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पंडितों ने कहा 18 मार्च को होली मनाना शास्त्र सम्मत नही,19 को मनाये होली



मधुसूदन सिंह

बलिया ।। जिलाधिकारी द्वारा मंगलवार को होली मनाने की घोषणा से जनपद में रंगों के त्योहार होली को लेकर उहापोह की स्थिति पैदा हो गयी । जिलाधिकारी द्वारा 18 मार्च को होली मनाने की घोषणा होते ही पंडित समाज भी हरकत में आ गया । जिलाधिकारी के आदेश को शास्त्र विरुद्ध बताते हुए पंडितों के एक प्रतिनिधिमंडल द्वारा जिलाधिकारी से मिलकर होली मनाने के लिये पंचांग में वर्णित तिथि 19 मार्च को होली का त्योहार मनाने के लिये संशोधित आदेश जारी करने का अनुरोध किया गया । जिसके बाद बुधवार को जिलाधिकारी बलिया द्वारा पुनः एक आदेश जारी किया गया है जिसमे 18 मार्च के साथ साथ 19 मार्च को भी होली मनाने की बात कही गयी है । बता दे कि सभी पंचांगों में 17 /18 मार्च की रात्रि 12 बजकर 57 मिनट के बाद होलिका जलाने की बात कही गयी है । साथ ही रंगों वाली होली के लिये काशी में 18 मार्च और अन्यत्र सभी जगहों के लिये 19 मार्च की तिथि बतायी गयी है । यही नही प्रदेश सरकार के मुखिया और गोरक्षनाथ पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ जी भी गोरखपुर में 19 मार्च को ही होली का त्योहार मनाएंगे ।



ऐसी परिस्थिति में बलिया एक्सप्रेस की टीम ने पंचांग विशेषज्ञ पंडितों की राय ली और जानने का प्रयास किया कि होली मनाने की कौन सी तिथि शुभ और उत्तम है । बाबा बालेश्वरनाथ मंदिर के पुजारी संजय गिरी व अन्य पुजारियों ने साफ कहा है कि हमारे यहां के जो भी पंचांग है,जिनका ज्योतिषी गणना में प्रयोग होता है, सब मे होली की तिथि 19 मार्च ही बतायी गयी है । यह लॉ एंड आर्डर का मैटर नही है कि जिला प्रशासन तय करे कि किस दिन होली मनायी जाएगी । हमारे त्योहार शुभ मुहूर्त में मनाये जाते है,ताकि हमें शुभ फल प्राप्त हो । भद्राकाल के दौरान हमारे यहां कोई भी शुभ कार्य नही किया जाता है ।

कहा कि 17 मार्च और 18 मार्च दोनों दिन पूर्णिमा है । होलिका को पूर्णिमा की रात में ही जलाने का प्राविधान है । चूंकि 17 मार्च की रात 12 बजकर 57 मिनट तक (यानी 18 मार्च) तक भद्रा काल है और भद्राकाल में होलिका नही जलायी जाती है । इस लिये यह 17/18 मार्च की रात 12 बजकर 57 मिनट के बाद जलायी जाएगी,जिसके कारण रंगोत्सव त्योहार होली 19 मार्च प्रतिपदा को मनायी जाएगी ।



 वही भृगुआश्रम के पंडित विजय शंकर मिश्र (प्रश्न कुंडली जन्म कुंडली विशेषज्ञ) की भी यही राय है कि होली का त्योहार 19 मार्च को ही मनाना शुभ है ।





कब होता है होलिका दहन

होलिका दहन फाल्गुन मास  की पूर्णिमा तिथि  को किया जाता है. होलिका दहन के दिन को कई जगहों पर छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है. होलिका दहन केे अगले दिन होली का त्योहार मनाया जाता है, जिसमें रंग-अबीर की होली खेली जाती है. इस बार भद्राकाल के कारण होलिका दहन के शुभ समय को लेकर लोग संशय में हैं वहीं प्रतिपदा तिथि व होली की तिथि में भी उलझन में हैं ।


इस बार पूर्णिमा तिथि दो दिन पड़ रही है, साथ ही पूर्णिमा तिथि पर भद्राकाल होने के कारण लोगों में होली और होलिका दहन को लेकर संशय की स्थिति है । हिंदू धर्म ग्रन्थों के अनुसार, होलिका दहन  पूर्णिमा तिथि में सूर्यास्त के बाद करना चाहिए । लेकिन यदि इस बीच भद्राकाल हो, तो भद्राकाल में होलिका दहन नहीं करना चाहिए । इसके लिए भद्राकाल के समाप्त होने का इंतजार करना चाहिए । होलिका दहन के लिए भद्रामुक्त पूर्णिमा तिथि का होना बहुत जरूरी है । हिंदू शास्त्रों में भद्राकाल को अशुभ माना गया है । ऐसी मान्यता है कि भद्राकाल में किया गया कोई भी काम सफल नहीं होता और उसके अशुभ परिणाम मिलते हैं ।

होलिका दहन का शुभ मुहूर्त


ज्योतिष के अनुसार पूर्णिमा तिथि 17 मार्च 2022 को दोपहर 01:29 बजे से शुरू होकर 18 मार्च दोपहर 12:52 मिनट तक रहेगी । जबकि 17 मार्च को ही 01:20 बजे से भद्राकाल शुरू हो जाएगा और देर रात 12:57 बजे तक रहेगा । ऐसे में भद्राकाल होने के कारण शाम के समय होलिका दहन नहीं किया जा सकेगा ।


चूंकि होलिका दहन के लिए रात का समय उपर्युक्त माना गया है, ऐसे में 12:57 बजे भद्राकाल समाप्त होने के बाद होलिका दहन संभव हो सकेगा ।रात के समय होलिका दहन करने के लिए शुभ समय 12:58 बजे से लेकर रात 2:12 बजे तक है । इसके बाद ब्रह्म मुहूर्त की शुरुआत हो जाएगी ।