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मिशन पत्रकारिता के जनक है देवर्षि नारद : डॉ भगवान प्रसाद




प्रयागराज ।। भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महासंघ प्रयागराज के तत्वावधान में पत्रकारों, साहित्यकारों, कवियों और लेखकों ने आद्य पत्रकार देवर्षि नारद जी की जयंती जेष्ठ कृष्ण द्वितीय को धरती पर भूमंडलीय विश्व पत्रकारिता दिवस के रूप मे मनाया जाता है उसी परिपेक्ष में महासंघ के  कार्यालय पत्रकार भवन सिविल लाइंस प्रयागराज से कोविड़19 के अनुपालन में वर्चुअल परिचर्चा कर मनाया गया जिसकी अध्यक्षता  श्री मुनेश्वर मिस्र व संचालन  डॉक्टर भगवान प्रसाद उपाध्याय ने किया । संयोजन राष्ट्रीय महासचिव श्याम सुंदर सिंह पटेल ने किया । कार्यक्रम की शुरुआत से पहले देवर्षि नारद जी व मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण कर दीप प्रज्वलन व गायत्री महामंत्र ,सरस्वती वंदना की गयी ।  

इस अवसर पर  25 पत्रकारों को देवर्षि पत्रकारिता सम्मान भी प्रदान किया गया । तत्पश्चात विषय प्रवर्तन करते हुए राष्ट्रीय महासचिव श्याम सुंदर सिंह पटेल ने कहा यह बड़े सौभाग्य का विषय है कि यदि हमें पत्रकार का नाम मिला है तो वह देवर्षि नारद जी की देन है । हम उनकी वंदना करते हुए आप सभी का स्वागत करते हैं । आप सभी को ज्ञात है कि ईश्वरीय  सत्ता में देवर्षि नारद जी का आद्य पत्रकार के रूप में बड़ा स्थान व सम्मान रहा है । उनका प्राकट्य जेष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की द्वितीया को माना जाता है । इसलिए धरती पर उनका जन्मोत्सव आद्य पत्रकार के रूप में विश्व पत्रकारिता दिवस मानकर मनाया जाता है ,जो पत्रकारिता जगत में प्रथम प्रेरणा स्रोत है । कहा भी जाता है कि नारद जी खबर लाए हैं । जिन्हें पत्रकारिता के जनक के रूप में माना जाता है ,जो सेवा भाव से एक संदेश वाहक की तरह ईश्वरी सत्ता में पूरे ब्रह्मांड जगत में घूम घूम कर करते रहे हैं । आज हम उनके जन्मदिन के अवसर पर उनके आदर्शो पर चलने का संकल्प  लेते हैं । पत्रकारिता के कार्य को सेवा, सुचिता, सत्यता ,समता ,समर्पण पारदर्शिता के साथ मिशन मानकर  करना चाहिए,तभी  उनके जन्मदिन मनाने की सार्थकता होगी ।

अध्यक्षता कर रहे श्री मुनेश्वर मिश्र ने कहा हमें देवर्षि नारदजी से सीख लेनी चाहिए और इस भौतिकता वादी दौड़ के चकाचौंध से बचकर खबरों की विश्वसनीयता बनाए रखना होगा व अपनी भारतीय संस्कृति सभ्यताओं मान्यताओं परंपराओं को केंद्र बिंदु मानकर कार्य करना चाहिए और नैतिक जीवन व मूल्यों की रक्षा के लिए स्पष्ट ,निर्भीक, निष्पक्ष व स्वतंत्र पत्रकारिता पर जोर देना चाहिए । अपने  जीवन में नारद जी के आदर्शों को आत्मसात करना ही उनकी जयंती है । हालांकि इस बदलते परिवेश में पत्रकारिता एक कठिन कार्य हो गया है लेकिन फिर भी हिम्मत से काम करते हुए तथा उनके आदर्शों पर चलकर ही हम सफलता प्राप्त कर सकते हैं ।

डॉक्टर भगवान प्रसाद उपाध्याय ने भी श्री मुनेश्वर मिश्र की बातों का समर्थन करते हुए कहा कि इस कमीशन के दौर में पत्रकारिता को मिशन के रूप में लेकर कार्य करना कठिन जरूर है,पर मुश्किल नही है । मिशन पत्रकारिता के जनक देवर्षि नारद की तरह बस पत्रकारिता के मानकों,और सीमाओं के अंदर रहकर पत्रकारिता को मिशन के रूप में आत्मसात करना पड़ेगा। देवर्षि नारद को भी सच्ची बात बताने के लिये कई बार संकट मोल लेना पड़ता था लेकिन वे फिर भी सत्य बात कहने से पीछे नही हटते थे ।निश्चय ही आज पत्रकारिता पर अर्थ हावी है फिर भी नारद जी की तरह कई पत्रकार सच्चाई को निकालने से पीछे नही हट रहे है ।   

इसी प्रकार अन्य वक्ताओं ने भी अपने अपने विचार रखे व कुछ अपनी रचनाएं पढ़ी तथा यह संकल्प लिया कि पत्रकारिता के जनक देवर्षि नारद जी के आदर्शों पर चलेंगे चाहे जितने संकट आए ।इस अवसर पर भाग लेने वालों में प्रमुख रुप से श्री मुनेश्वर मिश्र, डॉक्टर भगवान प्रसाद उपाध्याय, श्याम सुंदर सिंह पटेल ,जगदंबा प्रसाद शुक्ल, , राम नाथ त्रिपाठी ,प्रदीप गुप्ता ,विद्या कांत मिश्र, धर्मेंद्र श्रीवास्तव, अखिलेश मिश्रा, शिव शंकर पांडे मथुरा प्रसाद धूरिया ,आलोक त्रिपाठी, राजेंद्र सिंह, सच्चिदानंद मिश्र, कुलदीप शुक्ला, डॉ राम लखन चौरसिया, शिवा शंकर   पान्डेय जी आदि कई लोग वर्चुअल पर चर्चा में शामिल हुए अंत में धन्यवाद ज्ञापन डॉक्टर भगवान प्रसाद उपाध्याय जी करते हुए  कहा कि आप सब लोगों ने इस कठिन परिस्थिति में भी वर्चुअल परिचर्चा करके संस्था की परंपराओं को आगे बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं,वो सब बधाई के पात्र हैं ।

ब्रह्मर्षि नारद जी के प्रकाट्य पर प्रेरक दृष्टान्त ...

एक बार देवर्षि नारद जी बैकुंठ धाम गए। वहां नारद जी ने श्रीहरि से कहा, “प्रभु! पृथ्वी पर अब आपका प्रभाव कम हो रहा है। धर्म पर चलने वालों को कोई फल प्राप्त नहीं हो रहा, जो पाप कर रहे हैं उनका भला हो रहा है।” तब भगवान विष्णु जी ने कहा,  देवर्षि! “ऐसा नहीं है जो भी हो रहा है सब ठीक हो रहा है जो नियति के जरिए हो रहा है।” वही उचित है।

नारद जी बोले, “मैंने स्वयं अपनी आंखों से देखा है प्रभु, पापियों को फल मिल रहे हैं और धर्म के रास्ते पर चलने वाले लोगों को बुरा फल मिल रहा है।”  भगवान विष्णु जी ने कहा, “एक ऐसी घटना का उल्लेख करो।“

तब नारद जी बोले, प्रभु! मैं अभी एक जंगल से आ रहा हूं। वहां एक गाय दलदल में फंसी हुई थी। कोई उसे बचाने नहीं आ रहा था। तभी एक चोर वहां से गुजरा और दलदल में फंसी हुई गाय को देखा, परंतु बचाया नहीं, बल्कि उस पर पैर रखकर दलदल लांघकर आगे निकल गया। आगे जाकर चोर को सोने की मोहरों से भरी एक थैली मिली।”


प्रभु, कुछ देर बाद वहां से एक वृद्ध साधु गुजरा। उस साधु ने अपने शरीर का पूरा जोर लगाकर गाय को बचाने की पूरी कोशिश की। साधु ने हार नहीं मानी। एक कठिन प्रयत्न करने के बाद उसने गाय की जान बचा ली। 

लेकिन गाय को दलदल से निकालने बाद जब साधु आगे गया तो एक गड्ढे में गिर गया। प्रभु! बताइए यह कौन सा न्याय है।


नारद जी की पूरी बात सुनने के बाद प्रभु बोले, जो चोर गाय पर पैर रखकर भाग गया था उसकी किस्मत में तो एक खजाना था, लेकिन उसके इस पाप के कारण उसे केवल कुछ मोहरें ही मिलीं। वहीं, उस साधु के भाग्य में मृत्यु लिखी थी। लेकिन गाय को बचाने के कारण उसके पुण्य बढ़ गए और उसकी मृत्यु एक छोटी-सी चोट में बदल गई। इसलिए वह गड्डे में गिर गया।

इंसान के कर्म से उसका भाग्य तय होता है । सत्कमों के प्रभाव से हर प्रकार के दुख और संकटों से मनुष्य का उद्धार हो सकता है। इंसान को सत्कर्म करते रहना चाहिए क्योंकि *कर्म से भाग्य को बदला जा सकता है।विष्णु जी की इस बात से नारद जी को मानव जाति के उद्धार का मार्ग पता लग गया।