गड़वार बलिया : पर्यावरण संरक्षण से ही हो सकता है शिक्षा, संस्कार, संस्कृति, स्वच्छता, स्वास्थ्य एवं समाज का विकास -- डा० गणेश पाठक
पर्यावरण संरक्षण से ही हो सकता है शिक्षा, संस्कार, संस्कृति, स्वच्छता, स्वास्थ्य एवं समाज का विकास
-- डा० गणेश पाठक
डॉ सुनील कुमार ओझा की रिपोर्ट
(उप संपादक बलिया एक्सप्रेस)
गड़वार बलिया 5 फरवरी, 2019 ।। ब्लाक संसाधन केन्द्र गड़वार पर चल रहे " शिक्षा कायाकल्प प्रशिक्षण " के तीसरे बैच के तीसरे दिन(सोमवार) एक बौद्धिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसके मुख्य अतिथि रहे अमरनाथ मिश्र पी० जी० कालेज दूबेछपरा, बलिया के पूर्व प्राचार्य एवं पर्यावरणविद् डा० गणेश कुमार पाठक , जबकि कार्यक्रम का संचालन ब्लाक संसाधन केन्द्र गड़वार के वरिष्ठ सह समन्वयक एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम के संयोजक श्री राजेश कुमार मिश्र।
कार्यक्रम की शुरूआत सर्वप्रथम दीप प्रज्जवलित कर एवं माँ शारदे के चित्र पर पुष्पार्जन एवं माल्यार्पण कर हुई। तत्पशचात राजेश कुमार मिश्र ने मुख्य अतिथि का परिचय कराया।
बतौर मुख्य अतिथि कार्यक्रम को संबोधित करते हुए डा० गणेश कुमार पाठक ने कहा कि वर्तमान समय में समाज का विकास शिक्षा, संस्कार, संस्कृति, स्वच्छता, स्वास्थ्य एवं पर्यावरण संरक्षण से ही किया जा सकता है। शिक्षा के माध्रयम से हमें बच्चों में संस्कार पैदा करना होगा। वर्तमान समय संस्कार का लोप होता जा रहा है, जिससे बच्चे दिशाहीन होते जा रहे हैं। आज हमारी संस्कृति पर एक बार पुनः खतरा मँडरा रहा है। आज हमारी संस्कृति पश्चिमी सभ्यता के रंग में रंगती जा रही है, जिससे हमारे समाज में अनेक तरह की विकृतियां उत्पन्न होती जा रही है।
डा० पाठक ने बताया कि स्वच्छता एवं स्वास्थ्य भी देश के विकास में अहम् भूमिका निभाते हैं। स्वच्छता केवल भौतिक नहीं, बल्कि तन एवं मन भी स्वच्छ होना चाहिए और यह हमें संस्कार से प्राप्त हो सकता है। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन एवं स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है और मन - मस्तिष्क स्वस्थ त्रहता है तो उसका प्रभाव शिक्षा पर पड़ता है।
डा० पाठक ने पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी संरक्षण संरक्षण पर विशेष जोर देते हुए कहा का आज हमारा देश पर्यावरण प्रदूषण एवं पारिस्धितिकी असंतुलन के चलते संकट के दौर से गुजर रहा है। आज प्राकृतिक प्रदूषण से अधिक घातक सांस्कृतिक प्रदूषण, जो अपना प्रभाव दिखाते हुए परे समाज को विकृत एवं दूषित कर रहा है। सांस्कृतिक प्रदूषण को हम अपनी संस्कृति एवं संस्कारों से ही दूर कर सकते हैं।
डा० पाठक ने बताया कि हमारी भोगवादी प्रवृत्ति, विलासितापूर्ण जीवन, अनियोजित तथा अनियंत्रित विकास के चलते पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी के तत्वों का अनियंत्रित दोहन एवं शोषण किया गया है, जिसके चलते हमारे समक्ष संकट की स्थिति उत्पन्न होती जा रही है और प्राकृतिक आपदाओं का दंश झेलना पड़ रहा है। हमें पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी के कारकों को बचाना होगा। खासतौर से हमें वृक्षारोपण पर विशेष ध्यान देना होगाऔर प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में कमसे कम एक पेड़ अवश्य लगाना चाहिए। हमारी संस्कृति प्रकृतिपोषक संस्कृति है । उसे हमें समझना होगा तभी पर्यावरण को बचाया जा सकता है।
उक्त अवसर पर मुख्य अतिथि सहित प्रशिक्षण प्रदान करने वाले सभी शिक्षकों को पुष्पगुच्छ, पेन- डायरी एवं अंगवस्त्रम् से सम्मानित किया गया। इस अवसर पर सुरेश आजाद, विजय कृष्ण, रत्नाकर, सुनील राय, मानवेन्द्र उपाध्याय, दयाशंकर तिवारी, रामप्रताप सिंह, जितेन्द्र राम एवं सूर्यनाथ राम आदि वरिष्ठ शिक्षक एवं प्रशिक्षणार्थी उपस्थित रहे। अंत में वरिष्ठ सह समन्वयक राजेश कुमार मिश्र ने सभी के प्रति आभार प्रकट किया।