बलिया : नवजात शिशुओं के लिए वरदान है एसएनसीयू, बचायी गयी 900 ग्राम के शिशु की जान
नवजात शिशुओं के लिए वरदान है एसएनसीयू,
बचायी गयी 900 ग्राम के शिशु की जान
बलिया, 8 फरवरी 2019 - जिला महिला अस्पताल में स्थित शिशु गहन चिकित्सा इकाई (एसएनसीयू) नवजात से लेकर एक माह तक के बच्चो के लिए वरदान साबित हो रहा है। कुछ दिवस पूर्व जन्मे 900 ग्राम के शिशु की जान बचायी गयी, जिसको सांस लेने में तकलीफ हो रही थी। शिशु को नया जीवन मिलने से उसके माता-पिता और पूरा परिवार बहुत खुश है और वह एसएनसीयू में दिए जाने वाले निःशुल्क इलाज, परामर्श और चिकित्सीय सलाह का प्रोत्साहन करते हैं|
चितबड़ागांव के निवासी सुरेश के घर अभी हाल ही में 6 फरवरी को 900 ग्राम के एक शिशु ने घर में दस्तक दी। वह बताते हैं कि उसको सांस लेने में तकलीफ हो रही थी जिससे वह और उसका पूरा परिवार घबरा गया| इसके बाद तुरंत ही पिता सुरेश ने अपने बच्चे को जिला महिला चिकित्सालय के एसएनसीयू में भर्ती करवाया। वहां मौजूद चिकित्सक व विशेषज्ञों की देखरेख में महज चार दिनों के अन्दर ही बच्चे में सुधार आ गया| बच्चे की माँ ने कंगारू मदर केयर (केएमसी) की सहायता से उसको हाईपोथार्मिया और सांस लेने में हो तकलीफ से राहत दी । चिकित्सकों द्वारा मां को केएमसी प्रक्रिया के बारे में सम्पूर्ण जानकारी दी गयी जिससे वह घर पर भी आसानी से कर सके। और साथ ही यह भी बताया गया कि छः माह तक बच्चे को सिर्फ स्तनपान कराना है पानी भी नहीं देना है ।
इसी तरह बहुत से नवजात शिशुओं को एसएनसीयू के माध्यम से बचाया जा रहा है और यह शिशु मृत्यु दर को कम करने में कारगर साबित हो रहा है। पिछले तीन साल में इस वार्ड से 4500 से ज्यादा नवजात शिशुओं को लाभ मिला है। जिला महिला चिकित्सालय में एसएनसीयू की स्थापना अप्रैल 2016 में हुई थी। अप्रैल 2016 से दिसंबर 2018 तक लगभग 5000 बच्चों का इलाज किया गया है।
जिला महिला अस्पताल के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. राशिद इमामुद्दीन ने बताया कि यह वार्ड एक माह तक के उन नवजात शिशुओं के लिए बनाया गया है जो समय से पहले पैदा हुए हों, कम वजन के हों, और शिशु को सांस लेने में समस्या होती है। इसके अलावा एक माह तक के शिशुओं को नीला, पीला या निमोनिया जैसी बीमारियों होने पर उनका निःशुल्क एवं बेहतर इलाज किया जाता है। यहां शिशुओं के लिए चैबिस घंटे ऑक्सीजन की व्यवस्था उपलब्ध है। उन्होंने बताया कि इकाई में रेडिएंट वार्मर (बच्चों को गर्म रखने के लिए), फोटो थैरेपी (पीलया पीड़ित बच्चों के लिए) एक्यूवेटर (कम वजन वाले बच्चों के लिए), एसी व हीटर भी लगे हुए है। अब 90 प्रतिशत से ज्यादा नवजात शिशुओं का एसएनसीयू में इलाज किया जाता है और जिससे उनकी सेहत में भी काफी सुधार होता है।
बचायी गयी 900 ग्राम के शिशु की जान
बलिया, 8 फरवरी 2019 - जिला महिला अस्पताल में स्थित शिशु गहन चिकित्सा इकाई (एसएनसीयू) नवजात से लेकर एक माह तक के बच्चो के लिए वरदान साबित हो रहा है। कुछ दिवस पूर्व जन्मे 900 ग्राम के शिशु की जान बचायी गयी, जिसको सांस लेने में तकलीफ हो रही थी। शिशु को नया जीवन मिलने से उसके माता-पिता और पूरा परिवार बहुत खुश है और वह एसएनसीयू में दिए जाने वाले निःशुल्क इलाज, परामर्श और चिकित्सीय सलाह का प्रोत्साहन करते हैं|
चितबड़ागांव के निवासी सुरेश के घर अभी हाल ही में 6 फरवरी को 900 ग्राम के एक शिशु ने घर में दस्तक दी। वह बताते हैं कि उसको सांस लेने में तकलीफ हो रही थी जिससे वह और उसका पूरा परिवार घबरा गया| इसके बाद तुरंत ही पिता सुरेश ने अपने बच्चे को जिला महिला चिकित्सालय के एसएनसीयू में भर्ती करवाया। वहां मौजूद चिकित्सक व विशेषज्ञों की देखरेख में महज चार दिनों के अन्दर ही बच्चे में सुधार आ गया| बच्चे की माँ ने कंगारू मदर केयर (केएमसी) की सहायता से उसको हाईपोथार्मिया और सांस लेने में हो तकलीफ से राहत दी । चिकित्सकों द्वारा मां को केएमसी प्रक्रिया के बारे में सम्पूर्ण जानकारी दी गयी जिससे वह घर पर भी आसानी से कर सके। और साथ ही यह भी बताया गया कि छः माह तक बच्चे को सिर्फ स्तनपान कराना है पानी भी नहीं देना है ।
इसी तरह बहुत से नवजात शिशुओं को एसएनसीयू के माध्यम से बचाया जा रहा है और यह शिशु मृत्यु दर को कम करने में कारगर साबित हो रहा है। पिछले तीन साल में इस वार्ड से 4500 से ज्यादा नवजात शिशुओं को लाभ मिला है। जिला महिला चिकित्सालय में एसएनसीयू की स्थापना अप्रैल 2016 में हुई थी। अप्रैल 2016 से दिसंबर 2018 तक लगभग 5000 बच्चों का इलाज किया गया है।
जिला महिला अस्पताल के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. राशिद इमामुद्दीन ने बताया कि यह वार्ड एक माह तक के उन नवजात शिशुओं के लिए बनाया गया है जो समय से पहले पैदा हुए हों, कम वजन के हों, और शिशु को सांस लेने में समस्या होती है। इसके अलावा एक माह तक के शिशुओं को नीला, पीला या निमोनिया जैसी बीमारियों होने पर उनका निःशुल्क एवं बेहतर इलाज किया जाता है। यहां शिशुओं के लिए चैबिस घंटे ऑक्सीजन की व्यवस्था उपलब्ध है। उन्होंने बताया कि इकाई में रेडिएंट वार्मर (बच्चों को गर्म रखने के लिए), फोटो थैरेपी (पीलया पीड़ित बच्चों के लिए) एक्यूवेटर (कम वजन वाले बच्चों के लिए), एसी व हीटर भी लगे हुए है। अब 90 प्रतिशत से ज्यादा नवजात शिशुओं का एसएनसीयू में इलाज किया जाता है और जिससे उनकी सेहत में भी काफी सुधार होता है।