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असली चुनाव हो रहा है इस बार ,यह चुनाव बतायेगा कौन कितने पानी मे

 


मधुसूदन सिंह

बलिया ।। न कोई शोर न शराबा ,न कोई रैली न कोई जाम का झाम , सच पूँछिये तो हिंदुस्तान में ऐसी ही चुनावी प्रक्रिया की दरकार है । बहुत दिनों के बाद चुनाव आयोग की ऐसी हनक दिखायी दे रही है जो सत्ता पक्ष व विपक्ष दोनों के प्रति समान है । कोरोना ने एक काम तो अच्छा कर ही दिया है कि नेताओ को इस चुनाव में छठी का दूध याद करा दिया है । कोरोना के बढ़ते प्रकोप के कारण रैलियो,जन सभाओं पर लगी रोक ने बड़े बड़े नेताओं के चेहरों पर चिंता की लकीरें ला दी है । कारण कि ये नेतागण जुटाई गई लाखो की भीड़ और अपने अमर्यादित भाषणों के बल पर जनता के बीच वाहवाही बटोरकर वोटों का समीकरण ठीक कर लेते थे । इस बार नेता परेशान है क्योंकि उनको अपनी राजनैतिक एक्टिंग ,चातुर्य कला दिखाने का चुनाव आयोग मौका ही नही दे रहा है । यही नही सोशल मीडिया तो राजनेताओ के लिये सबसे बड़ा खलनायक बन गया है । इस दल बदलने वाले नेताओं के पुराने भाषण ,दल बदलते ही अपलोड हो जा रहे है,जिसके बाद नेता जी को आधा समय तो इसका जबाब देने में ही निकल जा रहा है ।

लाखो की भीड़ देखने के बाद जो शब्द,जो तेवर,जो कटाक्ष के बोल निकलते है, वो घरों में बैठ कर वीडियो बनाने में निकल ही नही पा रहे है । तालियों की गड़गड़ाहट से जब नेता जी का सुर चढ़ता था तो वो कुछ भी बोल जाते थे और बाद में बवाल होने पर कह देते थे,वीडियो के साथ छेड़छाड़ हुई है,मैने तो ऐसा बोला ही नही था । इस बार नेता जी यह भी नही कह सकते है क्योंकि वीडियो खुद बनवा कर शेयर कर रहे है ।

पिछले चुनावों में चुनाव आयोग प्राइवेट न्यूज चैनलों पर रोक लगाने में कारगर नही दिखा था । पिछले चुनावों में प्राइवेट न्यूज चैनल वाले सत्ता पक्ष के बड़े नेताओं के पूरे भाषण को उस दिन भी लाइव दिखा देते थे जिस दिन उसी प्रान्त के दूसरे हिस्से में चुनाव होता था । इससे निश्चित रूप से चुनाव प्रभावित होता है । एक बात इस बार भी देखने को मिल रही है कि मात्र 10 लोगो की टोली को व्यक्तिगत रूप से मिलकर प्रचार करने की छूट का नियम उस समय ध्वस्त हो जा रहा है जब कोई केंद्र या राज्य का मंत्री प्रचार करने सड़क पर उतर रहे है । चुनाव आयोग को इस मामले में भी निष्पक्ष होने की जरूरत है ।

चुनाव आयोग को इस बार मतदान वाली तिथियों के दिन प्राइवेट न्यूज चैनलों पर नेताओ के भाषणों पर प्रतिबंध लगाना चाहिये, जिससे चुनाव में उस दिन का मतदान प्रभावित न हो ।राजनेताओ की लोकप्रियता और सरकारों के कामकाज का असली परीक्षण इसी चुनाव में हो रहा है । सबसे बड़ी बात यह दिख रही है कि इस बार साम्प्रदायिकता फैलाने वाले जहरीले शब्द भी कम सुनाई दे रहा है जो लोकतंत्र के लिये शुभ संकेत है । यह चुनाव साबित करेगा कि सरकारों के कार्य कलापो से जनता कितना संतुष्ट है । यह चुनाव यह भी साबित करेगा कि सरकार द्वारा दी जा रही सहूलियतों से आमजन कितना खुश है या कितनो तक यह पहुंच रही है । निश्चितरूप से यह चुनाव भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक मील का पत्थर साबित होगा, जहां बिना किसी बहकावे में आये,जनता सही उम्मीदवारों को चुनेगी ।