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....तो क्या अब सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ गीत लिखना / गाना राष्ट्रद्रोह है, बड़ा सवाल




मधुसूदन सिंह

बलिया।। लोकगीत गायिका जनकवि के रूप में प्रसिद्ध, यूपी में का बा से सुर्खियों में आयी नेहा सिंह राठौर को यूपी पुलिस द्वारा कानपुर की घटना पर गीत बनाकर गाने के लिये दी गयी नोटिस काफ़ी चर्चा में है। अब लोग यह सवाल पूँछ रहे है कि क्या लोकतंत्र में जनता की पीड़ा को या सरकार की किसी नीति का गीत के माध्यम से गाना राष्ट्रद्रोह हो गया है, समाज में नफ़रत फैलाने वाला हो गया है? क्या कानपुर जिला प्रशासन व पुलिस की बुलडोजर वाली कार्यवाही जिसमे एक मां बेटी की जलने से मौत हो गयी है, के विषय में गीत लिखना जुर्म है? अगर यहां अधिकारियों ने गलत नहीं किया था तो उनके ऊपर मुकदमा क्यों किया गया?

आइये सबसे पहले आपको वह दृश्य दिखाते है ज़ब कानपुर पुलिस ने नेहा सिंह राठौर को नोटिस थमाया था ------



अब वह गीत भी सुन लीजिये जिसके कारण नेहा सिंह राठौर को नोटिस मिली है ----



बता दे कि यह पहला अवसर नहीं है ज़ब किसी जनकवि ने सरकार की नीतियों की कड़े शब्दों में आलोचना की है। बाबा नागार्जुन ने तो नेहा सिंह राठौर से भी कड़े शब्दों में सरकार की बखिया उखेड़ी थी, लेकिन उनको तो तत्कालीन सरकार या पुलिस ने नोटिस नहीं दी थी। बाबा नागार्जुन ने लिखा है ----

शासन की बंदूक

खड़ी हो गई चाँपकर कंकालों की हूक

नभ में विपुल विराट-सी शासन की बंदूक

उस हिटलरी गुमान पर सभी रहें है थूक

जिसमें कानी हो गई शासन की बंदूक

बढ़ी बधिरता दस गुनी, बने विनोबा मूक

धन्य-धन्य वह, धन्य वह, शासन की बंदूक

सत्य स्वयं घायल हुआ, गई अहिंसा चूक

जहाँ-तहाँ दगने लगी शासन की बंदूक

जली ठूँठ पर बैठकर गई कोकिला कूक

बाल न बाँका कर सकी शासन की बंदूक


वही पीपली लाइव फ़िल्म में तो एक गाना महंगाई पर आया था जो खूब हिट रहा ---



सखी सैयां तोह खूब ही कमात है

मेहंगाई डायन खाए जात है

सखी सैयां तोह खूब ही कमात है

मेहंगाई डायन खाए जात है

हर महीने उछले पेट्रोल

डीजल का उछला है रोले

शक्कर बाई के काहे बोल

हर महीने उछले पेट्रोल

डीजल का उछला है रोले

शक्कर बाई के काहे बोल

ुस्सा बाँस माटि दांग मरि जात है

मेहंगाई डायन खाए जात है

सखी सैयां तोह खूब ही कमात है

मेहंगाई डायन खाए जात है


सोया बीन का का बेहाल

गर्मी से पिचके हैं गाल

घिर गए पट्टे


 अरे सोया बीन का का बेहाल

गर्मी से पिचके हैं गाल

घिर गए पट्टे

और मक्का जी जी भी खये गयी मात है

मेहंगाई डायन खाए जात है

सखी सैयां तोह खूब ही कमात है

मेहंगाई डायन खाए जात है

सखी सैयां तोह खूब ही कमात है

मेहंगाई डायन खाए जात है


 अरे कडू की हो गयी बरमार

ककडी ने करगे हाहाकार

मटर भी तोह लागो प्रसाद

अरे कडू की हो गयी बरमार

ककडी ने करगे हाहाकार

मटर भी तोह लागो प्रसाद

और आगे का कहुँ काहे नहिं जात है

मेहंगाई डायन खाए जात है

सखी सैयां तोह खूब ही कमात है

मेहंगाई डायन खाए जात है


सखी सैयां तोह खूब ही कमात है

मेहंगाई डायन खाए जात है


ए सइयां

मोरे सइयां रे खूब कावाएँ

अरे कमा कमा के मर्र गए सइयां

पहले तकड़े तकड़े थे

अब दुबले पतले हो गए सइयां

अरे कमा कमा के मर्र गए सइयां

मोटे सइयां पतले सइयां

अरे सइयां मर्र गए

हमारे किसी आये गए में

मेहंगाई डायन मारे जात है

सखी सैयां तोह खूब ही कमात है

मेहंगाई डायन मारे जात है

सखी सैयां तोह खूब ही कमात है

मेहंगाई डायन खाए जात है

मेहंगाई डायन खाए जात है.




भाजपा नेता मनोज तिवारी का मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद 20 मई 2015 को यू ट्यूब पर अपलोड गीत नौकरिया न मिलल, नामक गीत काफ़ी लोकप्रिय हुआ। इसके लिये तो इनको भाजपा से ही निकाल देना चाहिए था।



इसके अलावा 2018 में बुंदेलखंडी लोकगीत महंगाई डायन जिसके गायक गायिका राजन सूर्यवंशी, रजनी पटेल और सोनम मिश्रा को सरकार की नीतियों के खिलाफ गीत गाने के लिये जेल में होना चाहिए था।


अगर यूपी पुलिस की तरह ही उपरोक्त गीतों के लिये तत्कालीन सरकारों ने कार्यवाही की होती तो मनोज तिवारी को भी नोटिस मिल गयी होती , पीपली लाइव के निर्माता और गायक गीतकार जेल में होते,बुदेलखंडी गायिकाओं को जेल की यात्रा करनी पड़ी होती। क्योंकि इन लोगों ने तो 2018 में महंगाई को लेकर गीत गया था।

अगर यही हाल रहा तो कोई भी जनकवि समाज में आयी विकृति, सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ गीत कैसे लिखेगा, क्या हम ऐसे ही लोकतंत्र की कामना कर रहे है।