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स्वर्णिम भारतीय इतिहास : भारत मे 2600 वर्ष पहले आचार्य सुश्रुत ने की थी पहली प्लास्टिक सर्जरी





4 अक्टूबर 2018 ।।

भारतीय संस्कृति दुनिया की सबसे पुरानी संस्कृतियों 
में से एक है. यही वजह है कि भारतीय एक लंबे समय से कला ,विज्ञान, तकनीकी और गणित के क्षेत्र में 
अपना योगदान देते रहे हैं. चाहे जीरो का अविष्कार 
हो या अणुओं की बातें, भारतीय वैज्ञानिक आज से 
कई हजार वर्ष पहले ही दुनिया को वो आधार प्रदान
 कर चुके थे जिसपर मॉडर्न विज्ञान की शिला रखी 
गई.  ईसा से पूर्व ही भारत में कई आविष्कार हो 
चुके थे जिन्हें कई सदियों बाद दुनिया ने भी माना ।

1. प्लास्टिक सर्जरी: आज के दौर में ऑपरेशन, प्लास्टिक सर्जरी और कॉस्मेटिक सर्जरी बहुत आम हो चले हैं.
हालाँकि इन्हें करवाने का खर्च बहुत अधिक है लेकिन
मॉडर्न तकनीकी के साथ यह बहुत आसान हो गए हैं.
लेकिन सोचिये, आज से 2600 साल पहले, जब दुनिया
 की बहुत सी संस्कृतियां सिर्फ अंगड़ाई ही ले रही थीं,
भारत के आचार्य सुश्रुत ने इसमें महारथ हासिल कर ली
थी. इससे जुडी एक किवदंती के हिसाब से 2600 साल
 पहले कभी एक व्यक्ति बहुत बुरी तरह से घायल होकर आचार्य सुश्रुत के पास आया था. उसकी नाक पूरी तरह
से फट चुकी थी ।


सुश्रुत के यंत्र


2. आयुर्वेद: दुनिया को दवाओं कि पहली समझ भारतीयों
 ने ही दी. 300 से 200 ई. पू. कुषाण राज्य के राजवैद्य
 चरक ने अपने ग्रन्थ चरक संहिता में उन्होंने एक से एक प्राकृतिक दवाओं का जिक्र किया है. इनके अलावा उन्होंने सोना, चांदी वगैरह हो पिघलाकर उसके भस्म का प्रयोग
भी चरक ने ही बताया. उस दौर में मौजूद ऐसी कोई
बीमारी नहीं थी, जिसका तोड़ चरक के पास नहीं था
. उन्हें अपने इसी योगदान के लिए भारतीय चिकित्सा
 और दवाओं का पिता कहा जाता है.

3. गणित: कहा जाता है कि पूरी दुनिया में भारतीय
गणित के मामले में सबसे होशियार और तेज होते हैं.
 बहुत हद तक यह सही भी है. इसका श्रेय हमारे पूर्वजों
 को जाता है. जीरो का अंक पूरी दुनिया को भारतीयों ने
 ही दिया था. आर्यभट्ट और ब्रह्मगुप्त ने यह नंबर प्रणाली
 दी जिसका उपयोग पूरी दुनिया में तेजी से हुआ. इससे
पहले रोमन अंकों का प्रयोग किया जाता था. लेकिन उनमें संकेतों से लिखने वाली लिपि के चलते बड़ी संख्याएं
लिखने में तकलीफ हुआ करती थी. लेकिन जब दशमलव प्रणाली आई, इसने सभी समस्याओं को सुलझा दिया.
कंप्यूटर की भाषा कि नीव भी भारतीयों ने ही रखी थी.
कंप्यूटर सिर्फ 0 और 1 की भाषा समझता है और 0
का उद्गम भारत से ही हुआ था.

इसके साथ ही आर्यभट्ट ने आज से हजारों साल पहले
बिना किसी टेलेस्कोप या यंत्र के पृथ्वी का व्यास लगभग
के करीब सही सही नाप लिया था. साथ ही उन्होंने हेलिकोसेंट्रिक थ्योरी भी कॉपरनिकस से पहले ही सिद्ध
 कर दी थी जिसके मुताबिक पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमने
के साथ ही सूरज की भी परिक्रमा करती है. इसके अलावा बोद्धायन ऋषि ने हजारों साल पहले जिस सिद्धांत को
 प्रमाणित कर दिया था, बाद में पाइथागोरस ने उसे सिद्ध
 किया और यह सिद्धांत कहलाया बोद्धायन-पाइथागोरस सिस्टम.

4. अणुओं का सिद्धांत: अगर कोई आपसे पूछे कि
केमेस्ट्री में अणुओं की खोज किसने की. आपका जवाब
होगा, डाल्टन. लेकिन डाल्टन के जन्म से सदियों पहले
भारत में एक ऋषि हुए थे, ऋषि कणाद. उन्होंने हजारों
 साल पहले ही यह बता दिया था कि कोई भी द्रव्य अणुओं
और परमाणुओं से मिलकर बनता है. परमाणु सबसे छोटी इकाई है जिसे नष्ट नहीं किया जा सकता. बिना
माइक्रोस्कोप या किसी अयना यन्त्र के यह पता लगाना
 वाकई एक चमत्कार जैसा था. साथ ही उन्होंने यह भी
 बताया कि यह परमाणु या तो स्थिर अवस्था में रहता है या ऊर्जा के रूप में. यही बाद में हेजनबर्ग का अनसर्टेनिटी
लॉ बना.


महर्षि कणाद


5. वुट्ज स्टील: मिश्र धातुओं कि नीव तो बहुत सी पुरानी सभ्यताओं में पद चुकी थी लेकिन भारत ने यहां भी अपनी पहचान बनाई. उस दौर में युद्ध और घरेलु उपकरणों के लिए लोहे का ही प्रयोग किया जाता था. लेकिन लोहे के साथ
 समस्या यह थी कि उसमें बहुत जल्दी जंग लग जाती थी.
 जैसे ही लोहा वायु के संपर्क में आया, उसमें जंग लगना
 पक्का था. लेकिन भारतीयों ने दुनिया को ऐसा लोहा प्रदान किया जिसमें जंग लग ही नहीं सकती थी. इसे बनाने का
 तरीका ही इसका मुख्य प्लस पॉइंट था. कार्बन धातु के
साथ लोहे को गलाने से वो जंगनिरोधक हो जाता है, यह
पद्दति भारत ने ही पूरी दुनिया को दी. इसी लोहे से बहुत
 मशहूर तलवारें बनती थी जिन्हें दमिश्क लोहे कि तलवारें
कहा जाता था. सम्राट सिकंदर की तलवार भी इसी धातु
की बनी थी ।

इसके अलावा भारत ने पूरी दुनिया को योग की शक्ति से परिचित करवाया. अपने शरीर, मन और आत्मा को पवित्र रखने के लिए किया जाने वाला योग आज पूरी दुनिया में
योगा के नाम से मशहूर हो रहा है ।
(साभार न्यूज18)