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बलिया : पांच महीने पहले गुम हुई बालिका मिली , आशा ज्योति केंद्र व महिला हेल्पलाइन 181 के प्रयास ने परिवार में लौटाई खुशी



पांच महीने पहले गुम हुई बालिका मिली
आशा ज्योति केंद्र व महिला हेल्पलाइन 181 के प्रयास ने परिवार में लौटाई खुशी


बलिया 5 अक्टूबर 2018 :  एक अत्यंत गरीब परिवार को उसकी पांच महीने पहले भूली अम्पा नामक बच्ची 'आशा ज्योति केंद्र' के सहयोग से गुरुवार को वापस
अपने परिजनों के पास पहुंच गयी । बता दे कि रसड़ा क्षेत्र के अखनपुरा मुसहर बस्ती निवासी  गिरिजा नाथ की 7 वर्षीय बच्ची पाँच-छह महीने पहले बलिया रेलवे स्टेशन से खो गई थी। बाल संरक्षण इकाई, आशा ज्योति केंद्र व महिला हेल्पलाइन 181 के प्रयास से गुरुवार को जैसे ही वह बच्ची अपने माँ-बाप से मिली, दोनों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। बच्ची के परिजन भी सरकार की योजना को धन्यवाद देते नहीं थक रहे थे।
अखनपुरा निवासी 7 वर्षीय अम्पा के माता-पिता काफी गरीब हैं और दातुन बेचकर अपनी जीविका चलाते हैं। करीब पांच-छह महीनों पहले बलिया रेलवे स्टेशन पर से अम्पा गुम हो गई थी। वह गलती से किसी ट्रेन में बैठ कर दिल्ली चली गई। कुछ दिन बाद नई दिल्ली में वह मिली तो उसे वहीं के बालिका गृह में रखा गया था। पहले तो घबड़ाहट में वह अपना पता भी नहीं बता पा रही थी। लेकिन बाद में जब वह रसड़ा बलिया का नाम ली तो यहां के नईदिल्ली से बाल संरक्षण समिति बलिया से संपर्क किया गया। पता के रूप में बलिया की पुष्टि होने के बाद दिल्ली पुलिस उस बच्ची को लेकर बलिया आई और एक अक्टूबर को यहां की बाल संरक्षण समिति को सुपुर्द कर दिया। बाल संरक्षण समिति के आदेश पर 'आपकी सखी आशा ज्योति केंद्र' व 181 महिला हेल्पलाइन की टीम ने बच्ची को रसड़ा क्षेत्र में उसके बताये लोकेशन पर ले गई। काफी प्रयास के बाद बच्ची के परिजनों का पता लगा लिया गया। गुरुवार को बाल संरक्षण इकाई में उसके माता-पिता को बुलाकर अम्पा को उसके घर भेज दिया गया। अप्पा के मिलते ही उसके माता-पिता के चेहरे खुशी से खिल उठे।आपकी सखी आशा ज्योति केंद्र ,181 की प्रतिमा और चन्दा का बच्ची को मां बाप से मिलवाने में महत्वपूर्ण योगदान और प्रयास रहा ।
सरकारी योजना से महरूम है मुसहर बस्ती के लोग 
      सरकर द्वारा गरीबो के लिये संचालित योजनाएं कितनी पहुंचती है अगर इसको देखना है तो रसड़ा मुख्यालय से या यूं कहें कि नगर पालिका परिषद की सीमा से चंद कदम दूर बसी हुई या यूं कहें किसी तरह खुले आसमान से सिर को छुपाने के लिये झोपड़ पट्टी वाली मुसहर बस्ती को देखने से पता चल जाएगा । इस बस्ती में गरीबी इतनी है कि ये लोग करकट की भी छत नही डाल सकते है , कपड़े प्लास्टिक की छत के नीचे जीवन किसी तरह गुजारने को मजबूर इन लोगो तक जिले के आला अधिकारियों की निगाह ही नही पहुंची है । ऐसे में सवाल यह उठता है कि सबको छत और खुले में शौच को बंद करने की कवायद क्या इस बस्ती में लागू हो पाएगी ? इसका जबाब तो जिले के हाकिम ही दे पाएंगे ।