ओझवलिया बलिया : डॉ नामवर सिंह के निधन से हिंदी को अपूरणीय क्षति , समालोचना का वट वृक्ष हुआ धराशायी : सुशील द्विवेदी
डॉ नामवर सिंह के निधन से हिंदी को अपूरणीय क्षति , समालोचना का वट वृक्ष हुआ धराशायी : सुशील द्विवेदी
ओझवलिया बलिया 20 फरवरी 2019 ।। सांसद आदर्श ग्राम ओझवलिया में बुधवार को आचार्य पं हजारी प्रसाद द्विवेदी स्मारक समिति के प्रबन्धकारिणी सदस्यों ने हिंदी साहित्य जगत् के पुरोधा एवं ख्यातिलब्ध समालोचक डाॅ नामवर सिंह के निधन पर दो मिनट का मौन धारण कर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए गहरा शोक प्रकट किया । इस अवसर पर स्मारक समिति के प्रबन्धक सुशील कुमार द्विवेदी ने कहा कि हिंदी आलोचना के ख्यातिलब्ध समालोचक डाॅ नामवर सिंह के निधन से हिंदी आलोचना जगत् की अपूर्णनीय क्षति हुई है । आज हिंदी आलोचना का एक विशाल वट- वृक्ष गिर गया । उनका कृतित्व एवं व्यक्तित्व नई पीढ़ीयों को युगों तक हमेशा प्रेरणा देने का काम करेगा । हिंदी आलोचना के शिखर पुरुष डाॅ नामवर सिंह हिंदी के प्रख्यात निबंधकार,समालोचक,एवं सांस्कृतिक विचारधारा के प्रमुख उपन्यासकार आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के प्रिय शिष्य थे । अपने गुरू की जयंती व पुण्यतिथि पर आयोजित गोष्ठी में बतौर मुख्य वक्ता पैतृक गाँव ओझवलिया में सन् 1988-89 में डाॅ नामवर सिंह शिरकत कर चुके है । साहित्यकार श्रीशचन्द्र पाठक ने पुराने दिनों को याद करते हुए कहा कि हिंदी साहित्य जगत के प्रखर आलोचक डाॅ नामवर सिंह जी एवं पं. त्रिलोचन शास्त्री जी के साथ ओझवलिया बाजार में आचार्य जी की जयंती पर बोली गयी अविस्मरणीय ओजस्वी बातें आज भी मेरे जेहन में याद है । इस दौरान सत्यनारायण गुप्ता,विनोद गुप्ता,सोनू दुबे,विवेक राय'पिन्टू,विक्की गुप्ता,अक्षय कुमार,बबलू पाठक,अनिरूद्ध वर्मा, वीरेन्द्र दुबे आदि मौजूद रहें ।
फोटो -स्व डॉ नामवर सिंह
फोटो - सुशील द्विवेदी
ओझवलिया बलिया 20 फरवरी 2019 ।। सांसद आदर्श ग्राम ओझवलिया में बुधवार को आचार्य पं हजारी प्रसाद द्विवेदी स्मारक समिति के प्रबन्धकारिणी सदस्यों ने हिंदी साहित्य जगत् के पुरोधा एवं ख्यातिलब्ध समालोचक डाॅ नामवर सिंह के निधन पर दो मिनट का मौन धारण कर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए गहरा शोक प्रकट किया । इस अवसर पर स्मारक समिति के प्रबन्धक सुशील कुमार द्विवेदी ने कहा कि हिंदी आलोचना के ख्यातिलब्ध समालोचक डाॅ नामवर सिंह के निधन से हिंदी आलोचना जगत् की अपूर्णनीय क्षति हुई है । आज हिंदी आलोचना का एक विशाल वट- वृक्ष गिर गया । उनका कृतित्व एवं व्यक्तित्व नई पीढ़ीयों को युगों तक हमेशा प्रेरणा देने का काम करेगा । हिंदी आलोचना के शिखर पुरुष डाॅ नामवर सिंह हिंदी के प्रख्यात निबंधकार,समालोचक,एवं सांस्कृतिक विचारधारा के प्रमुख उपन्यासकार आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के प्रिय शिष्य थे । अपने गुरू की जयंती व पुण्यतिथि पर आयोजित गोष्ठी में बतौर मुख्य वक्ता पैतृक गाँव ओझवलिया में सन् 1988-89 में डाॅ नामवर सिंह शिरकत कर चुके है । साहित्यकार श्रीशचन्द्र पाठक ने पुराने दिनों को याद करते हुए कहा कि हिंदी साहित्य जगत के प्रखर आलोचक डाॅ नामवर सिंह जी एवं पं. त्रिलोचन शास्त्री जी के साथ ओझवलिया बाजार में आचार्य जी की जयंती पर बोली गयी अविस्मरणीय ओजस्वी बातें आज भी मेरे जेहन में याद है । इस दौरान सत्यनारायण गुप्ता,विनोद गुप्ता,सोनू दुबे,विवेक राय'पिन्टू,विक्की गुप्ता,अक्षय कुमार,बबलू पाठक,अनिरूद्ध वर्मा, वीरेन्द्र दुबे आदि मौजूद रहें ।
दुखद : हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार और समालोचक डॉ नामवर सिंह का हुआ निधन, 92 साल की उम्र में छोड़ी दुनिया
नई दिल्ली . मशहूर साहित्यकार और समालोचक डॉ. नामवर सिंह का मंगलवार रात 11.50 बजे 92 साल की उम्र में निधन हो गया। वे एक महीने पहले अपने कमरे में गिर गए थे, तब उन्हें एम्स के ट्रामा सेंटर में भर्ती किया गया था। लोधी रोड स्थित श्मशान घाट पर बुधवार दोपहर बाद उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा।
सिंह का जन्म 28 जुलाई 1927 को वाराणसी के पास चंदौली जिले के जीयनपुर गांव में हुआ था। वे मशहूर साहित्यकार स्व. हजारी प्रसाद द्विवेदी के शिष्य थे। उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।
चार यूनिवर्सिटी में पढ़ाया
सिंह ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) और दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) में लंबे समय तक अध्यापन कार्य किया था। जेएनयू से पहले उन्होंने सागर और जोधपुर यूनिवर्सिटी में कुछ समय तक पढ़ाया। बीएचयू से हिंदी साहित्य में एमए और पीएचडी करने वाले सिंह ने हिंदी साहित्य जगत में आलोचना को नया स्थान दिया। वे ‘जनयुग’ और ‘आलोचना’ नाम की दो पत्रिकाओं के संपादक भी रहे। 1959 में उन्होंने चकिया-चंदौली विधानसभा सीट से भाकपा के टिकट पर चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए।
आलोचना : ‘बकलम खुद’, ‘हिंदी के विकास में अपभ्रंश का योग’, ‘आधुनिक साहित्य की प्रवृत्तियां’, ‘छायावाद, पृथ्वीराज रासो की भाषा’, ‘इतिहास और आलोचना’, ‘कहानी नई कहानी’, ‘कविता के नये प्रतिमान’, ‘दूसरी परंपरा की खोज’, ‘वाद विवाद संवाद’
साक्षात्कार : ‘कहना न होगा’
नई दिल्ली . मशहूर साहित्यकार और समालोचक डॉ. नामवर सिंह का मंगलवार रात 11.50 बजे 92 साल की उम्र में निधन हो गया। वे एक महीने पहले अपने कमरे में गिर गए थे, तब उन्हें एम्स के ट्रामा सेंटर में भर्ती किया गया था। लोधी रोड स्थित श्मशान घाट पर बुधवार दोपहर बाद उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा।
सिंह का जन्म 28 जुलाई 1927 को वाराणसी के पास चंदौली जिले के जीयनपुर गांव में हुआ था। वे मशहूर साहित्यकार स्व. हजारी प्रसाद द्विवेदी के शिष्य थे। उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।
चार यूनिवर्सिटी में पढ़ाया
सिंह ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) और दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) में लंबे समय तक अध्यापन कार्य किया था। जेएनयू से पहले उन्होंने सागर और जोधपुर यूनिवर्सिटी में कुछ समय तक पढ़ाया। बीएचयू से हिंदी साहित्य में एमए और पीएचडी करने वाले सिंह ने हिंदी साहित्य जगत में आलोचना को नया स्थान दिया। वे ‘जनयुग’ और ‘आलोचना’ नाम की दो पत्रिकाओं के संपादक भी रहे। 1959 में उन्होंने चकिया-चंदौली विधानसभा सीट से भाकपा के टिकट पर चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए।
आलोचना : ‘बकलम खुद’, ‘हिंदी के विकास में अपभ्रंश का योग’, ‘आधुनिक साहित्य की प्रवृत्तियां’, ‘छायावाद, पृथ्वीराज रासो की भाषा’, ‘इतिहास और आलोचना’, ‘कहानी नई कहानी’, ‘कविता के नये प्रतिमान’, ‘दूसरी परंपरा की खोज’, ‘वाद विवाद संवाद’
साक्षात्कार : ‘कहना न होगा’