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एक कोशिश मानवता के नाम,की टीम ने वृद्धाश्रम में बुजुर्गों संग खेली होली,दिया उपहार, बुजुर्गों ने की आशीषों की बौछार



मधुसूदन सिंह

बलिया। जिले में होली का त्योहार चहुंओर हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। वृद्धाश्रम में रहने वाले इस रंग से अछूते ना हो, इसको ध्यान में रखते हुए एक कोशिश मानवता के नाम, नामक स्वयं सहायता समूह वाले नौजवानों की टीम जब शुभम प्रकाश प्रिंस  के साथ मिष्ठान, वस्त्र, रंग, अबीर व गुलाल लेकर गड़वार स्थित वृद्धाश्रम पहुंची तो वहां का माहौल ही रंगीन बना दिया। उन्होंने अपनों द्वारा बेगाने किये गये बुजुर्गों के साथ होली त्योहार मनाकर उनसे दूर हुई खुशियो को साझा करके परिवार का आनंद प्रदान किया। इस दौरान थकी आंखों और कांपते हाथों में उत्साह का ऐसा संचार हुआ, मानों उनके ख्वाब फिर से जवां हो गया है। अपनो से तिरस्कृत वृद्धों के मन की इस उमंग को अयोध्या सिंह हरिऔध ने यूं कहा है --

उमग उमग देता हूँ बधाई।

यह फागुन रस बरसा जाये यह होली हो अतर सिंचाई।

सुरुचि निकेत बड़ों के कर की यह अति सुन्दर बेलि लगाई।

सब दिन भरी रहे फूलों से मन हर ले उसकी सुघराई।

सींच सींच निज प्यार सलिल से आप उसे दें ललित लुनाई।

उससे सुरभित हो भूतल में कीरति रहे आप की छाई।

राग तान सुउमंग रंग की छवि आँखों में रहे सवाई।

लाल गुलाल लगे मुखड़े की दिन दिन होवे अधिक ललाई।।






'प्रिंस' के साथ पूरी टीम वृद्धजनों के साथ सूखे रंग की होली खेली। एक-दूसरे को अबीर गुलाल लगाया। होली का उत्सव मनाया। इस दौरान वृद्धजनों का उत्साह देखते ही बन रहा है। झाल-मंजीरा के साथ वृद्धजनों ने होली गीत गाया। प्रिंस ने वृद्धजनों को गुजिया खिलाकर उनके चेहरे पर अपनत्व की मुस्कान दी। बुजुर्ग महिला और पुरूषों ने पुत्रवत मानकर प्रिंस व उनकी टीम को दिल खोलकर आशीर्वाद दिया। 








बता दे कि प्रिंस और इसके नौजवान दोस्ती की यह टोली कोरोना की पहली लहर से ही अपनी एक संस्था -एक कोशिश मानवता के नाम,के द्वारा बलिया शहर ने प्रति दिन घूम घूमकर बेसहारा लोगो को भोजन कराती है और त्योहारों के अवसर पर आज की ही तरह ऐसे लोगो के बीच जाकर त्योहार की खुशियां दे देती है,जिनको उम्मीद भी नही रहती है । वृद्धाश्रम में बुजुर्गों संग होली खेलने के बाद प्रिंस ने कहा कि त्योहार सभी के लिए एक समान है, लेकिन परिस्थितियां ऐसी होती हैं कि कुछ लोग इस उत्सव से अछूते रह जाते हैं। इन बातों को ध्यान में रखते हुए हम सभी ने वृद्धाश्रम पहुंच कर बुजुर्ग महिलाओं व पुरूषों के साथ अबीर व गुलाल के साथ होली खेली। इस मौके पर बुजुर्गों ने ढोलक व मंजीरों की थाप पर होली के गीतों के साथ जमकर फाग गायन किया। शहनवाज अहमद, निखिल पांडेय, रोहित गिरी, आदर्श प्रताप सिंह, आलोक सिंह, डीजे ग्राफी, मनोज इत्यादि शामिल रहे। एक कोशिश मानवता के नाम, की टीम के वापस लौटने पर वृद्धाश्रम के संवासी प्रिंस के बारे में यूं आपस मे कह रहे थे --

कौन था वह था किसका लाल,

क्यों गया मुझ पर जादू डाल?

भाल पर था कुंकुम का तिलक,

कपोलों पर विथुरी थी अलक,

न पड़ती मुख अवलोके पलक,

छगूनी थी तन-छवि की छलक,

गले में विलसित थी वनमाल।

बन रहे थे मृदु, मंद मृदंग,

सुधामय थी स्वर-ताल-तरंग,

मुग्धा करती थी मधुर उमंग,

अवनि पर था अवतरित अनंग,

पुलकमय परम कांत था काल।

रंग था बरस रहा सब ओर,

सरसता छूती थी छिति-छोर,

ललकमय थी लोचन की कोर,

चितवनें लेती थीं चित चोर,

हँसी थी मोहक-मधुर-रसाल।

मल गया मुख में मंजु अबीर,

कर गया पुलकित सकल शरीर,

साथ लाकर रसिकों की भीर,

गा गया सुन्दर सरस कबीर,

डाल नयनों में गया गुलाल।


(अयोध्या सिंह हरिऔध)