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‘हम टूट चुके हैं’— इंडिगो के भीतर से उठी आवाज़ ने हिला दिया एविएशन जगत :इंडिगो संकट की जड़ें उजागर? वायरल पत्र में वर्षों की अनदेखी का दावा

 



इंडिगो के भीतर का तूफ़ान: कर्मचारी के कथित खुला पत्र ने प्रबंधन पर गंभीर सवाल खड़े किए

एयरलाइन की ऊँची उड़ान के पीछे छिपी थकान: इंडिगो कर्मचारी के आरोपों ने बढ़ाई हलचल

नई दिल्ली।। देश की सबसे बड़ी एयरलाइन IndiGo एक बार फिर विवादों के केंद्र में है। हाल ही में सामने आया एक कथित ‘ओपन लेटर’ कंपनी के प्रबंधन, कार्यसंस्कृति और कर्मचारियों के हालात पर गंभीर सवाल खड़ा कर रहा है। सोशल मीडिया पर वायरल इस पत्र के अनुसार, एयरलाइन के भीतर वर्षों से ऐसे हालात पनपते रहे जिन्हें नेतृत्व ने नज़रअंदाज़ किया और आज उन्हीं का परिणाम एक बड़े परिचालन संकट के रूप में दिख रहा है।


पत्र लिखने वाले कर्मचारी ने दावा किया है कि शुरुआत के दिनों में कंपनी में गर्व और टीमवर्क की भावना थी, मगर समय के साथ यह माहौल बदलता गया। विकास का दबाव और बाज़ार में बढ़त बनाए रखने की होड़ कर्मचारियों की भलाई पर भारी पड़ी। आरोप यह भी लगाया गया है कि कंपनी में ऐसे लोग उच्च पदों तक पहुँच गए जिन्हें न तो नेतृत्व का अनुभव था और न ही बुनियादी कामकाज की समझ। इन पदों का लाभ उन्हें अधिकार और ESOPs के रूप में मिला, जबकि नीचे काम करने वाले कर्मचारियों पर लगातार अतिरिक्त बोझ डाला गया।


कथित पत्र में यह कहा गया है कि ग्राउंड स्टाफ को बेहद कम वेतन में कई लोगों का काम करना पड़ता था। तेज़ी से बदलते शेड्यूल, भारी भीड़ और तंग समय में उन्हें लगातार दौड़भाग करनी पड़ती थी। पायलटों और इंजीनियरों पर बढ़ता दबाव, थकान और अपर्याप्त आराम की शिकायतें भी इसमें दर्ज हैं। दावा किया गया है कि इन मुद्दों पर आवाज़ उठाने वालों को डांट या धमकी देकर चुप कराया जाता था।


केबिन क्रू के बारे में लिखा गया है कि यात्रियों से मुस्कुराकर बात करने के बावजूद वे मानसिक और शारीरिक रूप से टूट चुके थे। इंजीनियरिंग टीम को एक साथ कई विमानों पर काम करना पड़ता था, अक्सर ऐसे हालात में जहाँ पर्याप्त निगरानी तक उपलब्ध नहीं होती थी। पत्र में यह भी आरोप शामिल है कि यात्रियों को ‘कस्टमर’ कहने का निर्देश इस सोच के तहत दिया गया कि उन्हें ‘यात्री’ कहने से वे अधिकार जताने लगते हैं। इससे कर्मचारियों और यात्रियों के बीच अनचाही दूरी पैदा हुई।



पत्र में भारतीय एविएशन नियामक पर भी सवाल उठाए गए हैं। दावा है कि विदेश जाने वाले पायलटों के लाइसेंस सत्यापन में देरी की जाती थी और यह भी अटकलें थीं कि ‘गैर-औपचारिक माध्यमों’ से प्रक्रिया तेज़ कराई जा सकती है। थकान संबंधी नियमों में बदलाव से कई कर्मचारियों के शेड्यूल और खराब हो गए, लेकिन उनके पास न यूनियन थी और न कोई प्रभावी मंच जहाँ वे अपनी बात रख सकें।


लेखक का आरोप है कि आज जो परिचालन संकट यात्रियों को दिख रहा है—उड़ानों में देरी, रद्दीकरण और स्टाफ की कमी—वह सालों की उपेक्षा और लगातार बढ़ते दबाव का नतीजा है। कर्मचारी के अनुसार, एयरलाइन ने अपने विस्तार और मुनाफे को प्राथमिकता दी, लेकिन उससे पैदा हुए तनाव और संसाधनों की कमी ने सिस्टम को भीतर से कमजोर कर दिया।


IndiGo की ओर से इस पत्र पर अब तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी गई है। हालांकि DGCA ने हाल के परिचालन संकट और उड़ानों की भारी देरी के चलते कंपनी से जवाब मांगा है। कई रिपोर्टों में यह भी सामने आया है कि एयरलाइन ने हालात सुधारने के लिए संकट प्रबंधन समूह का गठन किया है।


पत्र की सामग्री की स्वतंत्र पुष्टि अभी नहीं हुई है, लेकिन इसने विमानन उद्योग और यात्रियों दोनों में नई बहस छेड़ दी है। कई यात्रियों ने बताया है कि हाल के महीनों में उनका अनुभव भी ठीक वैसा ही रहा जैसा इस पत्र में वर्णित है—धैर्य की परीक्षा लेती देरी, थका हुआ स्टाफ और अव्यवस्थित संचालन। यह पत्र सही है या नहीं, यह आगे स्पष्ट होगा, लेकिन इसने देश की सबसे बड़ी एयरलाइन के अंदरूनी माहौल पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।