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जातीय जनगणना के साथ ही हो आर्थिक गणना, आर्थिक आधार पर हो आरक्षण

 

 


मधुसूदन सिंह 

बलिया।। देश मे बहुत दिनों से की जा रही जातीय जनगणना की मांग को आखिरकार मोदी सरकार ने मान लिया है और जातीय आधार पर जनगणना कराने का निर्णय किया है। इस निर्णय से देश मे कितनी जातियां है, उनकी स्थिति कैसी है, का पता चल सकेगा। इसके साथ ही 85-15 की राजनीति का भी खात्मा हो जायेगा। जातीय जनगणना कराने का निर्णय और प्रभावशाली तब होगा जब इसके साथ ही आर्थिक स्थिति की भी गणना की जाय।

आरक्षण को जातिगत नहीं आर्थिक आधार पर किया जाय 

आजादी के बाद से आजतक देश मे जातिगत आरक्षण ही लागू है, फिर भी आरक्षण मे शामिल जातियों के कुछ लोग ही इसका फायदा उठा पाये, अधिकांश आज भी गरीबी रेखाa के नीचे ही जीवन गुजार रहे है। यही कारण है कि भारत सरकार को लगभग 80 करोड़ को मुफ्त मे राशन देना पड़ रहा है। इस आरक्षण व्यवस्था से जिन लोगों ने फायदा उठाया वो फर्श से अर्श तक पहुंच जाने के बाद भी आरक्षण को छोड़ने को तैयार नहीं है। ऐसे लोग ही अपने ही समाज की तरक्की मे सबसे बड़े रोड़ा है। ऐसे रोड़ों से मुक्ति तभी मिलेगी जब आरक्षण को आर्थिक आधार पर लागू किया जाय।

सामान्य वर्ग के गरीबों को भी मिले आरक्षण 

भारत देश मे सामान्य वर्ग मे जन्म लेना अभिशाप और आरक्षण वाली जातियों मे जन्म लेना वरदान माना जाता है। सामान्य वर्ग का युवा 85 प्रतिशत अंक प्राप्त करके भी नौकरी नहीं प्राप्त कर सकता है लेकिन आरक्षित वर्ग का युवा 50 प्रतिशत अंक प्राप्त करके नौकरी प्राप्त कर लेता है। ऐसे युवा जहां काम करेंगे उनकी दक्षता हमेशा कम ही रहेगी। नौकरियों मे हमेशा जीनियस को मौका मिलना चाहिये चाहे वो सामान्य वर्ग का हो या आरक्षित वर्ग का हो। यह तभी होगा जब आरक्षण आर्थिक आधार पर हो। सरकार को अपने वोट बैंक के लिये सिर्फ आरक्षित वर्ग का ही भला नहीं सोचना चाहिये बल्कि देशहित मे सामान्य वर्ग का भी ध्यान रखना चाहिये। अगर ऐसा नहीं हुआ तो एक बार फिर से सामाजिक संतुलन बिगड़ जायेगा।




सामान्य वर्ग की जातियों मे नेतृत्व का अभाव, पिछड़ते जाने का कारण 

भारतीय राजनीति मे आजकल आरक्षित जातियों के मसीहा बनने वाले नेताओं की लाइन लगी हुई है। चाहे हमारे प्रधानमंत्री जी हो या किसी प्रान्त के मुख्यमंत्री हो, सभी एक सुर से पिछड़े वर्ग व अन्य आरक्षित जातियों के लिये ऐसी तड़प दिखाते है, जैसे वो नहीं होंगे तो इनका कोई भला नहीं कर सकता है। वही दूसरी तरफ सामान्य वर्ग के बड़े बड़े राजनेता ऐसे है जिनको अपनी जाति और सामान्य वर्ग की बेहतरी के लिये आवाज उठाने मे ऐसे शर्म आती है जैसे ये कोई गलत काम करने की बात कह रहे हो। अगर सामान्य वर्ग की जातियों को भी अपनी आवाज बुलंद करनी है तो सबसे पहले एकजुट होकर एक नेतृत्व के नीचे खड़ा होना पड़ेगा। क्योंकि देश मे एक भी दल ऐसा नहीं है जो सामान्य वर्ग के गरीबों की बात करता हो। आर्थिक आधार पर मिले आरक्षण को ऐसे देखा जाता है जैसे अमृत दे दिया है।