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अंत्येष्टि में विज्ञापन,समाज के संवेदनहीन होते कदम :नेतृत्व की होड़ या प्रचार की भूख? सोशल मीडिया बना शोकसभा का मंच

 




डॉ सुनील कुमार ओझा

(उपसंपादक-बलिया एक्सप्रेस)

बलिया।।समाज के बदलते स्वरूप में संवेदनाएँ किस तेजी से क्षीण हो रही हैं, इसका सबसे ताजा उदाहरण अंत्येष्टि जैसे गंभीर अवसरों पर भी देखा जा रहा है। जिन स्थानों पर मौन, श्रद्धांजलि और पीड़ा की अनुभूति आत्मा को झकझोरती थी, वहीं आज लोग स्वयं का परिचय, पद, संस्था और उपलब्धियाँ बताने को उत्सुक दिखाई देते हैं। मानो शोकसभा शोक का नहीं, पहचान का मंच बन गई हो। आज लोग आपदा मे अवसर की तलाश (प्रचार की )को लोगों को कंधा देकर, ढांढस देकर और चित्र पर दो फूल (वह भी मृतात्मा के परिजनों द्वारा ही रखा गया होता है ) चढ़ा कर हासिल करने मे लगे हुए है। संवेदनायें मर रही है लेकिन राजनीति जारी है।


कभी अंतिम यात्रा में शामिल होना सामाजिक दायित्व और मनुष्यता का दर्पण समझा जाता था। परंतु आज वही अवसर कई लोगों के लिए प्रचार का साधन बन गया है। फ़ेसबुक और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म इस प्रवृत्ति को और तेज कर रहे हैं। शोक संदेश, फ़ोटो, उपस्थित लोगों की सूची—सब कुछ मिनटों में ऑनलाइन साझा हो रहा है, और उसमें भी सबसे प्रमुख होता है पोस्ट करने वाले का नाम एवं पद। प्रश्न उठना स्वाभाविक है—क्या अंत्येष्टि भी अब विज्ञापन का माध्यम बन रही है?


नेतृत्व स्थापित करने की होड़ में यह गिरावट स्पष्ट दिखाई देती है। समाजसेवा, राजनीति या सामाजिक पहचान की चाह रखने वाले कुछ व्यक्ति ऐसे अवसरों पर भी खुद को रेखांकित करने से नहीं चूकते। श्रद्धांजलि से अधिक महत्व फ़ोटो में दिखने का हो जाता है। यह प्रवृत्ति मूल नैतिकता पर प्रश्नचिह्न लगाती है।

              क्या यही सामाजिक विकास है?


संवेदनाओं का मूल्य अगर पद-प्रचार से कम आँका जाने लगे, तो यह सभ्य समाज की सोच पर सीधा प्रहार है। अंत्येष्टि में मौजूदगी आत्मीयता होनी चाहिए, न कि उपस्थिति दर्ज कराने का प्रमाण-पत्र। प्रश्न यह नहीं कि सोशल मीडिया का उपयोग गलत है, बल्कि यह है कि उसका उपयोग कहाँ और कैसे किया जा रहा है।


                      समाप्ति पर विचार


मानवता का चरित्र तभी मजबूत रहेगा जब शोक के क्षण सम्मान और संवेग से भरे हों। समाज को यह ठहरकर सोचना होगा—क्या राजनीति की दौड़, पद की भूख और प्रचार का आकर्षण हमें वह भी करने को विवश कर देगा, जिसे कभी अनुचित मानना भी अपराध था?

शोकसभा श्रद्धांजलि है, अवसर नहीं।

प्रश्न हमारे सामने है—हम इस गिरते स्तर को क्या नाम दें?