मैंने भी मोल खरीदे आंसू
डॉ भगवान प्रसाद उपाध्याय
प्रयागराज।।
मैंने भी मोल खरीदे आंसू
जब पीड़ा के बाजार में
पलकों पर उनको बैठाया
लिया जगत व्यवहार में
प्रतिपल बने दुखों के साथी
वह कष्ट उठाते रहे सदा
जग का दर्द बटोर रहे हैं
रात - रात भर जगे सदा
साधा स्वार्थ सभी ने अपना
उनका कोई हो न सका
इतने बने निरीह यहाँ वे
उन पर कोई रो न सका
छल प्रपंच ने शोषण करके
छोड़ दिया मझधार में
मैंने भी मोल खरीदे आंसू
जब पीड़ा के बाजार में
उसने खूब रुलाया इनको
ये जिन पर विश्वास किये
मार दुधारी अरमानों पर
कदम कदम प्रतिघात किये
ऐसा पाठ पढ़ाया जग ने
परछाई से भी डर लगता
इधर चलें या उधर चलें
कोई भी मार्ग नहीं मिलता
सबने जी भरकर है लूटा
कोई भी न बचा संसार में
मैंने भी मोल खरीदे आंसू
जब पीड़ा के बाजार में
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