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अटेवा की पुरानी पेंशन बहाली रथयात्रा का बलिया आगमन 4 जून को, बिहार के चम्पारण से 1 जून को होंगी प्रारम्भ




     बलिया।। 1 जून को चंपारण, बिहार से प्रारंभ होकर पेंशन रथयात्रा उत्तर प्रदेश में जय प्रकाश नारायण स्मारक स्थल, सिताब दियरा, बलिया में 4 जून की रात्रि में पहुंचेगी। जहाँ रात्रि विश्राम के पश्चात अगली सुबह 5 जून को बन्धु जी द्वारा संपूर्ण क्रांति के जनक जय प्रकाश जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण व पुष्पांजलि अर्पित करके पेंशन रथयात्रा उत्तर प्रदेश में अपनी यात्रा का आरंभ करेंगी । 

       इसी के क्रम में सोमवार को समीर पांडेय(जिला संयोजक), संजय पांडेय(ऑडिटर/कोषाध्यक्ष), विनय राय(जिला प्रवक्ता), संजीव सिंह(मीडिया कोऑर्डिनेटर), विनोद यादव(ब्लॉक अध्यक्ष मुरलीछपरा),नन्द जी सिंह(समाज सेवी) सहित अटेवा बलिया टीम द्वारा जय प्रकाश नगर पहुंचकर रथयात्रा कार्यक्रम के निमित्त व्यवस्था निर्माण का कार्य संपन्न किया गया। टीम ने स्थानीय अध्यापक बन्धुवों से भी कार्यक्रम की सफलता के लिए संपर्क किया।अटेवा बलिया जनपद के समस्त पुरानी पेंशन आग्रही साथियों से उक्त कार्यक्रम में बढ़-चढ़ कर हिस्सेदारी करने के लिए अपील करता है। आपका सहयोग कार्यक्रम को ऐतिहासिक बनाएगा।

क्यों शुरू हो रही है यह रथयात्रा चम्पारण से

जिस तरह से 1917 में अंग्रेजो की अनैतिक कृषि क़ानून से बापू ने चम्पारण में सत्याग्रह करके नील की खेती करने वाले किसानों के पक्ष में काले क़ानून को वापस कराया था। उसी तरह अब केंद्र सरकार द्वारा कर्मचारियों की पुरानी पेंशन को बंद करने के निर्णय को बदलवाने के लिये अटेवा के शीर्ष नेता बंधु जी ने रथयात्रा निकालने का निर्णय किया है। श्री बंधु जी को विश्वास है कि जिस तरह से बापू ने दुनिया के सबसे बड़े ताकतवर शासक अंग्रेजों को झुकाकर नील की खेती करने वाले किसानों को काले क़ानून को हटवा कर राहत दिलायी थी, उसी तरह श्री बंधु जी भी केंद्र सरकार को अपने आंदोलन से झुका कर पुरानी पेंशन को बहाल करने के लिये मजबूर करेंगे।





क्या था चम्पारण आंदोलन

महात्मा गांधी से प्रेरित पहला सत्याग्रह आंदोलन 1917 में बिहार के चंपारण जिले में हुआ था। चंपारण सत्याग्रह सबसे पहले शुरू किया गया था, लेकिन रौलट एक्ट विरोधी आंदोलन में पहली बार सत्याग्रह शब्द का इस्तेमाल किया गया था।


चम्पारण , बिहार राज्य का एक जिला जहां हजारों भूमिहीन , गिरमिटिया मजदूर और गरीब किसान अपने अस्तित्व के लिए आवश्यक खाद्य फसलों के बजाय नील और अन्य नकदी फसलें उगाने के लिए मजबूर थे। ये सामान किसानों से बेहद कम कीमत पर खरीदे जाते थे । जमींदारों के क्रूर मिलिशिया द्वारा दबाए गए, उन्हें नगण्य मुआवजा दिया गया, जिससे उन्हें अत्यधिक गरीबी में छोड़ दिया गया। विनाशकारी अकाल की स्थिति में भी, ब्रिटिश सरकार ने उन पर भारी कर लगाया और दर बढ़ाने पर जोर दिया।

भोजन और धन के बिना, स्थिति उत्तरोत्तर असहनीय होती जा रही थी और चंपारण में किसानों ने 1914 में (पिपरा में) और 1916 में (तुरकौलिया में) नील की खेती में सरकार के खिलाफ विद्रोह कर दिया। राजकुमार शुक्ल, जो नील की खेती करते थे, ने महात्मा गांधी को चंपारण जाने के लिए राजी किया और  चंपारण सत्याग्रह शुरू हुआ। गांधीजी 10 अप्रैल 1917 को प्रख्यात वकीलों यानी ब्रजकिशोर प्रसाद, राजेंद्र प्रसाद, अनुग्रह नारायण सिन्हा और आचार्य कृपलानी के साथ चम्पारण पहुंचे थे ।