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चकबंदी न्यायालयों मे कानून से खिलवाड़ करने का कारनामा हुआ उजागर, दफा -5 मियाद कानून की उड़ाते है धज्जियां


                         फ़ाइल फोटो स्व दिलीप सिंह 

मधुसूदन सिंह

बलिया।। पूर्व ग्राम प्रधान स्व दिलीप सिंह के खिलाफ इनके ही भाई की पत्नी द्वारा बंदोबस्त अधिकारी बलिया के न्यायालय से लिया गया स्थगन आदेश स्व दिलीप सिंह के दामाद के द्वारा आपत्ति दाखिल करने के बाद समाप्त हो गया है। बता दे कि 28 साल पूर्व के एक न्यायालयी आदेश को बिना बिलम्ब समय सीमा को माफ किये ही न्यायालय बंदोबस्त अधिकारी बलिया द्वारा एक पक्षीय रूप से स्थगन आदेश दे दिया गया था।

क्यों भू राजस्व वाले न्यायालयों को माल न्यायालय कहा जाता है, इसको बलिया जनपद के न्यायालय बंदोबस्त अधिकारी के एक आदेश से समझा जा सकता है। इस आदेश को देखने के बाद स्पष्ट हो रहा है कि क्यों इस को माल कहा जाता है? क्योंकि यहां अधिकतर फैसले भू राजस्व कानूनों के आधार पर नही बल्कि माल (रूपये ) के आधार पर होते है। अगर ऐसा नही होता तो न्यायालय बंदोबस्त अधिकारी बलिया, अपील संख्या 1445 धारा -11(1) जो0 च0 अधि0 के द्वारा दाखिल राधामुनी बनाम दिलीप मे दफा -5 मियाद कानून को नजरअंदाज न करते और 28 साल पूर्व के एक फैसले पर एक पक्षीय  आदेश जारी नही किया जाता ।

ऐसी अपीलों मे सबसे पहले दफा- 5 मियाद कानून पर निर्णय करने का कानूनी निर्देश है, उसको दरकिनार करके अपील को पहली ही तारीख मे स्वीकार कर 28 साल पहले के आदेश पर एक पक्षीय रूप से स्थगन आदेश न्यायालय द्वारा जारी करने को कही से भी न्यायोचित  नही ठहरा सकते है । बंदोबस्त अधिकारी बलिया का यही 21.10.22 का आदेश अब चर्चाओ का बाजार गर्म करते हुए माल न्यायालयों के आदेशों को कटघरे मे खड़ा कर रहा है। ऐसे ही आदेशों से राजस्व न्यायालयो के ऊपर उंगली उठाने का मौका मिल जाता है। ऐसे आदेश जारी न, इसके लिये माननीय राजस्व परिषद को कठोर कदम उठाकर इन न्यायालयों की गरिमा को बचाने का काम करना अति आवश्यक हो गया है।

             क्या है पूरा मामला

यह मामला न्यायालय बंदोबस्त अधिकारी बलिया के यहां 21.10.22 को दाखिल अपील संख्या 1445 का है। इस अपील के माध्यम से राधामुनी बहू महेश्वर सिंह निवासिनी ग्राम पोस्ट करम्मर, मौजा करम्मर, परगना खरीद जनपद बलिया ने प्रतिपक्षी दिलीप सिंह (श्वासूर के सगे भाई )के खिलाफ  न्यायालय चकबंदी अधिकारी बलिया के द्वारा वाद संख्या -3291 धारा -9क (2) जो0 च0 अधि0, के द्वारा दिलीप बनाम महेश्वर मे सन्धि के आधार पर हुए 29.9.94 के आदेश को चुनौती लगभग 28 वर्ष बाद दी गयी है । हद तो तब हो गयी जब बंदोबस्त अधिकारी द्वारा 28 वर्ष बाद किसी न्यायालयी आदेश को धारा -5 मियाद कानून का लाभ बिना इसके गुण दोष पर सुनवाई और आदेश देने के पिछले आदेश को ही स्थगित करने का आदेश पारित कर दिया।

बता दे कि दो सगे भाइयों मे 29.9.94 को न्यायालय के माध्यम से एक समझौता होता है और जो दोनों भाइयों द्वारा आजीवन निभाया जाता है। जिसके आधार पर दोनों भाइयों के नाम इनके पिता के नाम पर दर्ज भू सम्पतियों पर,जो देवापुर और करम्मर मौजे मे अवस्थित है,  दोनों भाइयों के नाम आधे आधे भाग पर दर्ज हो गये। जो बंदोबस्त अधिकारी बलिया के यहां दाखिल 21.10.22 के पहले तक लागू रहा। पुराने आदेश दिनांक 29.9.94 के आधार पर मौजा देवापुर मे अभिलेख मे दर्ज दिलीप सिंह के नाम पर कोई आपत्ति नही है, आपत्ति है तो सिर्फ करम्मर मौजे के भू अभिलेखों मे दर्ज नाम पर आखिर क्यों?









        क्या कहता है दफा -5 मियाद कानून

बंदोबस्त अधिकारी बलिया द्वारा धारा-11(2) जो0 च0 अधि0 के तहत दाखिल  प्रार्थना पत्र के साथ धारा 5 मियाद कानून का लाभ पाने के प्रार्थना पत्र पर  धारा 11(2) जो0च0अधि0 मे आदेश पारित करने से पहले धारा-5 मियाद अधिनियम के प्रार्थना पत्र का निस्तारण कर धारा-5 मियाद अधिनियम के प्रार्थना पत्र पर आदेश पारित किया जाना चाहिए था, जो नही किया गया है। भू-राजस्व अधिनियम की धारा 201 की उपधारा-56 में यह स्पष्ट किया गया है कि "विलम्ब माफी प्रार्थना पत्र के साथ दाखिल पुनर्स्थापन प्रार्थना पत्र का निस्तारण जब नियत अवधि बीत जाने के बाद विलम्ब माफी प्रार्थना पत्र के साथ पुनर्स्थापन प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया जाता है, तो न्यायालय का दायित्व बनता है कि वह विलम्ब माफी प्रार्थना पत्र का निस्तारण करने के बाद पुनर्स्थापन प्रार्थना पत्र का निस्तारण करे। विलम्ब माफ किये बिना पुनर्स्थापन प्रार्थना पत्र निस्तारण करने की अधिकारिता न्यायालय को प्राप्त नहीं है।"जब कानून साफ है कि धारा 5 मियाद अधिनियम पर आदेश पारित किये दूसरा आदेश पारित करने का अधिकारिता न्यायालय को है ही नही, फिर न्यायालय बंदोबस्त अधिकारी बलिया ने इसको नजरअंदाज कैसे किया? यह सबसे बड़ा सवाल है। ऐसे ही न्यायालयी फैसलों की वजह से भू राजस्व के वादों का बोझ रोज बढ़ता जा रहा है। 


करम्मर मौजे मे चल रही चकबंदी के कारण उठा है विवाद

दिलीप सिंह के दामाद आनंद सिंह का कहना है कि चकबंदी अधिकारी बलिया के जिस आदेश के आधार पर देवापुर मौजे मे दर्ज हुए दिलीप सिंह के नाम पर राधामुनी देवी को कोई आपत्ति नही है, उसी फैसले को करम्मर मौजे मे क्यों चुनौती दी गयी, उसकी बड़ी वजह समझ मे आती है। वह है देवापुर मौजे की चकबंदी प्रक्रिया के पूर्ण होने और करम्मर मे अभी चलना। कहा कि इन लोगों की सोच है दिलीप सिंह के नाम दर्ज करम्मर मौजे की संपत्तियों को चल रही चकबंदी प्रक्रिया के तहत किसी प्रकार अपने नाम से दर्ज कराकर अपने चक मे शामिल कर लिया जाय। चक मे शामिल होने के बाद इसको सही कराने मे न जाने कितने वर्ष लग जाय। आनंद सिंह ने यह भी आरोप लगाया है कि जब दिलीप सिंह और महेश्वर सिंह के मध्य हुई सन्धि 29.9.94 गलत है तो फिर राधामुनी देवी और इनके पुत्रो द्वारा किस अधिकार से करम्मर मौजे की जमीनों को दूसरे लोगों को बिक्री की गयी है? 

बता दे कि पूर्व ग्राम प्रधान दिलीप सिंह (लगभग 22वर्षो तक करम्मर के ग्राम प्रधान रहे है )को मात्र एक पुत्री नीरजा देवी पत्नी श्री आनंद सिंह है। पिछले कई वर्षो की बीमारी से ग्रसित दिलीप सिंह का इलाज के दौरान 30.10.22 को स्वर्गवास हो गया। यह भी बता दे कि स्व दिलीप सिंह अपनी पुत्री के परिवार के साथ अलग मकान मे रहते थे और राधामुनी देवी अपने पुत्रो के साथ अलग। स्व दिलीप सिंह के दामाद आनंद सिंह ने आरोप लगाते हुए कहा है कि ये लोग चल रही चकबंदी प्रक्रिया का लाभ उठाते हुए दिलीप सिंह की संपत्ति को अपने नाम दर्ज  कराने की साजिश रच रहे थे। कहा कि जिन भाइयों द्वारा 29.9.94 को सन्धि की गयी थी, उन लोगों मे जब जीवन भर कोई विवाद नही था, तो अब जब दोनों भाई जीवित नही है,विवाद करना कहां तक उचित है।

दिलीप सिंह के दामाद आनंद सिंह ने राधामुनी देवी द्वारा दाखिल वाद के समय पर ही सवाल खड़ा किया है। श्री सिंह ने आरोप लगाते हुए कहा कि जब हम लोग अपने श्वसुर की तबियत ज्यादे ख़राब होने पर, वाराणसी मे इलाज करा रहे थे और उनकी हालत नाजुक थी, तब राधामुनी देवी ने अपने पुत्रो संग साजिशन दिलीप सिंह की संपत्ति पर कब्जा करने की नियति से 21.10.22 को मुकदमा दाखिल कर दिया। कहा कि इनको पहले ही आभास हो गया था कि अब दिलीप सिंह नही बचेंगे और 30.10.22 को दिलीप सिंह स्वर्ग सिधार भी गये।

कहा कि दिलीप सिंह के श्राद्ध कर्म के दिनांक 12.11.22 तक विपक्षियों द्वारा मिलजुल कर सारे कार्य किये। इनकी साजिश का पर्दाफाश तब हुआ जब जोते गये खेत पर हम लोग पानी चलाने गये। जानकारी होने पर बंदोबस्त अधिकारी बलिया के यहां राधामुनी देवी के द्वारा दाखिल अपील के खिलाफ अपने अधिवक्ता विपिन बिहारी सिंह व कुंदन सिंह के माध्यम से आपत्ति दाखिल की, जिसके आधार पर न्यायालय ने भी स्थगन आदेश को खत्म कर दिया।