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जनवरी में होंगे नगरीय निकाय के चुनाव, जनवरी के पहले या दूसरे सप्ताह में चुनाव की तैयारी

 


लखनऊ।।नगर निकायों में महापौर व अध्यक्षों काकार्यकाल खत्म होने की स्थिति में प्रशासकों की नियुक्ति को लेकर ऊहापोह को समाप्त हो गया है। सरकार ने क्रमवार निकायों में प्रशासनिक व्यवस्था लागू करने के निर्देश दे दिए हैं। इसी बीच  सरकार नगर निकाय के चुनाव को जनवरी के दूसरे सप्ताह मे कराने की तैयारी शुरू कर दी है।

महापौर और अध्यक्षों के कार्यकाल के खत्म होने के बाद विभागीय कार्यों का संचालन करने की जिम्मेदारी किसके हाथ होंगी, इस संबंध मे जो उहापोह की स्थिति थी, उसको शासन ने दूर कर दिया है। इस संबंध में प्रमुख सचिव नगर विकास अमृत अभिजात ने सभी डीएम के लिए शासनादेश जारी कर दिए हैं। इसके मुताबिक जैसे-जैसे नगर निकायों में कार्यकाल खत्म होगा, उसी क्रम में नगर निकायों में प्रशासकीय व्यवस्था लागू होती जाएगी। यानि नगर निगमों में नगर आयुक्त और पालिका परिषद व नगर पंचायतों में अधिशासी अधिकारियों के पास सारा अधिकार आ जाएगा।

बता दें कि उत्तर प्रदेश नगर पालिका परिषद अधिनियम-1916 और उत्तर प्रदेश नगर निगम अधिनियम-1959 में निकायों के बोर्ड का कार्यकाल पांच साल के लिए निर्धारित है। 2017 में हुए निकाय चुनाव का परिणाम आने के बाद निकायों के बोर्ड का गठन 12 दिसंबर से लेकर 15 जनवरी के बीच हुआ था। इस लिहाज से महापौर और अध्यक्षों का कार्यकाल भी इसी अवधि उस तिथि को ही समाप्त होगी, जिस तिथि को बोर्ड की पहली बैठक हुई थी। इस लिहाज से 12 दिसंबर से ही निकायों का कार्यकाल समाप्त होना शुरू हो गया है, लेकिन शासन स्तर से कोई आदेश जारी नहीं होने की वजह से ऊहापोह की स्थिति बनी हुई थी। अब जब शासन के आदेश जारी करने के साथ ही निकायों में प्रशासकीय व्यवस्था लागू हो गई है।


प्रमुख सचिव की ओर से जारीं शासनादेश में कहा गया है कि नगर निकायों का सामान्य निर्वाचन जनवरी 2023 के पहले और दूसरे सप्ताह में कराया जाना प्रस्तावित है। इसलिए नए बोर्ड के गठन के पूर्व जिन निकायों का कार्यकाल समाप्त हो रहा है, वहां अंतरिम व्यवस्था प्रशासनिक अधिकार देकर सुनिश्चित कराई जाएगी। निकायों का कार्यकाल शपथ ग्रहण के बाद पहली बैठक से पांच साल के लिए माना जाएगा। पहली बैठक की तिथि से प्रशासकीय व्यवस्था लागू कर दी जाएगी। नगर निगमों में नगर आयुक्त और पालिका परिषद व नगर पंचायतों में अधिशासी अधिकारियों को कार्य संचालन का दायित्व सौंपा जाएगा।


सलाहकार की भूमिका में रहेगा बोर्ड

अमृत अभिजात के मुताबिक प्रशासक बैठाए जाने के दौरान बोर्ड की भूमिका सलाहकार के तौर पर होगी। वे बहुमत के आधार पर अधिशासी अधिकारी या नगर आयुक्त को परामर्श दे सकेंगे, जोकि बाध्यकारी नहीं होंगे। हालांकि निकायों की कार्यकारिणी समिति के पास नागरिक सुविधाओं का पर्यवेक्षण की जिम्मेदारी होगी। इसके लिए कार्यकारिणी समिति के सदस्यों को कोई पारिश्रमिक, मानदेय या भत्ता नहीं दिया जाएगा। नगर पालिका परिषदों व नगर पंचायतों के संबंध में यह दायित्व निकाय बोर्ड के पास होगा।







खातों का संचालन करेंगे ईओ और लेखाकार 

नगर पालिका परिषदों और नगर पंचायतों में खातों का संचालन अध्यक्ष व अधिशासी अधिकारी के दस्तखत से होता है। अध्यक्ष के न रहने पर यह काम अधिशासी अधिकारी व केंद्रीयत सेवा के वरिष्ठतम लेखा अधिकारी संयुक्त हस्ताक्षर से करेंगे। केंद्रीयत सेवा के अधिकारी की तैनाती न होने की स्थिति में वहां लेखा का काम देखने वाले कर्मी को दिया जाएगा। अधिशासी अधिकारी कर्मचारी को नामित करेगा। यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि संयुक्त हस्ताक्षर की इस व्यवस्था के तहत ही नगद निकाला जाएगा। चेक भी सभी औपचारिकता पूरी करने के बाद दिए जाएंगे।बता दे कि यूपी में 17 नगर निगम, 200 नगर पालिका परिषद, 545 नगर पंचायतें है।