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बेल्थरारोड विधानसभा : लड़ाई त्रिकोणात्मक, पर अंतिम टक्कर बसपा व सपा गठबंधन के बीच ही होने की संभावना

 


संतोष द्विवेदी

नगरा, बलिया।। बेल्थरारोड सुरक्षित विधानसभा में चुनावी लड़ाई सपा गठबन्धन, बसपा एवं भाजपा के बीच त्रिकोणात्मक है। कांग्रेस सहित अन्य दल इस लड़ाई से बाहर हैं लेकिन राजनैतिक पंडित त्रिकोणात्मक लड़ाई को भी नकारकर मुकाबला सपा गठबन्धन एवं बसपा के बीच ही मान रहे हैं। क्योंकि जातीय समीकरण व अपनो की नाराजगी देखने पर ऐसा ही प्रतीत हो रहा। इस विधान सभा की मौन जनता का मन भांपना राजनैतिक दलों के लिए भी बड़ा मुश्किल लग रहा है। मतगणना के दिन दस मार्च को ही पता चल पाएगा कि ऊंट किस करवट बैठेगा ।





            बेल्थरारोड सुरक्षित विधानसभा में 2017 में हुए मतदान पर गौर फरमाएं तो उस समय मतदाताओं की कुल संख्या 332833 है। बीते 5 सालों में मतदाताओं की संख्या में बढ़ोतरी होकर अब संख्या 357064 हो गयी है। इस विधान सभा में अनुमानित मतदाता अनुसूचित 80000 , यादव 60000, राजभर 50000, मुस्लिम 30000, कोइरी 20000 , चौहान 10000, बैश्य 30000 , क्षत्रिय 25000 और ब्राम्हण 10000, धोबी 10000 के लगभग है, बाकी अन्य मतदाता है।बात अगर पार्टियों के जातीय समीकरण पर बन रहे जनाधार की करे तो सपा-सुभासपा गठबंधन में यादव , राजभर , मुस्लिम जाति के मतदाता मुख्य माने जा रहे है। जिसके गणित से वह चुनाव में आगे दिख रही है लेकिन जमीनी हकीकत की ओर जाएं तो राजभर 2017 के चुनाव में या उससे पहले भी भाजपा से जुड़े रहे है।ओमप्रकाश राजभर के आने से और उनके सिम्बल से चुनाव लड़ने के कारण राजभर बिरादरी का वोट प्रतिशत में सर्वाधिक झुकाव छड़ी पर माना जा रहा है। 




रही बात कमल की तो, कमल की तरफ क्षत्रिय , ब्राम्हण , वैश्य के अलावे चौहान, खड़ा माना जा रहा है। जो पिछले चुनाव में बीजेपी के 15 साल के सूखे को समाप्त कर दिया था। इस बार अंदरखाने की नाराजगी ही उसपर भारी पड़ती दिखायी दे रही है। वहीं बसपा विधानसभा में सबसे अधिक अनुसूचित जाति का मतदाता होने के कारण अपने दम पर दहाड़ती हुई दिख रही है। जातीय समीकरण पर चुनावी पंडित सपा गठबंधन को आगे मान रहे हैं किंतु बसपा के हाथी की सवारी के लिए कुछ क्षत्रिय , वैश्य व मुस्लिम बेचैन हैं। ऐसे में लड़ाई त्रिकोणीय बनी हुई है, लेकिन चुनावी पंडित मुख्य मुकाबला गठबंधन और हाथी के बीच मान रहे। क्योकि पिछले विधानसभा चुनावों में बसपा प्रत्याशी को मिले मतों पर ध्यान दे तो 2012 में छठ्ठू राम 47066 मत पाकर दूसरे स्थान पर रहकर 10297 मतों से पराजित हो गए। 2017 में बसपा से घूरा राम भी 47297 मत पाकर तीसरे स्थान पर रहे। जो यह दर्शा रहा है कि प्रत्याशी चाहे कोई रहा हो, मत प्रतिशत बरकरार रहा।

यदि भाजपा अपने वोटो के बिखराव को रोकने में कामयाब भी हो जाय तब भी गणित सटीक नहीं बैठ रहा है । क्योंकि 2017 में राजभर और कोइरी वोट कमल के साथ था जो इस चुनाव में नहीं दिख रहा । हालांकि ऐसा सम्भव नहीं लग रहा कि भाजपा जन नाराज वोटो को रोक पाएंगे । उधर अनुसूचित वोट में बिखराव नगण्य दिख रहा, बसपा के वोट बैंक में एक रूपता बनी हुई है और बसपा के उम्मीदवार का क्षेत्र का होना, व्यक्तिगत सम्बन्ध और भाजपा के नाराज कार्यकर्ताओ का साथ मजबूत स्थिति पैदा कर रहा। इस प्रकार देखने मे गठबंधन और बसपा मुख्य प्रतिद्वन्दी हैं लेकिन भाजपा को कम आंकना भी भूल होगी क्योंकि राजनीति और क्रिकेट पारे की तरह होती हैं। कब किधर फिसल जाए, कहना मुश्किल है।