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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला : सरकार की आलोचना पर पत्रकार के खिलाफ नहीं दर्ज किया जा सकता मुकदमा, अभिषेक उपाध्याय की गिरफ्तारी पर लगायी रोक

 




नई दिल्ली।।देश में अभिव्यक्ति की आज़ादी पर उठते सवालों के बीच सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम टिप्पणी की है। अदालत ने कहा है कि किसी पत्रकार के खिलाफ सिर्फ इसलिए आपराधिक मामला दर्ज नहीं किया जा सकता क्योंकि उसने सरकार या उसके अधिकारियों की आलोचना की है। यह टिप्पणी पत्रकार अभिषेक उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई के दौरान आई, जिन्होंने उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा दर्ज एक एफआईआर को चुनौती दी थी।


मामला उस समय शुरू हुआ जब अभिषेक उपाध्याय ने राज्य में उच्च पदों पर तैनात कुछ अधिकारियों के बारे में एक लेख प्रकाशित किया। इस लेख को जातिगत झुकाव से प्रेरित बताया गया और इसके आधार पर लखनऊ में उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई। एफआईआर संख्या 265/2024 के तहत उनके खिलाफ कई धाराओं में मामला दर्ज हुआ था। इस कार्रवाई को चुनौती देते हुए उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका दायर की, जिसमें कहा गया कि उनके लेख में किसी तरह का अपराध नहीं बनता और यह पूरी तरह पत्रकारिता के दायरे में आता है।


माननीय न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति एस.वी.एन. भट्टी की पीठ ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि पत्रकार का विचार और लेखन संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में सुरक्षित है। अदालत ने कहा कि लोकतंत्र में सरकार की आलोचना कोई अपराध नहीं है, बल्कि यह एक स्वस्थ लोकतांत्रिक व्यवस्था की पहचान है। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश पुलिस को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है और इस बीच अभिषेक उपाध्याय की गिरफ्तारी पर रोक लगाने का आदेश दिया है।


सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता अनुप प्रकाश अवस्थी ने अदालत को बताया कि एफआईआर में लगाए गए आरोप निराधार हैं और केवल पत्रकारिता के कार्य को दबाने के उद्देश्य से लगाए गए हैं। अदालत ने इस दलील को स्वीकार करते हुए कहा कि पत्रकारिता को स्वतंत्र वातावरण में काम करने की जरूरत है और किसी भी प्रकार का भय या दमन लोकतंत्र की आत्मा को कमजोर करता है।


यह फैसला न केवल अभिषेक उपाध्याय के लिए राहत की खबर है, बल्कि पूरे मीडिया जगत के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश भी है। सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश बताता है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता केवल एक अधिकार नहीं, बल्कि लोकतंत्र की बुनियाद है। अगर सरकार की आलोचना पर पत्रकारों पर मुकदमे दर्ज किए जाने लगें, तो यह लोकतंत्र की आवाज़ को कुचलने जैसा होगा।


पत्रकारिता जगत में इस आदेश का स्वागत किया जा रहा है। कई वरिष्ठ संपादकों और मीडिया संगठनों ने कहा है कि यह फैसला प्रेस की स्वतंत्रता को मज़बूती देता है और यह सुनिश्चित करता है कि सरकार की नीतियों या अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाना अपराध नहीं है।


सुप्रीम कोर्ट का यह रुख यह भी याद दिलाता है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ अराजकता नहीं, बल्कि जिम्मेदार संवाद है। लेकिन उस संवाद पर कानूनी डर का साया नहीं होना चाहिए। इस आदेश ने यह स्पष्ट कर दिया है कि पत्रकार लोकतंत्र के प्रहरी हैं और उनकी आवाज़ को दबाना संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ है।