वाह रे नगर पालिका प्रशासन : लगभग 6 माह से स्वतंत्रता सेनानी व कवि की प्रतिमा हुई है खंडित, लेकिन नहीं ली सुधि, शहीद पार्क चौक मे लगी है स्व जगदीश ओझा सुन्दर की प्रतिमा
शशि कुमार की रिपोर्ट
बलिया।।
भारत छोड़ो’ के नारे की, बलिया एक अमिट निशानी है,
जर्जर तन बूढ़े भारत की यह मस्ती भरी जवानी है।
बोझ गुलामी का ढोने को पल भर भी तैयार नहीं,
पर के घर में पर के शासन का कोई अधिकार नहीं,
सच को दबा सके दुनिया में कोई है हथियार नहीं,
जा सकता भारत का धन अब सात समुंदर पार नहीं,
ऐसी हो ललकार, जुल्म का सघन अंधेरा छँट जाए
शत्रु फिरंगी शीश झुकाकर अपने घर पलट जाएँ।
स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और वीर योद्धाओं के अंदर अपने गीत व कविता से ऊर्जा भरने वाले स्व० जगदीश ओझा सुंदर जी की प्रतिमा को खंडित करने का मामला सामने आया है। आप को बता दे कि यह प्रतिमा बलिया नगर पालिका क्षेत्र में नगर की धड़कन कहे जाने वाले शहीद पार्क में महात्मागांधी जी के प्रतिमा के ठीक पीछे स्थित है। यह प्रतिमा कई दशकों से यहां पर मौजूद है। आस-पास के लोग इस प्रतिमा को बचपन से देखते आ रहे है लेकिन शायद ही कोई इनके इतिहास को जानता होगा। शायद यही वज़ह है कि इनकी यह प्रतिमा पिछले कुछ माह से खण्डित स्थित में जश की तश पड़ी हुई है जिसपर किसी की नजर ही नही पड़ी है । स्व० जगदीश ओझा सुंदर के सम्मान और उनकी याद को अक्षुण रखने के लिये इस प्रतिमा को शहीद पार्क में स्थापित किया था। जिन्हों ने अपने गीत और कविता से आजादी के योद्धाओं में जोश भरने का काम किया आज उन्ही की प्रतिमा उसी शहीद पार्क में अज्ञात अराजक तत्वों द्वारा खण्डित कर दयनीय स्थिति में छोड़ दी गयी है।
शहीद पार्क में हर साल अनेकों सरकारी, गैर सरकारी, सामाजिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। लेकिन क्या मजाल की कोई अपनी नजर इस प्रतिमा की तरफ भी ले जाए। नगर के तमाम प्रतिमाओं की देखभाल की जिम्मेदारी उठा रहे युवा समाजसेवी सागर सिंह राहुल को जब इसकी सूचना मिली तो उन्होंने काफी नाराजगी जाहिर की, मौके पर पहुंच कर देखा तो प्रतिमा को खंडित कर दिशा ही बदल दी गई थी नीचे से प्रतिमा खंडित मिला। सागर सिंह राहुल ने जिम्मेदारों को चेतावनी देते हुए कहा कि 24 घंटे के अंदर अगर इस प्रतिमा को ठीक नहीं कराया गया तो मेरे द्वारा चंदा मांग कर इस प्रतिमा को बचाने का कार्य किया जाएगा कहा हम अपने महान विभूतियों का अपमान नही बर्दाश्त कर सकते। जगदीश ओझा की खंडित प्रतिमा को देख सागर सिंह राहुल ने नगर पालिका प्रशासन और नगरपालिक अध्यक्ष पर जमकर बरसे।
एक तरफ जगदीश ओझा सुन्दर जी अंग्रेजों के खिलाफ अपनी कविताओं से सेनानियों मे जोश भर रहे थे, तो वही उनकी पैनी नजर समाज मे पैठ जमाती कुरीतियों पर थी। तभी तो सुन्दर जी लिखते है --
सगरी बिपतिया के गाड़ भइलि जिनिगी।
नदी भइल नैना पहाड़ भइलि जिनिगी।
आग जरे मनवा में,धधकेले सँसिया
असरा में धुआँ उठे,प्रान चढ़ल फँसिया
देहि के जरौना बा भाड़ भइलि जिनिगी।
नदी भइल नैना पहाड़ भइलि जिनिगी।
केहू माँगे घूस, केहू-माँगे नजराना
केहू माँगे सूदि मूरि,केहू मेहनताना।
कुकुर भइले जुलुमी-जन, हाड़ भइलि जिनिगी।
नदी भइल नैना पहाड़ भइलि जिनिगी।