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बलिया : श्रीराम कथा के तीसरे दिन भगवान राम के जन्मोत्सव कथा का श्रवण किये भक्तगण











अवध में आनन्द भयो जै रघुबर लाल की ...
बोले अयोध्या में कागा हो , राम नवमी के दिनवा
प्रभु राम के जन्मोत्सव के कथा की अमृतवर्षा से अंतःकरण तक सराबोर हुए श्रोता
 मधुसूदन सिंह की रिपोर्ट
बलिया 14 दिसम्बर 2018 ।।
श्रीराम कथा यज्ञ के तीसरे दिन कथावाचक परम् पूज्य स्वामी प्रेम भूषण जी महाराज ने भगवान राम के जन्मोत्सव  का सुंदर वर्णन किया । कथा प्रारम्भ होने से पूर्व स्वामी प्रेम भूषण जी महाराज के आसन पर पहुंचने के बाद इस आयोजन के यजमान विंध्यांचल सिंह एवं श्रीमती तेतरी सिंह (माता पिता श्री दयाशंकर सिंह ), दयाशंकर सिंह  , विशेष यजमान जिलाधिकारी बलिया भवानी सिंह खंगरौता  , लक्ष्मण सिंह ,पीएन सिंह पूर्व प्रधानाचार्य , सत्येंद्र नाथ पांडेय, ईश्वर दयाल मिश्र ,नारद सिंह ,विजयानन्द मिश्र ,ए के सिंह , ईश्वरन श्री सीए ने भगवान भोलेनाथ , भगवान श्रीराम को सपरिवार पूजन अर्चन किया । आज के विशेष यजमान जिलाधिकारी बलिया श्री खंगरौता ने अपने संबोधन में जहां इस पवित्र आयोजन के लिये आयोजक दयाशंकर सिंह का आभार व्यक्त किया वही ऐसे आयोजनों में सम्मिलित होने को एक सौभाग्य करार दिया । कहा आज के भौतिक युग मे जहां लोगो को दो पल की शांति भी मयस्सर होनी बड़ी बात है , ऐसे माहौल में श्री गुरु जी महाराज के श्री मुख से श्रीराम कथा का श्रवण करना परम् सौभाग्य और पुण्य का काम है । ऐसे आयोजनों से जहां अपने महापुरुषों और धार्मिक अनुष्ठानों को जानने और समझने का मौका मिलता है वही यहां से मिली सीख को आत्मसात करने से निज जीवन और पारिवारिक जीवन मे समरसता और पवित्रता के साथ सफलता मिलती है । आज के इस भागदौड़ भरी जिंदगी में दो पल ही ही भगवत शरण मे रहना परम् सौभाग्य की बात है । मैं यहां उपस्थित सभी भक्तजनों को नमन करता हूँ और कामना करता हूँ कि ईश्वर आप सबकी मनोकामनाएं पूर्ण करें । मैं एक बार फिर दयाशंकर सिंह जी को मुझे इस पवित्र कार्यक्रम में बुलाने , बलिया की मानस प्रेमी जनता को श्रीराम कथा का श्रवण कराने के लिये धन्यवाद देते हुए गुरुवर श्री प्रेम भूषण जी महाराज के श्री चरणों मे नमन करते हुए अपनी वाणी को विराम देता हूँ ।

 हरिवंश कथा के प्रभाव से दशरथ को मिले थे राम

बलिया 14 दिसम्बर 2018 : बलिया में अपनी श्रीराम कथा यज्ञ के तीसरे दिन परम् पूज्य प्रेमभूषण जी महाराज ने भगवान राम के जन्म की अलौकिक कथा का भक्तो को श्रवण कराया । इससे पहले कथा के दूसरे दिन भगवान भोले शंकर और माता पार्वती के शुभ विवाह की कथा सुनाकर भक्तो को आनन्दित किया था ।  आज की कथा की शुरुआत भगवान भोलेनाथ से माता पार्वती द्वारा भगवान राम की कथा , जनक कुमारी से विवाह आदि की पूर्ण लीला की कथा सुनने की इच्छा व्यक्त करने पर भगवान शिव द्वारा सुनाये जाने से होती है । माता पार्वती द्वारा किस कारण भगवान विष्णु को मानव रूप धारण करना पड़ा के प्रश्न के उत्तर में कहा कि मेरी समझ मे यही आता है कि जब जब धर्म की हानि होती है , आसुरी शक्तियों में बढ़ोत्तरी हो जाती है , ब्राह्मण देवता सज्जन गौ और धरती माता को आसुरी शक्तियां सताने लगती है , तब इन दुष्टों को दंड देकर सज्जनों , देवता , गौ, ब्राह्मण और धरती की रक्षा के लिये मानव तन धारण करते है । जब मनुष्यो में भागवत के गुणों का लोप होने लगता है , जब अपने माता पिता का अनादर होने लगता है , देवताओं की पूजा बन्द होने लगती है और दुष्टों द्वारा सज्जनों को प्रताड़ित किया जाने लगता है तब तब भगवान धरती पर अवतार लेते है । साथ ही जब माता पार्वती ने भोले नाथ से यह प्रश्न किया कि हे महादेव मेरी समझ मे यह नही आ रहा है कि जब देवर्षि नारद भगवान विष्णु के अनन्य भक्त है फिर इन्होंने भगवान को क्यो शाप दिया ? मेरे इस प्रश्न का भी उत्तर दीजिये । तब भोलेनाथ ने नारद मोह प्रसंग सुनाया ।

नारद द्वारा भगवान विष्णु को शाप देना

भगवान विष्णु के द्वारा धारण किये गये विश्वमोहिनी रूप पर मोहित होकर देवर्षि नारद ने भगवान से सुंदर शरीर मांगा ताकि विश्व मोहिनी से शादी कर सके । भगवान विष्णु ने नारद ऋषि के इस मोह को दूर करने के लिये बन्दर का चेहरा दे दिया । जब नारद जी खुश होकर निकले और देवता लोग हंसने लगे तब कारण पूंछा । कारण जानने पर बहुत दुखी और भगवान पर अत्यंत क्रोधित हुए और शाप दे दिया जिस रूप को आपने मुझे दिया है वही रूप आपको रामावतार में सहयोग करेंगे तब आप जिस तरह पत्नी के वियोग में तड़प रहा हूँ , आप भी तड़पेंगे तब यही बन्दर रूप वाले आपको इस दुख से बाहर निकालेंगे । जब भगवान ने अपनी माया वापस की तो नारद जी ने कहा भगवान मैं तो आपका भक्त हूं आपने तो मुझे भी अपनी माया से मोहित कर दिया । तब भगवान ने कहा आप मेरे आराध्य भोलेनाथ का जप कीजिये आपको मेरी माया नही व्याप्त होगी ।
   इसके बाद पूज्यवर आचार्य प्रेमभूषण जी महाराज ने रावण के जन्म , लंका का राज और पृथ्वी पर रावण के फैले आतंक का संक्षिप्त वर्णन करने के बाद प्रभु श्रीराम के जन्म की घटना का बखान करने लगे ।

अयोध्या के राजा दशरथ की कोई संतान नहीं थी। अपनी बढ़ती हुई अवस्था को देखकर दशरथ ने पुत्र कामेष्टि यज्ञ और हरिवंश पुराण कथा के पाठ का निश्चय किया। ऋषि श्रृंग ने राजा दशरथ के लिए यह कथा कही। इसके परिणाम स्वरूप राजा दशरथ के राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघन जैसे चार पुत्र उत्पन्न हुए। इसलिए यह कथा अत्यंत फलदायक है। ये विचार कथा वाचक परम् श्रद्धेय प्रेम भूषण जी महाराज ने बलिया के टीडी कालेज के मैदान में श्रीराम कथा यज्ञ  के तृतीय दिवस की कथा करते हुए व्यक्त किए। उन्होने कहा कि राजा दशरथ को बताया गया कि केवल ऋषि श्रृंग ही यदि हवन और हरिवंश पुराण की कथा करे तो आपको पुत्र की प्राप्ति हो सकती है लेकिन श्रृंग ऋषि को इस संसार से कोई मतलब नहीं था । वह पूरी तरह से विरक्त था। अपनी पुत्री शांता का विवाह ऋषि श्रृंग के साथ राजा दशरथ ने किया । यज्ञ की सफलता से राम जैसे महान पुत्र की प्राप्ति हुई।

   श्री प्रेम भूषण जी महाराज ने गर्भ गृह में चतुर्भुजधारी भगवान विष्णु और माता कौशल्या के संवाद को पहले भक्त और भगवान के रूप में वर्णन किया वही लोक लीला के लिये मनुष्य तन धारण करने वाले श्री हरि ने माया से माता कौशल्या से पुत्र रूप की कामना कराकर शिशु रूप में रोदन करने और महल में खुशी के माहौल को आनन्दित करने वाली अपनी वाणी से सुनाकर सभी भक्तों को जहां मंत्रमुग्ध कर दिया , वही सभी के हृदयों में भक्ति रस की गंगा को मचलने के लिये विवश कर दिया । सुंदर वर्णन करते हुए कहा --


 भए प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी

हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी।।


लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुज चारी।

भूषन बनमाला नयन बिसाला सोभासिंधु खरारी।।

कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करौं अनंता।

माया गुन ग्यानातीत अमाना बेद पुरान भनंता।।

करुना सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता।

सो मम हित लागी जन अनुरागी भयउ प्रगट श्रीकंता।।


ब्रह्मांड निकाया निर्मित माया रोम रोम प्रति बेद कहै।


मम उर सो बासी यह उपहासी सुनत धीर पति थिर न

रहै।।

उपजा जब ग्याना प्रभु मुसकाना चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै।


कहि कथा सुहाई मातु बुझाई जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै।।


माता पुनि बोली सो मति डौली तजहु तात यह रूपा।


कीजै सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा।।


सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुरभूपा।


यह चरित जे गावहिं हरिपद पावहिं ते न परहिं भवकूपा।।

माता कौशल्या द्वारा भगवान की इस प्रकार स्तुति /प्रशंसा करने पर (क्योकि भक्त को हमेशा भगवान की प्रशंसा ही करनी चाहिये । यह जो कुछ भी है , दिख रहा है वह सब कुछ तो भगवान का ही है । आपका अपना क्या है ? जब आपका अपना कुछ नही है तो भगवान को नश्वर चीजे क्यो अर्पण करें , करनी है तो अजर अमर परमात्मा के अंश आत्मा को ही क्यो न परमात्मा को अर्पण कर दे । यह जीवन तो धन्य हो ही जायेगा , पर लोक भी सुधर जाएगा ।) भगवान ने --

  बिप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार।

निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गो पार।।

भगवान के शिशु रूप में रोदन करते ही मानो राजमहल में खुशियों की बरसात होने लगी । पुत्र होने की खबर सुनते ही चक्रवर्ती महाराज दशरत मानो बेसुध हो गये , स्वयं ही बाजा बजाने वालो को बजाने के लिये कहने लगे , निछावर लुटाने लगे । आज उनके पैर जमीन पर पड़ ही नही रहे थे । पूरी अयोध्या में उत्सव होने लगा । देवता गंधर्व किन्नर सभी मनुष्य रूप धारण कर भगवान श्री हरि की मनुष्य रूप में छटा देखने के लिये अयोध्या आने लगे । भगवान भोलेनाथ माता पार्वती से कहते है देवी मैं आप से एक बात छुपायी थी वह बताता हूँ । अपने आराध्य के धरती पर अवतार लेने की खबर सुनकर मुझसे रहा नही गया और मैं कागभुसुंडि जी के साथ चुपके से अयोध्या जाकर अपने आराध्य का दर्शन कर आया हूँ । श्री प्रेम भूषण जी महाराज कहते है तभी से अयोध्या में कागा के बोलने को लोग शुभ शुभ मानते है । तभी से एक गीत भी अयोध्या में प्रचलित है --

बोले अयोध्या में कागा हो राम नवमी के दिनवा

अवध में आनन्द भयो जै रघुबर लाल की

जै जै महाराज की ,जै जै जगपाल की , ....

हाथी दियो घोड़ा दियो और दियो पालकी

अवध में आनन्द भयो ......

कौन को दियो हाथी घोड़ा , कौन को दियो पालकी

अवध में आनन्द भयो .....

छोरन को हाथी घोड़ा दियो , बुढ़न को पालकी

अवध में आनन्द ......

कौन को दियो लड्डू पेड़ा , कौन को दियो लापसी

अवध में आनन्द भयो.....

छोरन को दियो लड्डू पेड़ा , बुढ़न को लापसी

अवध में आनन्द भयो .....

कड़ा दियो छड़ा दियो , मुक्ता मली माल की

अवध में आनन्द भयो ....

  इस तरह राजा दशरथ पुत्र के जन्म की खुशियां मना रहे थे । अभी यह खुशियों का दौर चल ही रहा था कि रनिवास से खबर आयी कि रानी केकई ने और रानी सुमित्रा ने भी तीन लल्लाओ को जन्म दिया है । यह खबर सुनते ही जहां राजा दशरथ की खुशी की कोई सीमा नही रही वही पूरी अयोध्या मानो उत्सव की नगरी बन गयी । चारो तरफ ढोल नगारे बधावे बजने लगे । लोग एक दूसरे को गले मिलकर मिठाई खिलाकर खुशी का इजहार करने लगे । आज की कथा में भाग लेकर श्री कृष्ण कुमार सिंह ने प्रसाद वितरण की महती जिम्मेदारी निभाई ।