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आत्म विजेता - भगवान महावीर :चन्दा मुनोत





कोलकाता।।

हजारों आते है , हजारों जाते है ।

विरले ही होते है , जो याद किये जाते है ।

आज उसी विरले महामानव का , प्रतिबोधित राजकुमार का ,अन्तिम  २४ वें जैन तीर्थंकर का जन्मकल्याणक दिवस है ।चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को क्षत्रियकुंडपुर राज्य का कण - कण सुखमय और उल्लासित हो उठा । अवधिज्ञान युक्त , रागद्वेष विजेता , अंतरयामी प्रभु की आत्मा धरती पर मनुष्य जन्मधारण कर मोक्ष जाने के लिये पधारी । चहूँ ओर अप्रत्याशित वृद्धि होने के कारण बालक को वर्धमान नाम से पुकारा गया । बाद में प्रभु के अन्य नाम महावीर , श्रमण , ज्ञातपुत्र , विदेह , वैशालिक , सन्मति , काश्यप , देवार्य आदि भी प्रचलित हुए ।


भगवान महावीर ने चौथे आरे के अंत मे जन्म लिया था | आज का जैन दर्शन उनकी वाणी का ही फलित है | भगवान महावीर इतिहासकारों के दृष्टि महान क्रांतिकारी , परम अहिंसावादी तथा उत्कृष्ट साधक थे । उन्होनें पशु - बली का विरोध किया ,जातिवाद को अतात्विक माना और दास प्रथा को हिंसाजनक बतलाया ।धर्म के ठेकेदारों ने तब धर्म को अपने - अपने कठघरों में  बंद कर रखा था ,उस समय  जन साधारण तक धर्म की धारा प्रवाहित करने का कठिनतम कार्य भगवान महावीर ने ही किया । स्वयं राजमहल में जन्म लेकर भी दलित वर्ग को गले लगाया, उसे धर्म का अधिकार प्रदान किया , सचमुच भगवान महावीर अपने युग के मसीहा थे ।


३० वर्ष की युवावस्था में माँ त्रिशला तथा पिता सिद्धार्थ की आँखों के इस तारे ने संयम ग्रहण किया । दीक्षा लेते ही उन्हें  अनेक उपसर्गों तथा मरणान्तिक  कष्टों का सामना करना पड़ा ।प्रभु ध्यान एवं तपस्या  के द्वारा आत्मा की भक्ति करते हुये विचरण कर रहे थे । ऋजु बालुका नदी के किनारें वैशाख शुक्ला दशमी ,बेले का तप , दिन का अन्तिम प्रहर ,गोदोहिका आसन ,क्षपक श्रेणी का आरोहण तथा कर्मों को समूल नष्ट करते हुवे केवल ज्ञान और केवल दर्शन को प्राप्त किया । मूर्त्त - अमूर्त सभी पदार्थो को  भगवान देखने लगे ।








                  

भगवान महावीर ने सर्वज्ञ होते ही तत्कालीन रूढ़ धारणाओं पर प्रबल प्रहार किया ।उनके प्रमुख सिद्धांत थे -

                  जातिवाद का विरोध

उनका स्पष्ट उदघोष था - मनुष्य जन्म से उंचा - नीचा नही होता ,केवल कर्म ही व्यक्ति के उंच या नीच के  मापदंड है ।

                   पशु- बलि का विरोध 

प्रभु ने स्पष्ट  कहा कि हिंसा पाप है । इससे बचकर ही धर्म कमाया जा सकता है ।

                    दास - प्रथा का विरोध 

 प्रभु ने स्पष्ट कहा कि मेरे संघ में सब समान होगें । स्वतंत्रता स्वस्थ समाज का लक्षण है । दास - प्रथा सामूहिक जीवन का कलंक है ।

              स्त्री को समान अधिकार

 भगवान की दृष्टि में स्त्री - पुरुष केवल शरीर के चिन्हों से है ।आत्मा सिर्फ आत्मा है ।मातृ शक्ति को धर्म से वंचित करना बहुत बड़ा अपराध है । 

                  जन भाषा में प्रतिबोध

भगवान ने जनसाधारण की भाषा अर्ध मागधी में ही अपने प्रवचन दिये ।मूल आगम आज भी अर्ध मागधी भाषा में उपलब्ध है ।

                           अपरिग्रह 

भवगान का उपदेश  था कि संग्रह समस्याओं को पैदा करता है। यह अनर्थ का मूल है।

                           अनेकांत 

वैचारिक अहिंसा को विकसित करने के लिए उन्होनें अनेकांत का प्रतिपादन किया ।अनेकान्त को मान लेने के बाद एकांतिक आग्रह स्वतः समाप्त हो जाता है।


भगवान महावीर के उपदेश आज के आधुनिक युग में भी सटीक उतरते हैं। हमें अपनी हर समस्या का समाधान उनकी वाणी रूपी आगम ग्रन्थों  में मिल जाता है । आज उनकी जन्म जयंती पर हम उनके पदचिन्हों पर चलकर अपनी आत्मा का कल्याण कर सकते है । पूरा विश्व यदि उनका अनुकरण करें तो हिंसा का तांडव क्षण में समाप्त हो सर्वत्र शांति का वातावरण बन सकता है । हमें अपनी भावी पीढ़ियों को संस्कारित करना होगा,उन्हें सिखाना होगा कि अहिंसा परमो   धर्म: अर्थात ' अहिंसा ही सबसे बड़ा धर्म है ।

महावीर का एक ही घोष   ' देखों अपना - अपना दोष '

महावीर ने हमें सिखलाया - समता धर्म , समता धर्म । महावीर के संदेशों को घर - घर में पहुँचाएंगे ।


                      महावीर स्तुति


(आचार्य तुलसी  द्वारा रचित गीतिका प्रस्तुति )


      जय महावीर भगवान ।

मन - मंदिर में आओ, धरूं निरंतर ध्यान ।।

जय महावीर भगवान ।


१. पावन नाम तुम्हारा , मंत्राक्षर प्यारा ,

मेरी स्वर - लहरी पर , उठे एक ही तान ।

        जय महावीर भगवान ।।


२.राग -  द्वेष - विजेता , सिद्धि - सदन- नेता ,

क्षमा मूर्ति जग त्राता , मिटे सकल व्यवधान ।

        जय महावीर भगवान ।।


३. अनेकान्त - उदगाता , अनुपम सुखदाता ,

जनम -जनम  के बंधन , तोड़े कर संधान ।

            

           जय महावीर भगवान ।।


४. आधि - व्याधि की माया , मिटे प्रेत छाया ,

आत्म - शक्ति जग जाए ,लघु भी बने महान ।

           जय महावीर भगवान ।।


५.भक्ति भरा मन मेरा ,तोड़ रहा घेरा ,

तन्मय बनकर ' तुलसी ' करुं सदा संगान ।

           जय महावीर भगवान ।।


संकलनकर्ता : सुरेन्द्र मुनोत ,कोलकाता