिक 139 वित्त विहीन विद्यालयों को परीक्षा केंद्र बनाया है जिनमे अधिकांश के पास जरूरी संसाधन भी नही है । यह भी जांच होनी चाहिये कि आखिर कौन सी कसौटी है जिसके आधार पर परीक्षा केंद्र बनाये जाते है और इस कसौटी पर सरकारी और एडेड विद्यालय क्यो नही पास हो रहे है ? क्या परीक्षा केंद्र निर्धारण की कसौटी चढ़ावा है ? इसकी भी जांच एसटीएफ की टीम को करनी चाहिये ।

साथ ही पत्रकार समुदाय की यह भी मांग है कि अगर बलिया से अंग्रेजी का पेपर आउट नही हुआ है, यह साबित हो जाता है तो सबसे पहले जिलाधिकारी को अपने पद का दुरुपयोग करने, पूरे प्रदेश में यूपी बोर्ड की परीक्षा की शुचिता को प्रभावित करने,24 जिलों में बिना जांच के ही अंग्रेजी की परीक्षा को निरस्त कराने का दोषी मानते हुए इनके खिलाफ कठोरतम कार्यवाही होनी चाहिये । वही फर्जी मुकदमों में फंसाये गये तीन पत्रकारों की तत्काल रिहाई के साथ ही फर्जी मुकदमों की भी वापसी होनी चाहिये । इस पूरे प्रकरण में डीएम एसपी सहभागी है,इस लिये इन दोनों अधिकारियों का बलिया से स्थानांतरण करते हुए इनकी भूमिका की माननीय उच्च न्यायालय के वर्तमान या सेवानिवृत्त न्यायाधीश से जांच करायी जाय, जिससे दूध का दूध और पानी का पानी सामने आ सके ।