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नरेश मेहता जीवन के विराट संदर्भों के रचनाकार -- अजित कुमार राय




 प्रयागराज।।हिन्दुस्तानी एकेडेमी उ0प्र0 प्रयागराज के तत्वावधान में  एकेडेमी के गांधी सभागार में ‘नरेश मेंहता और उनकी रचनाधर्मिता’ विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्ज्वलन एवं सरस्वती जी की प्रतिमा के चित्र पर सम्मानित अतिथियों ने माल्यार्पण कर के किया। इस अवसर पर स्वागत संभाषण देते हुए एकेडेमी के सचिव श्री देवेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि नरेश मेहता की रचनाधर्मिता के मूल में मानव मूल्यों की स्थापना एवं भारतीयता की गहरी दृष्टि हो जिसने समसामयिक समस्याओं को समाज के सामने रखा। उनको साहित्य के सर्वोच्च पुरस्कार ज्ञानपीठ से सम्मानित किया गया है। कवि होने के साथ-साथ नरेश जी निबन्धकार और कथाकार भी थे। आज की संगोष्ठी का विषय है नरेश मेहता और उनकी रचनाधर्मिता जिसपर विद्वत्जन विस्तार से चर्चा कर इसे सार्थक बना रहे हैं । कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कन्नौज से पधारे अजित कुमार राय जी ने नरेश मेहता की रचना धर्मिता पर विचार करते हुए कहा कि नरेश मेहता जीवन के विराट सन्दर्भो के रचनाकार हैं।  उनकी वैचारिक यत्रा डाॅ. रामविलास शर्मा की तरह प्रगतिवाद से पारम्परिक मनीषा की ओर सम्पन्न होती है। उन्होंने कुँवर नारायण की भाँति अपने सांस्कृतिक मिथकों का पुनः सृजन किया है। वे भाषा की पार्थिवता का परिहार करके सृष्टि के भागवत स्वरुप को समृद्ध नमन करते हैं। उनका विनय हर पाथर को प्रभु बना देता है। उनकी गैरिक व सन वाणी भाषा के वैष्णव व्यक्तित्व का अविष्कार करती है। उनकी पगडंडियाँ मानुषगंधी हैं, किन्तु उन्होंने जीवन और जगत को हिमालय की ऊँचाईयों से देखने-परखने का प्रयास किया है। औदात्य उनकी सृजनशीलता का केन्द्रीय वैशिष्ट्य है।

 सम्मानित वक्ता श्री रविनन्दन सिंह ने इस अवसर पर कहा कि नरेश मेहता भारतीय संस्कृति के उन्नायक कवि है। उनके काव्य में सर्वत्र मानव जीवन का औदात्य दिखाई देता है। वे भारतीय मनीषा के प्रतिनिधि कवि है जो व्यष्टि को समष्टि के निकष पर स्वीकार करते है। उनका जीवन संघर्ष उन लोगों के लिए प्रेरणा का विषय है जो लिखने के लिए अनुकूल परस्थितियों की तलाश करते है।







दिल्ली से आये हुए सम्मानित वक्ता डाॅ. सत्यप्रिय पण्डेय ने कहा कि नरेश मेहता जी ने इतिहास और मिथक का अभूतपूर्व उपयोग किया है। वे नितांत भारतीय दृष्टि के इतिहास को देखते हैं उसे रेखांकित करते हैं। मिथकों का ऐसा सर्जनात्मक उपयोग अभूतपूर्व और विरल है। उन्होंने भाषा एवं शब्दों का अत्यन्त दुर्लभ एवं अभूतपूर्व उपयोग किया है। वे लोकभाषा  शब्द संधान करने के लिए आग्रही रचनाकार रहे हैं। आज जब इतिहास के पुनर्लेखन एवं पुर्नमूल्यांकन की बात हो रही है, ऐसे में नरेश मेहता की इतिहास दृष्टि बड़े काम की है और मूल्यवान हैं। धन्यवाद ज्ञापन एवं कार्यक्रम का संचालन एकेडेमी की प्रकाशन अधिकारी ज्योतिर्मयी  ने किया। इस कार्यक्रम में प्रो. रामकिशोर शर्मा, राम नरेश तिवारी पिण्डीवासा, डाॅ. मानेन्द्र प्रताप सिंह, शिवमूर्ति सिंह, जनकवि ‘प्रकाश’, डाॅ. अमिताभ त्रिपाठी, रमेश नाचीज, एम.एस. खाँ, राधा शुक्ला, पूर्णिमा मालवीय, एकेडेमी के कोषाध्यक्ष श्री दुर्गेश कुमार सिंह, कर्मचारी गोपाल जी पाण्डेय, ज्योतिर्मयी, रतन पाण्डेय, सुनील कुमार, अंकेश श्रीवास्तव, मोहसीन खाँ, अमित सिंह, अनुराग ओझा उपस्थित रहे।