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ओपिनियन : 'मंदिर' और 'विकास' के मिलेजुले प्लेटफॉर्म की तलाश में भगवा पार्टी

हिंदुत्‍व की राजनीति के बीच बीजेपी ने मंदिर-विकास के मंत्र पर गड़ाई नजरें


26 नवम्बर 2018 ।।

(प्रांशू मिश्रा)

शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की यात्रा और विश्‍व हिंदू परिषद की धर्म सभा के बाद 2019 के लोक सभा चुनावों से पहले अयोध्या राजनीतिक बयानबााजी का एक केंद्रीय मंच बनता जा रहा है. इस सबके बीच बीजेपी खुलकर सामने आने के बजाय पूरे घटनाक्रम पर नजर बनाए हुए है.

राम मंदिर को लेकर रविवार को जो भी घटनाएं हुई वे हमें राजनीतिक उद्देश्यों की ओर इशारा करती हैं.  शिवसेना, वीएचपी और आरएसएस के बीच मंदिर के लिए पिच बनाने का एक कॉम्पटीशन था, वहीं अयोध्या काफी हद तक शांतिपूर्ण रही. हालांकि सेना और विहिप के कार्यक्रम में काफी संख्‍या में भीड़ मौजूद रही लेकिन आम जनता में उस तरह का जज्‍बा देखने को नहीं मिला जिस तरह का बाबरी मस्जिद के विध्‍वंस के समय था.

जाहिर है इसका मतलब है कि राम मंदिर राजनीतिक दलों और दक्षिणपंथियों के लिए भीड़ इकट्ठा करने का एक जरिया है, लेकिन जनता को इस मुद्दे से जुड़ने में समय लग सकता है. एक निजी चैनल से बात करते हुए वीएचपी के एक वरिष्ठ कार्यकर्ता ने स्वीकार किया कि लोगों को इस मुद्दे से जोड़ने के लिए और अधिक प्रयासों की आवश्यकता होगी और 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले यह भाषण का सबसे बड़ा मुद्दा बन जाएगा.

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि मोदी सरकार पर साधुओं और राजनीतिक सहयोगियों जैसे शिवसेना का दबाव है, भाजपा शायद चिंतित नहीं है. राजनीतिक पंडितों का कहना है कि सरकार पर हमले शायद काम आएंगे क्योंकि इस बार संसद के शीतकालीन सत्र में इस मुद्दे पर अध्यादेश लाने के लिए जरूरी बहाना दे सकते हैं.

आने वाले दिनों में इस मुद्दे को लेकर देशभर में क्या होगा उसके बाद ही इस पर सरकार और प्रधानमंत्री का रुख साफ होगा. फिलहाल बीजेपी " मंदिर और विकास "के मिलेजुले प्लेटफॉर्म के साथ एक्सपेरीमेंट कर रही है और इनमे से एक मुद्दे के विकसित होने का इंतजार कर रही है.



(साभार न्यूज18)