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रेल गाड़ियों के नाम के आगे लगा स्पेशल यानी जबरन रंगदारी वसूलने वाला हो कोई माफिया





मधुसूदन सिंह

देश के आजाद होने के बाद जब प्रथम प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अत्यंत सस्ती दर पर आम लोगो को या यूं कहें कि स्थानीय लोगो को अपने आसपास सुरक्षित व आरामदायक तरीके से यात्रा करने के लिये सवारी गाड़ियों को चलाने की घोषणा की थी तो उसका पुरजोर विरोध हुआ था । विरोध करने वालो ने कहा था कि यह घाटे का सौदा है, इससे सरकार के राजस्व का काफी नुकसान होगा ,तो पंडित नेहरू ने कहा था कि यह सरकार का राजस्व बढ़ाने के लिये नही, आम जनता को कोई कष्ट न हो, इसके लिये शुरू की जा रही है ।

देश को आजाद हुए 72 साल बीत गये, तब से यह भारतीय रेल तमाम उतार चढ़ाव के दौर से गुजरती हुई वर्तमान दौर में बुलेट ट्रेन के युग मे प्रवेश करने वाली है,इस विकास के दौड़ में अगर पहले से भी कोई पीछे हो गया है तो वह गांव गिरान का मजदूर किसान है । एक तो कोरोना महामारी ने हालत इतनी पतली कर दी कि 130 करोड़ भारत वासियों में से 85 करोड़ को अगर सरकार माह में दो बार खाद्यान्न न दे तो घरों में रोटियों के लाले पड़ जाय,करोड़ो डिग्री धारी सड़को पर अच्छी खासी जॉब से बाहर होने के बाद दरदर भटक रहे है,जेबें खाली है । 

ऐसे में भारतीय रेल के संचालको का सवारी गाड़ियों के संचालन पर रोक, मेल एक्सप्रेस गाड़ियों में जनरल टिकटों की बिक्री पर रोक सबका साथ सबका विकास जैसे नारो के साथ विश्वासघात है । यह आजादी के बाद का पहला अवसर है जब इतिहास में सवारी गाड़ियों को बंद कर दिया गया है।आज सवारी गाड़ियों के नाम पर जो भी कुछ चल भी रही है वो सवारी गाड़ी नही एक्सप्रेस गाड़ी का किराया वसूल रही है ।

आज मेल एक्सप्रेस/सुपर फास्ट गाड़ियों में यात्रा करने पर कोरोना नही पकड़ रहा है,इन्ही गाड़ियों की जनरल बोगियों में आरक्षित सीट का टिकट लेने पर कोरोना नही पकड़ रहा है,बस कोरोना इसी इंतजार में है कि कब कोई जनरल टिकट धारी ट्रेन में चढ़े की उसको अपनी आगोश में ले लू । एक तरफ मजबूर जनता को उसी थर्ड क्लास की बोगी में यात्रा करने के लिये दुगने से अधिक किराया देना पड़ रहा तो स्तानीय स्तर की चलने वाली सवारी गाड़ियों के नाम मात्र के चलने से प्राइवेट टैक्सी बस मालिको को यात्रियों को लूटने का एक तरफ से सर्टिफिकेट मिल गया है । रेल से जो सफर 10 रुपये में होता है उसके लिये गरीब जनता 40 से 50 रुपये तक देने को मजबूर है । जीवन जीने के लिये सिर्फ गेहूं चवाल दाल माह में दे देना ही काफी नही है,इनको पकाने के लिये ईंधन,ईंधन खरीदने के लिये पैसे और पैसा कमाने के लिये रोजगार भी जरूरी है ।





सवारी गाड़ियों के चलने से और मेल/एक्सप्रेस गाड़ियों में भी जनरल टिकट मिलने से गांव देहात का मेहनतकश शहरों में रोज आ कर दिहाड़ी मजदूरी करके और अपने परिवार को खिलाने के लिये जरूरी सामान खरीद कर रेल के माध्यम से अपने घर 10 से 20 रुपये खर्च करके पहुंच जाता था,जो वर्तमान समय मे उसे रेल सेवा न मिलने के कारण 100 रुपये तक अपनी पसीने की कमाई का खर्च करना पड़ रहा है । सरकार द्वारा यह घोषणा कि रेल गाड़ियों से कोरोना सेस की वसूली खत्म की जाती है, महीना होने को है लेकिन बदस्तूर जारी है । जनरल टिकट न मिलने से लोग प्लेटफॉर्म टिकट लेकर छोटी दूरी की यात्राएं कर रहे है जिससे टीटीई लोगो की जेबें भर्ती जा रही है और सरकार को नुकसान हो रहा है । लेकिन इस तरफ किसी का ध्यान नही है । आज रेल में 25 प्रतिशत ज्यादे किराया देकर सफर करने वाला रेलवे के द्वारा लुटा जा रहा है,एसी में कंबल चादर तक बन्द कर दिया गया है,लूटने के लिये गाड़ियों के आगे स्पेशल देखने के बाद ऐसा लग रहा है जैसे कोई संगठित आपराधिक गिरोह का कोई स्तानीय भाई है,जिसकी रंगदारी देकर यात्रा करनी मजबूरी है ।

हमारी सरकार से विनम्र प्रार्थना है कि जब देश के 85 करोड़ लोगों को मुफ्त में माह में दो बार खाद्यान्न दे सकते है,तो रेल के इस चिन्दी चोरी को रोक भी सकते है । मेल/एक्सप्रेस से स्पेशल रूपी माफिया का टैग हटाइये,सभी गाड़ियों में जनरल टिकट से यात्रा की अनुमति दीजिये । निश्चिंत मानिये निःशुल्क खाद्यान्न देने से जितना आपको समर्थन मिल रहा है, उससे कम समर्थन रेल गाड़ियों में जनरल टिकट से यात्रा की अनुमति देने से नही मिलेगा ।