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बड़ा सवाल : दलितों की राजनीति करने वाले नेताओं की गरीब सवर्णो को आरक्षण देने की मांग , कही सियासी चाल तो नही ?
बड़ा सवाल : दलितों की राजनीति करने वाले नेताओं की गरीब सवर्णो को आरक्षण देने की मांग , कही सियासी चाल तो नही ?
- 8 सितंबर 2018 ।।
एससी/एसटी एक्ट में संशोधन के विरोध में भारत बंद के बाद गरीब सवर्णों के लिए आरक्षण पर सियासत तेज हो गई है. इसमें पार्टियों को एक अवसर दिख रहा है, क्योंकि चुनाव नजदीक हैं. दलितों और पिछड़ों की सियासत करके सत्ता में आए रामदास अठावले, मायावती और रामविलास पासवान भी सवर्णो के लिये आरक्षण की मांग कर रहे हैं. ये बात थोड़ी हैरान करती है लेकिन सच है. सवाल ये उठता है कि सवर्णों के खिलाफ दलितों, पिछड़ों की गोलबंदी करते-करते ये नेता अब अपर कास्ट की पैरवी क्यों कर रहे हैं? क्या इसके पीछे कोई सियासी गणित है या फिर उनके मन में सवर्णों को लेकर वाकई श्रद्धा है?
सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च को एससी/एसटी एक्ट में जो बदलाव किया, उसे मोदी सरकार ने बिल लाकर बेअसर कर दिया. इस बिल से सवर्णों में बीजेपी के खिलाफ जो गुस्सा है, क्या पासवान, मायावती और अठावले उसे भुनाना चाहते हैं? इसका जवाब हमने ‘24 अकबर रोड’ के लेखक एवं वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई से जानने की कोशिश की ।
केंद्रीय राज्य मंत्री रामदास अठावले (File Photo)
किदवई कहते हैं “दलितों की सियासत करने वाली पार्टियां भी अपना दायरा बढ़ाना चाहती हैं इसलिए वे गरीब सवर्णों को आरक्षण देने की बात कर रही हैं. सवर्णों के असंतोष में उन्हें अवसर दिख रहा होगा. 2007 में ब्राह्मणों को साथ लेकर मायावती सत्ता में आई थीं. लेकिन दलित नेताओं की यह पहल सिर्फ कागजी और चुनावी लगती है. यह सिर्फ सवर्णों को टटोलने की कोशिश हो सकती है क्योंकि ऐसा बयान देने वाले नेता भी जानते हैं कि आर्थिक आधार पर आरक्षण देने का रास्ता अड़चनों से भरा हुआ है. इसलिए इतनी जल्दी इसे लेकर कोई भी सरकार किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकती.”।
दिल्ली यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल साइंस के एसोसिएट प्रोफेसर सुबोध कुमार कहते हैं “हर पार्टी का एक कोर वोटर होता है, लेकिन सिर्फ इसी के सहारे वह आगे नहीं बढ़ सकती. इसके अलावा उसे मास वोटबैंक की मदद भी चाहिए होती है. किसी पार्टी का नेता सिर्फ एक जाति को लेकर सियासत में लंबी दूरी नहीं तय कर सकता है. इसलिए दलितों की राजनीति करने वाली पार्टियां भी गरीब सवर्णों का समर्थन हासिल कर उन्हें अपने पाले में करना चाहती हैं. इसमें आश्चर्य करने वाली कोई बात नहीं है. मायावती ने सवर्णों का साथ पाने के लिए अपना नारा बदल दिया था.”।
क्या मायावती, अठावले और पासवान के स्टैंड से उनके कोर वोट पर कोई असर पड़ेगा? इस सवाल के जवाब में प्रो.कुमार कहते हैं “इस तरह की बयानबाजी से इन पार्टियों के कोर वोटरों पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है, क्योंकि उन्हें पता है कि उनका नेता ऐसा क्यों कर रहा है. किसी भी पार्टी का यह काम है कि जनता में जो आवाज उठ रही है उसे मुद्दा बनाकर सत्ता में आए और उसके लिए पॉलिसी बनाए. हालांकि गरीब सवर्णों को आर्थिक आधार पर आरक्षण देना इतना आसान नहीं है क्योंकि संविधान में आरक्षण का आधार सामाजिक और शैक्षणिक है.”
किदवई कहते हैं “दलितों की सियासत करने वाली पार्टियां भी अपना दायरा बढ़ाना चाहती हैं इसलिए वे गरीब सवर्णों को आरक्षण देने की बात कर रही हैं. सवर्णों के असंतोष में उन्हें अवसर दिख रहा होगा. 2007 में ब्राह्मणों को साथ लेकर मायावती सत्ता में आई थीं. लेकिन दलित नेताओं की यह पहल सिर्फ कागजी और चुनावी लगती है. यह सिर्फ सवर्णों को टटोलने की कोशिश हो सकती है क्योंकि ऐसा बयान देने वाले नेता भी जानते हैं कि आर्थिक आधार पर आरक्षण देने का रास्ता अड़चनों से भरा हुआ है. इसलिए इतनी जल्दी इसे लेकर कोई भी सरकार किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकती.”।
दिल्ली यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल साइंस के एसोसिएट प्रोफेसर सुबोध कुमार कहते हैं “हर पार्टी का एक कोर वोटर होता है, लेकिन सिर्फ इसी के सहारे वह आगे नहीं बढ़ सकती. इसके अलावा उसे मास वोटबैंक की मदद भी चाहिए होती है. किसी पार्टी का नेता सिर्फ एक जाति को लेकर सियासत में लंबी दूरी नहीं तय कर सकता है. इसलिए दलितों की राजनीति करने वाली पार्टियां भी गरीब सवर्णों का समर्थन हासिल कर उन्हें अपने पाले में करना चाहती हैं. इसमें आश्चर्य करने वाली कोई बात नहीं है. मायावती ने सवर्णों का साथ पाने के लिए अपना नारा बदल दिया था.”।
क्या मायावती, अठावले और पासवान के स्टैंड से उनके कोर वोट पर कोई असर पड़ेगा? इस सवाल के जवाब में प्रो.कुमार कहते हैं “इस तरह की बयानबाजी से इन पार्टियों के कोर वोटरों पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है, क्योंकि उन्हें पता है कि उनका नेता ऐसा क्यों कर रहा है. किसी भी पार्टी का यह काम है कि जनता में जो आवाज उठ रही है उसे मुद्दा बनाकर सत्ता में आए और उसके लिए पॉलिसी बनाए. हालांकि गरीब सवर्णों को आर्थिक आधार पर आरक्षण देना इतना आसान नहीं है क्योंकि संविधान में आरक्षण का आधार सामाजिक और शैक्षणिक है.”
बसपा सुप्रीमो मायावती (File Photo)
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया है, बशर्ते, ये साबित किया जा सके कि वे औरों के मुकाबले सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े हैं. इसे तय करने के लिए कोई भी राज्य अपने यहां पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन करके अलग-अलग वर्गों की सामाजिक स्थिति की जानकारी ले सकता है.
अठावले ने क्या कहा?केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्यमंत्री रामदास अठावले ने कहा है कि सवर्णों को 25 प्रतिशत आरक्षण मिलना चाहिए. संविधान संशोधन करके 75 फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया जाना चाहिए. रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष ने कहा कि गरीब और सामाजिक रूप से पिछड़े लोग सभी जातियों में हैं. इसलिए अनुसूचित जाति व ओबीसी आरक्षण से छेड़छाड़ किए बगैर सवर्णों को भी आरक्षण दिया जाना चाहिए.
गरीब सवर्णों पर पासवान का स्टैंड?लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष एवं केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने भी सवर्ण आरक्षण का समर्थन किया है. उन्होंने गरीब सवर्णों को 15 प्रतिशत आरक्षण देने की वकालत की है. उन्होंने कहा कि एलजेपी गरीब सवर्ण आरक्षण के लिए आवाज उठाएगी. उधर, कांग्रेस ने भी गरीब सवर्णों को दस प्रतिशत आरक्षण देने की मांग की है. बिहार कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अनिल शर्मा ने एलान किया कि उनकी पार्टी उच्च जातियों के गरीबों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने की मांग करती है.
मायावती भी गरीब सवर्णों के पक्ष में!
उधर, मायावती ने भी कुछ ऐसी ही मांग की है. उन्होंने कहा, अगर केंद्र सरकार सवर्ण समाज के आर्थिक आधार पर पिछड़े लोगों को संविधान में संशोधन कर या विधेयक लाकर 18 फीसदी आरक्षण देने का प्रावधान करती है तो हमारी पार्टी सबसे पहले इस कदम का स्वागत करेगी. हमारी पार्टी लगातार केंद्र सरकार को अनुरोध कर चुकी है कि देश में जो अपर कास्ट समाज में गरीब लोग हैं उन्हें भी आर्थिक आधार आरक्षण दिया जाना चाहिए.
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया है, बशर्ते, ये साबित किया जा सके कि वे औरों के मुकाबले सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े हैं. इसे तय करने के लिए कोई भी राज्य अपने यहां पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन करके अलग-अलग वर्गों की सामाजिक स्थिति की जानकारी ले सकता है.
अठावले ने क्या कहा?केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्यमंत्री रामदास अठावले ने कहा है कि सवर्णों को 25 प्रतिशत आरक्षण मिलना चाहिए. संविधान संशोधन करके 75 फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया जाना चाहिए. रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष ने कहा कि गरीब और सामाजिक रूप से पिछड़े लोग सभी जातियों में हैं. इसलिए अनुसूचित जाति व ओबीसी आरक्षण से छेड़छाड़ किए बगैर सवर्णों को भी आरक्षण दिया जाना चाहिए.
गरीब सवर्णों पर पासवान का स्टैंड?लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष एवं केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने भी सवर्ण आरक्षण का समर्थन किया है. उन्होंने गरीब सवर्णों को 15 प्रतिशत आरक्षण देने की वकालत की है. उन्होंने कहा कि एलजेपी गरीब सवर्ण आरक्षण के लिए आवाज उठाएगी. उधर, कांग्रेस ने भी गरीब सवर्णों को दस प्रतिशत आरक्षण देने की मांग की है. बिहार कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अनिल शर्मा ने एलान किया कि उनकी पार्टी उच्च जातियों के गरीबों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने की मांग करती है.
मायावती भी गरीब सवर्णों के पक्ष में!
उधर, मायावती ने भी कुछ ऐसी ही मांग की है. उन्होंने कहा, अगर केंद्र सरकार सवर्ण समाज के आर्थिक आधार पर पिछड़े लोगों को संविधान में संशोधन कर या विधेयक लाकर 18 फीसदी आरक्षण देने का प्रावधान करती है तो हमारी पार्टी सबसे पहले इस कदम का स्वागत करेगी. हमारी पार्टी लगातार केंद्र सरकार को अनुरोध कर चुकी है कि देश में जो अपर कास्ट समाज में गरीब लोग हैं उन्हें भी आर्थिक आधार आरक्षण दिया जाना चाहिए.
केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान (File Photo)
क्या नया है सवर्णों को आरक्षण देने का मुद्दा?
1991 में मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू होने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने गरीब सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला किया था. हालांकि, 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक करार देते हुए खारिज कर दिया. बीजेपी ने 2003 में एक मंत्री समूह का गठन किया. हालांकि इसका फायदा नहीं हुआ और वाजपेयी सरकार 2004 का चुनाव हार गई. साल 2006 में कांग्रेस ने भी एक कमेटी बनाई जिसको आर्थिक रूप से पिछड़े उन वर्गों का अध्ययन करना था जो मौजूदा आरक्षण व्यवस्था के दायरे में नहीं आते हैं. लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ ।
क्या नया है सवर्णों को आरक्षण देने का मुद्दा?
1991 में मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू होने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने गरीब सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला किया था. हालांकि, 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक करार देते हुए खारिज कर दिया. बीजेपी ने 2003 में एक मंत्री समूह का गठन किया. हालांकि इसका फायदा नहीं हुआ और वाजपेयी सरकार 2004 का चुनाव हार गई. साल 2006 में कांग्रेस ने भी एक कमेटी बनाई जिसको आर्थिक रूप से पिछड़े उन वर्गों का अध्ययन करना था जो मौजूदा आरक्षण व्यवस्था के दायरे में नहीं आते हैं. लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ ।
(साभार न्यूज18)
बड़ा सवाल : दलितों की राजनीति करने वाले नेताओं की गरीब सवर्णो को आरक्षण देने की मांग , कही सियासी चाल तो नही ?
Reviewed by बलिया एक्सप्रेस
on
September 08, 2018
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