ऐप्स के माध्यम से समाचार ,संवाददाता हो रहे है मालामाल , कही किसी गैर कानूनी संगठनों की साजिश तो नही ?
ऐप्स के माध्यम से समाचार ,संवाददाता हो रहे है मालामाल , कही किसी गैर कानूनी संगठनों की साजिश तो नही ?
मधुसूदन सिंह
बलिया 7 जुलाई 2019 ।। आजकल कई नामों से अपने शहर का ऐप्स डाउनलोड कीजिये और जाने खबरें ? जैसे प्रचार आपको व्हाट्सअप फेसबुक पर मिल जाएंगे । यही नही ये ऐप्स , इनको खबर भेजने वालो को खूब पैसा भी दे रहे है । लेकिन इनकी खबरें देख खुद आप का माथा ठनक जाएगा । न इसमें वर्तनी की शुद्धि मिलेगी , न ही बोलने वाले तथाकथित अधिसंख्य पत्रकारों की बोलचाल की भाषा ही शुद्ध मिलेगी । इसके वावजूद इनके द्वारा प्रति संवाददाता 5 से 25 हजार तक प्रतिमाह देना सोचने पर मजबूर और इस खबर को लिखने पर मजबूर किया है । जब देश के तमाम बड़े चैनल हो या अखबार जिलों में एक संवाददाता को रखकर अधिकतम 20 हजार भी नही दे पाते है , जिनके संवाददाताओं के पास योग्यता , अनुभव होता है , वही इन ऐप्स के द्वारा बिना अनुभव बिना योग्यता के एक जनपद में तीन से चार दर्जन तक संवाददाताओं को रखकर प्रतिमाह कई लाख रुपये देना संदेह तो पैदा कर ही रहा है । आखिर जब ऑन एयर चैनल्स जिनके पास बड़ी बड़ी कम्पनियों के विज्ञापन , सरकार के विज्ञापन होते है और करोड़ो दर्शकों का एक व्यूवरशिप होती है उनके पास एक से ज्यादे संवाददाता रखने की क्षमता नही है तो इन ऐप्स वालो के पास न तो विज्ञापन ही है , न ही व्यूवरशिप ही है , फिर किस आधार पर और कहां से इतनी धनराशि आती है जो संवाददाताओं के खातों में भेजी जाती है ?
कही खातों से पैसा हैक करने वालो का संगठित गिरोह या कालाधन वालो द्वारा प्रायोजित तो नही ?
अब सवाल यह उठता है कि ये कौन लोग है जो छोटी बड़ी , ऐंगी भैंगी , अशुद्ध , दिशाहीन खबरों के लिये भी भारी भरकम रकम दे रहे है ? इन लोगो का असली मकसद क्या है ? कही ये किसी देश विरोधी संगठनों की साजिश का हिस्सा तो नही है ? कही पहले अपनी पहुंच को अधिकतर जनसंख्या तक पहुंचकर अंत मे कोई इसी ऐप्स के माध्यम से बड़ी साजिश से देश को दहलाने वाले तो नही है ? इनके द्वारा सभी संवाददाताओं के खाते लिंक कर लिये गये है और इसी में पैसे भेजे जाते है । कही ये एक दिन सभी के खातों से पैसे गायब तो नही कर देंगे ? कही संवाददाताओं को मिल रहा यह पैसा कालेधन को सफेद करने का जरिया तो नही है ? यह सोचनीय प्रश्न है ? इसके वावजूद देश की और प्रदेश की सरकारों द्वारा चुप्पी साधे रखना , इसपर देश की सुरक्षा एजेंसियों , सीबीआई, स्थानीय एलआईयू द्वारा इधर ध्यान न देना कही बड़ी चूक तो नही हो रही है ?
सबसे पहले इनके संचालकों का पता लगाकर इनके आर्थिक स्रोतों की जांच आवश्यक है । अब देखना यह है कि सरकारें और सुरक्षा एजेंसियां कब तक जागती है ?
मधुसूदन सिंह
बलिया 7 जुलाई 2019 ।। आजकल कई नामों से अपने शहर का ऐप्स डाउनलोड कीजिये और जाने खबरें ? जैसे प्रचार आपको व्हाट्सअप फेसबुक पर मिल जाएंगे । यही नही ये ऐप्स , इनको खबर भेजने वालो को खूब पैसा भी दे रहे है । लेकिन इनकी खबरें देख खुद आप का माथा ठनक जाएगा । न इसमें वर्तनी की शुद्धि मिलेगी , न ही बोलने वाले तथाकथित अधिसंख्य पत्रकारों की बोलचाल की भाषा ही शुद्ध मिलेगी । इसके वावजूद इनके द्वारा प्रति संवाददाता 5 से 25 हजार तक प्रतिमाह देना सोचने पर मजबूर और इस खबर को लिखने पर मजबूर किया है । जब देश के तमाम बड़े चैनल हो या अखबार जिलों में एक संवाददाता को रखकर अधिकतम 20 हजार भी नही दे पाते है , जिनके संवाददाताओं के पास योग्यता , अनुभव होता है , वही इन ऐप्स के द्वारा बिना अनुभव बिना योग्यता के एक जनपद में तीन से चार दर्जन तक संवाददाताओं को रखकर प्रतिमाह कई लाख रुपये देना संदेह तो पैदा कर ही रहा है । आखिर जब ऑन एयर चैनल्स जिनके पास बड़ी बड़ी कम्पनियों के विज्ञापन , सरकार के विज्ञापन होते है और करोड़ो दर्शकों का एक व्यूवरशिप होती है उनके पास एक से ज्यादे संवाददाता रखने की क्षमता नही है तो इन ऐप्स वालो के पास न तो विज्ञापन ही है , न ही व्यूवरशिप ही है , फिर किस आधार पर और कहां से इतनी धनराशि आती है जो संवाददाताओं के खातों में भेजी जाती है ?
कही खातों से पैसा हैक करने वालो का संगठित गिरोह या कालाधन वालो द्वारा प्रायोजित तो नही ?
अब सवाल यह उठता है कि ये कौन लोग है जो छोटी बड़ी , ऐंगी भैंगी , अशुद्ध , दिशाहीन खबरों के लिये भी भारी भरकम रकम दे रहे है ? इन लोगो का असली मकसद क्या है ? कही ये किसी देश विरोधी संगठनों की साजिश का हिस्सा तो नही है ? कही पहले अपनी पहुंच को अधिकतर जनसंख्या तक पहुंचकर अंत मे कोई इसी ऐप्स के माध्यम से बड़ी साजिश से देश को दहलाने वाले तो नही है ? इनके द्वारा सभी संवाददाताओं के खाते लिंक कर लिये गये है और इसी में पैसे भेजे जाते है । कही ये एक दिन सभी के खातों से पैसे गायब तो नही कर देंगे ? कही संवाददाताओं को मिल रहा यह पैसा कालेधन को सफेद करने का जरिया तो नही है ? यह सोचनीय प्रश्न है ? इसके वावजूद देश की और प्रदेश की सरकारों द्वारा चुप्पी साधे रखना , इसपर देश की सुरक्षा एजेंसियों , सीबीआई, स्थानीय एलआईयू द्वारा इधर ध्यान न देना कही बड़ी चूक तो नही हो रही है ?
सबसे पहले इनके संचालकों का पता लगाकर इनके आर्थिक स्रोतों की जांच आवश्यक है । अब देखना यह है कि सरकारें और सुरक्षा एजेंसियां कब तक जागती है ?