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अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस पर विशेष : मोबाइल और पश्चिमी सभ्यता की चकाचौंध में खोता युवा

 



डॉ सुनील कुमार ओझा 

बलिया।। अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस हर वर्ष 12 अगस्त को मनाया जाता है, ताकि युवाओं की भूमिका, उनकी समस्याओं और उनके योगदान पर वैश्विक ध्यान केंद्रित हो। जबकिवर्ष 2025 की थीम—"प्रौद्योगिकी और साझेदारी के माध्यम से बहुपक्षीय सहयोग को आगे बढ़ाते युवा"—हमसे यह आह्वान करती है कि हम युवाओं की ऊर्जा, नवाचार और नेतृत्व क्षमता को तकनीक व साझेदारी के माध्यम से विश्व के सामूहिक हित में लगाएँ।आज का युवा डिजिटल युग में पैदा हुआ है—जिसे हम डिजिटल नेटिव कहते हैं।कृत्रिम बुद्धिमत्ता, ब्लॉकचेन, डेटा विज्ञान, 5G और ग्रीन टेक्नोलॉजी—ये सिर्फ शब्द नहीं, बल्कि ऐसे औज़ार हैं जिनसे युवा समाज में बदलाव ला सकते हैं।

तकनीक ने उन्हें वैश्विक ज्ञान तक त्वरित पहुंच,ऑनलाइन शिक्षा के अवसर,और नवाचार के लिए असीम मंच दिए हैं।अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस केवल एक तिथि नहीं है, बल्कि यह हमें याद दिलाता है कि राष्ट्र की असली शक्ति उसके युवा हैं। युवाओं की ऊर्जा, सोच और कार्य क्षमता ही किसी देश का भविष्य तय करती है। लेकिन आज का एक बड़ा सच यह है कि भारतीय युवा अपनी पहचान, संस्कृति और मूल्यों से धीरे-धीरे दूर होता जा रहा है। मोबाइल की स्क्रीन और पश्चिमी सभ्यता की चकाचौंध उसके जीवन का नया केंद्र बन गई है।

                  युवा और मोबाइल का रिश्ता

मोबाइल फोन एक सशक्त साधन है—ज्ञान, सूचना और अवसरों का द्वार। लेकिन इसकी अंधाधुंध और असंतुलित उपयोग ने युवाओं को आभासी दुनिया में कैद कर दिया है। घंटों तक सोशल मीडिया पर समय गंवाना, लाइक और फॉलोअर्स की होड़, और वर्चुअल पहचान बनाने की दौड़, वास्तविक जीवन के रिश्तों और जिम्मेदारियों से दूरी पैदा कर रही है।



                 पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव

पश्चिमी जीवनशैली के सकारात्मक पहलू हैं—समय का महत्व, वैज्ञानिक सोच, और व्यक्तिगत स्वतंत्रता। लेकिन बिना छानबीन अपनाई गई भोगवादी प्रवृत्ति, फैशन और त्वरित सुख की चाह ने युवा पीढ़ी में अधैर्य, अनुशासनहीनता और आत्ममुग्धता को जन्म दिया है।

परिणामस्वरूप, भारतीय संस्कृति के आदर्श—संयम, सेवा, और परिवार-केन्द्रित जीवन—पीछे छूटते जा रहे हैं।

                       चुनौतियाँ

1. मानसिक स्वास्थ्य – सोशल मीडिया पर तुलना और प्रतिस्पर्धा से तनाव, अवसाद और आत्मग्लानि।

2. सांस्कृतिक क्षरण – भारतीय भाषाओं, परंपराओं और मूल्यों से दूरी।

3. शारीरिक स्वास्थ्य – मोबाइल लत से नींद, दृष्टि और फिटनेस पर नकारात्मक असर।

               उपाय और समाधान 

मोबाइल का संतुलित और उद्देश्यपूर्ण उपयोग।

*भारतीय संस्कृति, भाषा और परंपराओं के प्रति गर्व की भावना का विकास।

*योग, ध्यान, खेल और सामाजिक कार्यों में सहभागिता।

*परिवार और मित्रों के साथ प्रत्यक्ष संवाद को प्राथमिकता देना।

*शिक्षा व्यवस्था में सांस्कृतिक मूल्यों और डिजिटल साक्षरता का समावेश।

आज का युवा अगर अपनी ऊर्जा को सही दिशा में लगाए, तो वह केवल अपना ही नहीं, देश का भविष्य भी उज्ज्वल कर सकता है। तकनीक और आधुनिकता को अपनाना जरूरी है, लेकिन अपनी जड़ों और संस्कृति को भूलकर नहीं। अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस पर हमें यह संकल्प लेना होगा कि हम मोबाइल और पश्चिमी चकाचौंध में खोने के बजाय, अपने मूल्यों और लक्ष्यों के प्रति सजग रहेंगे ।जबकि अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस 2025 की थीम हमें यह संदेश देती है—

तकनीक हमारे हाथ में है, लेकिन इसका असली मूल्य तब है जब इसे साझेदारी और सहयोग के साथ जोड़ा जाए।

जब युवा अपनी ऊर्जा को नवाचार, साझेदारी और बहुपक्षीय सहयोग की दिशा में लगाएंगे, तब ही एक न्यायसंगत, समावेशी और समृद्ध विश्व का निर्माण संभव होगा।

(लेखक- भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महासंघ के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य, बलियाएक्सप्रेस के उपसंपादक)